बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका के अधिकार में सुरक्षित इमारतों और घरों में रहने का अधिकार भी शामिल है

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: February 26, 2022 10:08 PM2022-02-26T22:08:04+5:302022-02-26T22:11:49+5:30

कोर्ट ने कहा कि आजीविका के अधिकार में सुरक्षित इमारतों और घरों में रहने का अधिकार भी शामिल है। खंडहर और जर्जर हो चुकी इमारतों के मामलों में इस स्थिति को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि उसमें रहने वाले लोग अपनी जान को जोखिम में डालते हुए वहां पर रहें।

Bombay High Court said, the right to livelihood under Article 21 includes the right to live in safe buildings and houses | बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका के अधिकार में सुरक्षित इमारतों और घरों में रहने का अधिकार भी शामिल है

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका के अधिकार में सुरक्षित इमारतों और घरों में रहने का अधिकार भी शामिल है

Highlightsइमारत का मालिकाना हक चाहे निजी हो या सार्वजनिक, सुरक्षा को पहली प्रथमिकता मिलनी चाहिएइमारत गिरने से लोगों की जान चली जाती है, ऐसी घटनाओं को खत्म किये जाने की जरूरत हैआजीविका के अधिकार में सुरक्षित इमारतों और घरों में रहने का अधिकार भी शामिल है

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने शनिवार को कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका के अधिकार में सुरक्षित इमारतोंऔर घरों में रहने का अधिकार भी शामिल है और उसका मालिकाना बक चाहे निजी हो या सार्वजनिक, नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना उनके संवैधानिक दायरे में आता है।

बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की बेंच ने मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में कई इमारतों के गिरने के बाद स्वत: संज्ञान लेते हुए एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।

याचिका पर सुनावाई के दौरान कोर्ट ने महाराष्ट्र में तेजी से फैल रहे अवैध ढांचों पर भी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि ऐसी घटनाएं, जहां इमारत गिरने से लोगों की जान चली जाती है। ऐसे मामलों को पूरी तरह से खत्म करने की जरूरत है।

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, “आजीविका के अधिकार में सुरक्षित इमारतों और घरों में रहने का अधिकार भी शामिल है। खंडहर और जर्जर हो चुकी इमारतों के मामलों में इस स्थिति को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि उसमें रहने वाले लोग अपनी जान को जोखिम में डालते हुए वहां पर रहें।”

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि इमारत का मालिकाना हक चाहे जिसके पास हो, चाहे वह निजी संपत्ति हो या फिर सार्वजनिक संपत्ति हो। इमारत के ढांचे की सुरक्षा सुनिश्चित करना उसके मालिक का संवैधानिक दायित्व है ताकि उसमें निवास करने वाले लोगों का जीवन सुरक्षित बना रहे।

इसके साथ ही बेंच ने अपने आदेश में यह भी कहा कि ऐसे मसले में एक तंत्र की स्थापना किये जाने की जरूरत है, जो निजी या सरकारी भवनों का ऑडिट करें और खंडहर हो चुकी इमारत के बारे में समय पर चेतावनी दे सकें ताकि उन्हें किसी भी दुर्घटना से पहले खाली कराया जा सके।

तेजी से बढ़ रहे अवैध निर्माण के मुद्दे पर कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि ऐसे मामलों में दंडित करने के लिए कानून के मजबूत हथियार की आवश्यकता है। कोर्ट ने कहा, “मानव जीवन को बचाने के लिए कानून को और मजबूत बनाने की जरूरत है। किसी भी बिल्डिंग की सुरक्षा सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए ताकि किसी का जीवन खतरे में न पड़े और साथ ही सामूहिक सार्वजनिक आवास योजनाओं को बढ़ावा देकर खुली जमीन पर झुग्गियों के बढ़ते अतिक्रमण को भी रोका जा सकता है।” 

कोर्ट ने इस मामले में कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि अवैध इमारतों के बनने और उनमें रहने वाले लोगों के पीछे नगरपालिका और राज्य के अधिकारियों की साफ मिलीभगत है। बॉम्बे हाईकोर्ट की बेंच ने कहा, “नगर निगम के शासन में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाये जाने की बहुत आवश्यकता है।" 

 

Web Title: Bombay High Court said, the right to livelihood under Article 21 includes the right to live in safe buildings and houses

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