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श्रीनगर: दुश्मनों के हमले पर BSF के ईसाई-मुस्लिम जवानों ने पहले की थी मौके पर काली पूजा, बाद में अनुरोध कर युद्ध स्मारक के बजाय वहां बनवाया ‘रण काली’ मंदिर

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 3, 2022 15:17 IST

इस पर बोलते हुए बीएसएफ के सेवानिवृत्त कमांडर मेजर घोष ने बताया, ‘‘किसी युद्ध स्मारक के लिए काली मंदिर बनाना बहुत अपंरपरागत है। लेकिन बीएसएफ ने जवानों के अनुरोध का सम्मान करते हुए ऐसा किया।’’

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ठळक मुद्देबीएसएफ ने 1972 में ‘रण काली’ नामक एक काली मंदिर बनाई थी। यह मंदिर ईसाई और बंगाली मुस्लिम जवानों के अनुरोध पर बनी थी। स्थानीय लोगों के लिए अब यह मंदिर एक तीर्थस्थल बन गया है।

श्रीनगर:सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने आधी सदी पहले दो जवानों के अनुरोध पर ‘रण काली’ नामक एक काली मंदिर बनाई थी। बताया जाता है कि एक ईसाई और एक बंगाली मुस्लिम के अनुरोध पर युद्ध स्मारक के तौर पर यहां सीमा चौकी (बोओपी) पर एक काली मंदिर का निर्माण किया था, जो अब स्थानीय लोगों के लिए एक तीर्थस्थल बन गया है। 

चटगांव (पहले पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा रहे) की सीमा से लगते दक्षिणी त्रिपुरा में श्रीनगर, अमलीघाट, समरेंद्रगंज और नलुआ में बीएसएफ की चार सीमा चौकियों की उस समय कमान संभाल रहे मेजर पी के घोष ने बीएसएफ पत्रिका ‘बॉर्डरमैन’ में यह किस्सा साझा किया है। 

एमएमजी चौकी के बारे में क्या बोले बीएसएफ के सेवानिवृत्त कमांडर मेजर

संपर्क करने पर मेजर घोष ने कहा कि श्रीनगर बीओपी सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित है और 1971 में पूर्वी बंगाल रेजीमेंट द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह किए जाने के बाद बीएसएफ ने यहां पहली मुक्तिवाहिनी (लिबरेशन आर्मी) बनाने में विद्रोहियों की मदद की थी। 

बीएसएफ के सेवानिवृत्त कमांडर मेजर घोष ने कहा, ‘‘श्रीनगर बीओपी में एमएमजी चौकी पाकिस्तानी सेना को रोकने में अहम भूमिका निभा रही थी। यह चटगांव-नोखाली इलाके के समीप अग्रिम निगरानी चौकी थी। इस इलाके में गोलीबारी कोई नयी बात नहीं थी लेकिन मुक्ति संग्राम के बढ़ने पर यह तेज हो गई।’’ 

उन्होंने कहा कि चूंकि एमएमजी चौकी पाकिस्तानी सेना को काफी नुकसान पहुंचा रही थी तो यह दुश्मन के लिए सटीक निशाना बन गई। 

दुश्मनों ने 10 मिनट में दागे 100 गोले

बीएसएफ के सेवानिवृत्त कमांडर मेजर घोष ने बताया, ‘‘एक घंटे या उससे ज्यादा वक्त तक लगातार बमबारी हुई। उस दिन 10 मिनट में 100 गोले दागे गए। चौकी पर दस्ते के तीन सदस्य थे, जिसमें एक नेपाली ईसाई, बंगाली मुस्लिम कांस्टेबल रहमान और कांस्टेबल बनबिहारी चक्रवर्ती थे। घटनास्थल पर हालात बहुत डरावने थे और मैंने उन्हें बंकर से बाहर नहीं निकलने को कहा।’’ 

कांस्टेबल बनबिहारी ने काली देवी की पूजा करने को कहा

हालात बदतर होने पर कांस्टेबल बनबिहारी चक्रवर्ती ने अन्य लोगों को अपने धर्म की परवाह न करने की सलाह दी और काली देवी की पूजा करने को कहा था। उन्होंने कहा, ‘‘उन्होंने अपने धर्म की परवाह नहीं करते हुए पूजा की। समीप में एक तालाब, दलदली जमीन और एक रात पहले हुई भारी बारिश के कारण चौकी बच गई। बांस के एक पेड़ ने भी बंकर तक बम आने से रोक दिया।’’ 

जब बीएसएफ की एफ कंपनी ने घटनास्थल पर एक युद्ध स्मारक बनाने का फैसला किया तो ईसाई और मुस्लिम सैनिक ने इसके बजाय वहां काली मंदिर बनाने का अनुरोध किया था। 

1972 में बना काली मंदिर

इस पर घोष ने कहा, ‘‘किसी युद्ध स्मारक के लिए काली मंदिर बनाना बहुत अपंरपरागत है। लेकिन बीएसएफ ने जवानों के अनुरोध का सम्मान करते हुए ऐसा किया।’’ गौरतलब है कि इसके लिए निधि स्थानीय लोगों से जुटाई गई और 1972 में काली मंदिर के निर्माण में बांग्लादेशियों ने भी सहयोग किया था। 

उन्होंने कहा, ‘‘हमने इसका नाम ‘रण काली’ रखा था। धार्मिक असहिष्णुता के दौर में ऐसे उदाहरण उम्मीद की किरण की तरह हैं।’’  

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