Caste Census: जातिगत गणना पर बिहार सरकार ने हाईकोर्ट में डाला रिव्यू पिटीशन, जानें मामला

By एस पी सिन्हा | Updated: May 5, 2023 16:16 IST2023-05-05T16:14:57+5:302023-05-05T16:16:19+5:30

Bihar Caste Census: बिहार में जाति सर्वेक्षण का पहला दौर 7 से 21 जनवरी के बीच आयोजित किया गया था। दूसरा दौर 15 अप्रैल को शुरू हुआ था और 15 मई तक जारी रहने वाला था।

Caste Census Bihar government filed review petition patna High Court caste enumeration know | Caste Census: जातिगत गणना पर बिहार सरकार ने हाईकोर्ट में डाला रिव्यू पिटीशन, जानें मामला

मामले में कोर्ट अब 3 जुलाई को सुनवाई करेगा।

Highlightsएकत्र किए गए आंकड़ों को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया।मामले में कोर्ट अब 3 जुलाई को सुनवाई करेगा। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव, धनंजय कुमार तिवारी और अन्य ने दलीलें पेश की थी।

पटनाः जातिगत गणना पर पटना हाईकोर्ट के द्वारा रोक लगाए जाने के फैसले के बाद अब राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में रिव्यू पिटीशन डाला है। इस याचिका में मुख्य न्यायाधीश से सुनवाई करने की अपील की गई है। कहा गया है कि इस मामले में जल्द से जल्द सुनवायी की जाए। 

उल्लेखनीय है कि पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सरकार को जाति आधारित सर्वेक्षण को तुरंत रोकने और इस सर्वेक्षण अभियान के तहत अब तक एकत्र किए गए आंकड़ों को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया।

पीठ ने सरकार से यह भी कहा कि अंतिम आदेश पारित होने तक इन आंकड़ों को किसी से भी साझा न किया जाए। पटना हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य के पास जातीय जनगणना करने की कोई शक्ति नहीं है और ऐसा करना संघ की विधायी शक्ति पर अतिक्रमण होगा।

इस मामले में कोर्ट अब 3 जुलाई को सुनवाई करेगा। वहीं, बिहार सरकार की ओर से महाधिवक्ता प्रशांत कुमार शाही तो याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव, धनंजय कुमार तिवारी और अन्य ने दलीलें पेश की थी। पटना उच्च न्यायालय की ओर से बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगाए जाने की सराहना करते हुए ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता रेशमा प्रसाद ने कहा कि यह उनके समुदाय की ‘‘आवाज’’ सुने जाने के समान है।

राज्य सरकार के जाति आधारित सर्वेक्षण कराने के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने वालों में शामिल रेशमा ने कहा, ‘‘बिहार सरकार द्वारा जाति की सूची में ट्रांसजेंडर को एक अलग जाति माना जाना एक ‘‘आपराधिक कृत्य’’ है। हम पटना उच्च न्यायालय के शुक्रगुजार हैं कि हमारी आवाज सुनी गई। हमारे वकील ने उच्च न्यायालय के समक्ष इस मुद्दे को बहुत प्रभावी ढंग से रखा है।’’

उन्होंने कहा, “अब उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को इस कवायद को तुरंत रोकने का निर्देश दिया है। हम अपनी इस मांग पर कायम हैं कि राज्य सरकार दूसरे चरण के सर्वेक्षण के दौरान इस्तेमाल किए गए प्रारूप को वापस ले जिसमें ट्रांसजेंडर को जाति घोषित किया गया था।” उन्होंने कहा, “हम तीन जुलाई को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत के समक्ष इस मुद्दे को उठाएंगे।

हमें आरक्षण दिया जाना चाहिए क्योंकि कर्नाटक, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और कुछ अन्य राज्यों में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को आरक्षण दिया गया है।” पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार की ओर से कराये जा रहे जाति सर्वेक्षण पर बृहस्पतिवार को यह कहते हुए रोक लगा दी कि राज्य के पास जाति आधारित सर्वेक्षण कराने की कोई शक्ति नहीं है।

अदालत मामले की सुनवाई अब तीन जुलाई को करेगी। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सरकार को जाति आधारित सर्वेक्षण को तुरंत रोकने और इस सर्वेक्षण अभियान के तहत अबतक एकत्र किए गए आंकड़ों को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया। अदालत ने मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख तीन जुलाई तय की है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि ट्रांसजेंडर को जाति के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाएगा लेकिन अधिसूचना में इसे जाति की सूची में रखा गया है।

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