CAA Protest: टूट रही बचपन की दोस्ती, कुछ ने कहा- समर्थन नहीं कर सकती है तो ‘उसे पाकिस्तान चले जाना चाहिए’

By भाषा | Published: December 27, 2019 07:47 PM2019-12-27T19:47:18+5:302019-12-27T19:47:18+5:30

बहस के कारण दोस्ती टूट रही है, शिक्षकों-छात्रों के संबंध खराब हो रहे हैं और प्रतिष्ठित संस्थानों के पूर्व छात्र अपने-अपने संस्थानों के व्हाट्सएप समूह छोड़ रहे हैं। सीएए और एनआरसी को लेकर पूरे देश में जारी विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसक घटनाओं में 20 लोग मारे गए हैं और तमाम लोग घायल हुए हैं।

CAA Protest: Childhood Friendships Breaking, Some Said - If She Can't Support 'She Should Go To Pakistan' | CAA Protest: टूट रही बचपन की दोस्ती, कुछ ने कहा- समर्थन नहीं कर सकती है तो ‘उसे पाकिस्तान चले जाना चाहिए’

विश्वविद्यालय में हिंसक प्रदर्शनों के बाद उसके गृहनगर के दोस्तों ने अब उसपर ‘‘पत्थरबाज’ का लेबल चिपकाना शुरू कर दिया है।

Highlights फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप पर तीखी बहस और नोकझोंक भी जारी है। ‘‘यह बेहद अपमानजनक और तकलीफदेह है। मेरे पास उसे जवाब देने के लिए शब्द नहीं थे, इसलिए मैंने उसके संदेशों का उत्तर ही नहीं दिया।’’

संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के पक्ष-विपक्ष में सोशल मीडिया पर हो रही बहस लोगों की बचपन की दोस्ती, शिक्षक-छात्र संबंधों, स्कूलों और कालेजों के पूर्व छात्रों के व्हाट्सएप समूहों पर भारी पड़ रहा है।

इस बहस के कारण दोस्ती टूट रही है, शिक्षकों-छात्रों के संबंध खराब हो रहे हैं और प्रतिष्ठित संस्थानों के पूर्व छात्र अपने-अपने संस्थानों के व्हाट्सएप समूह छोड़ रहे हैं। सीएए और एनआरसी को लेकर पूरे देश में जारी विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसक घटनाओं में 20 लोग मारे गए हैं और तमाम लोग घायल हुए हैं।

इसे लेकर फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप पर तीखी बहस और नोकझोंक भी जारी है। इलाहाबाद की रहने वाली 23 साल की रोशनी अहमद के लिए सीएए और एनआरसी पर बहस बहुत ही दुखदायी रहा। वह उस वक्त सकते में आ गई जब उसके बचपन के दो मित्रों ने उसपर ‘‘आतंकवादी’’ का लेबल चस्पां कर दिया और कह दिया कि अगर वह सीएए और एनआरसी का समर्थन नहीं कर सकती है तो ‘‘उसे पाकिस्तान चले जाना चाहिए।’’ इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नात्कोत्तर कर चुकी अहमद ने बताया कि दोनों ‘बहुत प्यारे’ दोस्त थे।

स्कूल और कॉलेज में उनके साथ पढ़ाई की थी, अपना खाना बांटकर खाया था। लेकिन जब फेसबुक और व्हाट्सएप स्टेटस पर सीएए और एनआरसी को लेकर चिंता जतायी तो उनकी प्रतिक्रिया ने हमें सकते में डाल दिया। अहमद ने पीटीआई को बताया, ‘‘मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरे दोस्त ऐसा करेंगे। एक को मेरा दोस्त होने, कॉलेज में मेरी मदद करने का अफसोस है। वह सोचती है कि मैं आतंकवादी हूं क्योंकि मैं उसकी राजनीतिक विचारधारा से सहमति नहीं जताती हूं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह बेहद अपमानजनक और तकलीफदेह है। मेरे पास उसे जवाब देने के लिए शब्द नहीं थे, इसलिए मैंने उसके संदेशों का उत्तर ही नहीं दिया।’’ यह पूछने पर कि क्या दोनों के बीच संबंध फिर से सामान्य हो सकेंगे, अहमद ने कहा, ‘‘मैंने उन्हें खो दिया है और उन्होंने मुझे। मुझे तो यह तक नहीं पता कि मेरे चले जाने से उन्हें कोई फर्क पड़ भी रहा है या नहीं।’’ दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढ़ने वाली 20 साल की किसा जेहरा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उसके विश्वविद्यालय में हिंसक प्रदर्शनों के बाद उसके गृहनगर के दोस्तों ने अब उसपर ‘‘पत्थरबाज’ का लेबल चिपकाना शुरू कर दिया है।

गणित ऑनर्स की अंतिम वर्ष की छात्रा कहती हैं, ‘‘उनके अनुसार यह प्रदर्शन करने का सही तरीका नहीं था.... वे मुझे और मेरे विश्वविद्यालय को गालियां दे रहे हैं।’’ आईआईएम से 2014 में एक्जेक्यूटिव एमबीए प्रोग्राम करने वाले 37 वर्षीय फैज रहमान ने बताया कि पढ़ाई खत्म होने के बाद उनके बैच के लोगों ने एक व्हाट्सएप समूह बनाया। उसका मुख्य लक्ष्य नेटवर्किंग और संसाधन साझा करना था।

वाराणसी निवासी और दिल्ली में नौकरी कर रहे रहमान कहते हैं, ‘‘वर्षों तक उस समूह में कोई राजनीतिक चर्चा नहीं होती थी, लेकिन पिछले कुछ दिनों में समूह के कुछ सदस्यों द्वारा वहां डाले गए पोस्ट बर्दाश्त करने के काबिल नहीं हैं। उन सभी में एक विशेष समुदाय को निशाना बनाया गया है, उसे गलत बताया गया है। शुरुआत में हिन्दुओं, सिखों, इसाइयों और मुसलमानों, सभी सदस्यों ने तथ्यों के आधार पर उनसे तर्क करने और फर्जी खबरों का पर्दाफाश करने का प्रयास किया, लेकिन यह समस्या इस हद तक बढ़ गई कि मैंने वह समूह ही छोड़ दिया।’’

हैदराबाद में एक बड़ी टेक कंपनी में काम कर रहे आदित्य शर्मा ने बताया कि वह फेसबुक पर अपने पुराने स्कूल शिक्षकों की पोस्ट देख कर बहुत दुखी हुए। आईआईएम से पढ़े शर्मा कहते हैं, ‘‘मेरे कुछ शिक्षक सीएए और एनआरसी का समर्थन कर रहे हैं जबकि उन्हें इसके परिणामों का जरा भी अंदाजा नहीं है। (व्यंग्य करते हुए कहते हैं) यह जानकर अच्छा लगा कि हमारी शिक्षा प्रणाली में दिक्कत शुरुआत से ही है।’’ सहायक प्रोफेसर पद्मजा तामुली ने बताया कि उनकी अपनी दो दशक पुरानी दोस्त ने उनके ‘असमी मूल’ पर सवाल उठाया तो वह बेहद आहत हुईं।

यह सब इसलिए हुआ क्योंकि वह दोस्त की राजनीतिक विचारधारा से इत्तेफाक नहीं रखती है। असम में तिनसुकिया की रहने वाली तामुली कोलकाता में नौकरी करती हैं। उन्होंने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘शुरुआत में मुझे भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों पर भरोसा था कि वह असम के लिए कुछ अच्छा करेंगे। लेकिन अब नहीं।’’ (इस खबर के कुछ नामों को बदल दिया गया है क्योंकि उन्होंने अपनी पहचान गुप्त रखने का अनुरोध किया था

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