Budget 2019: जानिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में किस शायर का पढ़ा शेर

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 5, 2019 11:31 AM2019-07-05T11:31:15+5:302019-07-05T11:31:15+5:30

Budget 2019: निर्मला सीतारमण ने कहा, भारतीय अर्थव्यवस्था 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था इसी साल हो जाएगी। यह छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। पांच साल पहले ये 11वें स्थान पर था।

Budget 2019: Do you know the name of shayar which whom nirmala sitharaman maintain shayari | Budget 2019: जानिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में किस शायर का पढ़ा शेर

Budget 2019: जानिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में किस शायर का पढ़ा शेर

Highlightsभारत में यह पहली बार है बतौर पूर्णकालिक वित्त मंत्री कोई महिला आम बजट पेश कर रही है। लोकसभा में आम बजट पर चर्चा 8 जुलाई को हो सकती है।

नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट आज संसद में पेश किया जा रहा है। यह बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश कर रही हैं। निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण की शुरुआत एक शेर से  किया। उन्होंने कहा, 'यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है"।

बता दें कि यह मंज़ूर हाशमी की एक गजल की पंक्ति है।  इसके अलावा उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था इसी साल हो जाएगी। यह छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। पांच साल पहले ये 11वें स्थान पर था। 

बता दें कि यह बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश कर रही हैं। भारत में यह पहली बार है बतौर पूर्णकालिक वित्त मंत्री कोई महिला आम बजट पेश कर रही है। लोकसभा में आम बजट पर चर्चा 8 जुलाई को हो सकती है। बजट किसी भी सरकार के कामकाज के लिए सबसे अहम होता है। सरकार अपने प्रस्ताव पर बिना संसद की मंजूरी लिये एक पैसे खर्च नहीं कर सकती। साथ ही बजट सरकार की भविष्य की योजनाओं की भी एक तस्वीर सामने रखती है।

जानिए कौन है मंजूर हाशमी

मंजूर हाशमी एक प्रसिद्ध शायर और कवि हैं। इनका जन्म 14 सितंबर 1935 में बदायूं उत्तर प्रदेश में हुआ था। इन्होंने कई बेमिशाल गजल, शायरी और कविताएं लिखीं। इनका निधन साल 2008 में  अलीगढ़ में हुआ था।

यहां है पूरी गजल

यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है 
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है 

सफ़र में अब के ये तुम थे कि ख़ुश-गुमानी थी 
यही लगा कि कोई साथ साथ चलता है 

ग़िलाफ़-ए-गुल में कभी चाँदनी के पर्दे में 
सुना है भेस बदल कर भी वो निकलता है 

लिखूँ वो नाम तो काग़ज़ पे फूल खिलते हैं 
करूँ ख़याल तो पैकर किसी का ढलता है 

रवाँ-दवाँ है उधर ही तमाम ख़ल्क़-ए-ख़ुदा 
वो ख़ुश-ख़िराम जिधर सैर को निकलता है 

उम्मीद ओ यास की रुत आती जाती रहती है 
मगर यक़ीन का मौसम नहीं बदलता है

 (मंजूर हाशमी)

Web Title: Budget 2019: Do you know the name of shayar which whom nirmala sitharaman maintain shayari

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