काश, राजीव जी आज हमारे बीच होते तो देश की राजनीति और कांग्रेस की दिशा कुछ और होती...
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: August 20, 2018 04:58 IST2018-08-20T04:58:59+5:302018-08-20T04:58:59+5:30
राजीव गांधी जीवित होते तो आज 74 वर्ष पूरा कर 75 वें वर्ष में प्रवेश करते। वे कांग्रेस के प्रमुख होते। उनके जीवित रहते देश की राजनीति किस दिशा में होती, कांग्रेस कहां होती।। आदि ऐसे प्रश्न हैं जिनके बारे में कुछ कहना कठिन है।

काश, राजीव जी आज हमारे बीच होते तो देश की राजनीति और कांग्रेस की दिशा कुछ और होती...
अवधेश कुमार
राजीव गांधी जीवित होते तो आज 74 वर्ष पूरा कर 75 वें वर्ष में प्रवेश करते। राजनीति के लिए यह उम्र असामान्य नहीं है। इसलिए आज भी वे कांग्रेस के प्रमुख होते। उनके जीवित रहते देश की राजनीति किस दिशा में होती, कांग्रेस कहां होती।। आदि ऐसे प्रश्न हैं जिनके बारे में कुछ कहना कठिन है। किंतु जिन्होंने भी राजीव गांधी का राजनीतिक जीवनकाल देखा है उनके लिए उनको भुला पाना कठिन है। राजनैतिक विरोधियों को आज भी उनके व्यक्तित्व के खिलाफ कहने के लिए कुछ तलाशना पड़ता है। एक निश्छल, साहसी, लोकतांत्रिक, उदार चरित्न, सरलता, सहजता उनके संपूर्ण व्यवहार में साफ झलकते थे।
राजनीति में उनका प्रवेश अपने छोटे भाई संजय गांधी की विमान दुर्घटना में हुई मृत्यु की त्नासदी के कारण हुआ। इसी तरह मां इंदिरा गांधी की सुरक्षाकर्मियों द्वारा की गई हत्या की त्नासदी के कारण उनको प्रधानमंत्नी बनना पड़ा। इतनी बड़ी दो त्नासदियों के बावजूद स्वयं को संयत और संतुलित रहकर काम करना तथा अपने निर्णयों में उसके प्रभाव से रहित रहना आसान नहीं होता। किंतु राजीव गांधी ने ऐसा ही किया।
भाई की मृत्यु के बाद संगठन की जिम्मेवारी मिली तो उन्होंने देश भर का दौरा कर स्वयं संगठन को समझा, जहां आवश्यकता थी उसे ठीक करने की कोशिश की। उस दौरान ही कांग्रेस के नेताओं को आभास हो गया कि राजीव गांधी का पूरा संस्कार लोकतांत्रिक है। जब प्रधानमंत्नी का दायित्व मिला तो उसके बाद देश के सामने जो मुख्य चुनौतियां थीं उनको टालने या उनसे बचने की जगह सीधा उसका सकारात्मक नजरिए से सामना किया और उसका समाधान करने की कोशिश की।
राजीव गांधी के 31 अक्तूबर 1984 से 2 दिसंबर 1989 तक के प्रधानमंत्नी के रूप में कार्यो की आपको एक लंबी फेहरिस्त मिलेगी जो उनकी सोच और क्षमता के प्रमाण हैं। देश को 21 वीं सदी में जाने का आधार तैयार करने के लिए उन्होंने जो कदम उठाए, आगे की सरकारों को उससे दिशा मिली। पंचायतों को उन्होंने अधिकार दिए। 18 वर्ष के आयुवर्ग को मताधिकार दिया। यह हमारा दुर्भाग्य था कि जिस तमिल आतंकवाद को समाप्त कर सबको मुख्यधारा में लाने की उन्होंने कोशिश की, उसने ही उनकी इहलीला समाप्त कर दी।