Madhya Pradesh Election : गुजरात वाले प्लान से थम सकती है मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर
By राजेश मूणत | Updated: December 20, 2022 15:14 IST2022-12-20T15:09:30+5:302022-12-20T15:14:11+5:30
भाजपाइयों का दावा है कि बदलाव होता है तो जिले की पांच में से चार सीटों पर विजय प्राप्त हो सकती है। बताया जाता है की गुप्तचर रिपोर्ट में भी ऐसी ही जानकारी मौजूदा सरकार तक पहुंच गई है।

Madhya Pradesh Election : गुजरात वाले प्लान से थम सकती है मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर
रतलाम (मध्य प्रदेश): गुजरात में अपनाई गई रणनीति और चुनाव में मिली विजय से जिले के भाजपाई बहुत उत्साहित हैं। यह उत्साह गुजरात की विजय से ज्यादा पार्टी संगठन और विधानसभा प्रत्याशियों में बदलाव की आकांक्षा को लेकर है। बताया जाता है की पार्टी के आम कार्यकर्ता चाहते हैं कि जिले में भी बदलाव की ऐसी ही रणनीति यदि लागू कर दी जाए तो व्याप्त सत्ता विरोधी लहर से पार्टी बच सकती है।
भाजपाइयों का दावा है कि बदलाव होता है तो जिले की पांच में से चार सीटों पर विजय प्राप्त हो सकती है। बताया जाता है की गुप्तचर रिपोर्ट में भी ऐसी ही जानकारी मौजूदा सरकार तक पहुंच गई है। एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया की आने वाले हफ्तों में बीजेपी मध्य प्रदेश में मतदाता जुड़ाव, समुदायों के बीच ठोस पहुंच और मतदाताओं को प्रेरित करने के लिए बूथ समितियों को पुनर्जीवित करने के प्रयासों को दोहराएगी।
यह प्रयास तभी सफल होंगे जब जिले के पार्टी संगठन को सुसुप्त अवस्था से बाहर निकाला जाए। जारी चर्चाओं के अनुसार वर्तमान में संगठन के पदाधिकारियों और अध्यक्ष के मध्य तालमेल का अभाव पार्टी कार्यक्रमों में स्पष्ट नजर आता है। जिले में वर्तमान विधायकों के विरुद्ध विद्रोह की स्थिति भी विगत दीप पर्व पर सार्वजनिक हो चुकी है।
तब संगठन के वर्तमान पदाधिकारियों और विधायकों से नाराज भाजपाई कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर दीप पर्व के नाम पर शक्ति प्रदर्शन किया था। कहा जा रहा है की यदि इस तरह सार्वजनिक हुई नाराजगी को यदि समय रहते दूर नही किया गया तो पार्टी की जिले में कोई भी एक सीट सुरक्षित नहीं रह जाएगी।
'गुजरात वाले प्लान से थम सकती है सत्ता विरोधी लहर'
स्थानीय भाजपाई दबे स्वर में कहते हैं कि गुजरात में बीजेपी ने रणनीति के कारण 27 वर्षों तक सत्ता में रहने के बावजूद विधानसभा चुनाव जीता है। संदर्भ के लिहाज से प्रदेश में बीजेपी 2003 लेकर 2018 तक लगातार सत्ता में रही थी। लेकिन विगत वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खाते में 230 सीटों में से 108 सीटें आई थीं। वहीं, कांग्रेस ने 114 सीटें जीतकर सरकार बना ली थी।
तब भी जिले में भाजपा की गढ़ सीट आलोट को कांग्रेस ने छीन लिया था। जिले की जावरा सीट भी पार्टी ने अल्प मार्जिन से जीती थी। उसके बाद विगत निकाय निर्वाचन में पार्टी की जो बुरी गत हुई उसके लिए कार्यकर्ताओं की नाराजगी को ही जिम्मेदार माना गया था। रतलाम शहर से भाजपा का महापौर उम्मीदवार भले जीत गया लेकिन पार्टी को विधानसभा निर्वाचन के मुकाबले 35 हजार मत कम मिले थे।
वैसे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद 'वीडी शर्मा ने अध्यक्ष बनते ही संगठन में बदलाव किए थे। लेकिन तब बदलाव का असर रतलाम के पार्टी संगठन पर नहीं हो सका था। पार्टी के एक जिम्मेदार पदाधिकारी ने बताया की हमे लंबे वक्त से सत्ता में बने रहने की चुनौतियों और खतरों के बारे में जान लेना चाहिए। इससे एक तरह की बोरियतऔर नाराजगी आ जाती है।
इसे ध्यान में रखते हुए बीजेपी संगठन सहित पार्टी उम्मीदवारों के चयन में इस बार बड़ा बदलाव कर सकती है। सत्ता और संगठन में बदलाव के साथ युवा नेतृत्व कमान सम्हालने के लिए तैयार है। बदलाव की खबरों से उत्साहित एक पदाधिकारी ने बताया की पार्टी की नीति के अनुसार जिलाध्यक्ष 50 साल से कम उम्र का होगा। अभी सभी मंडल अध्यक्ष 35 साल से कम उम्र के होंगे। इससे पुराने और नए नेताओं के बीच न तो टकराव होगा और सामंजस्य का अभाव नहीं रहेगा।
कौन होगा नया जिलाध्यक्ष?
पार्टी संगठन में बदलाव की खबरों से उत्साहित स्थानीय भाजपाइयों में पार्टी के जिलाध्यक्ष पद के लिए जोर आजमाइश शुरू हो गई है। पार्टी सूत्रों के अनुसार जिलाध्यक्ष के लिए दावेदारी करने वालों में पार्टी के ग्रामीण क्षेत्र के नेता रतनलाल लाकड़, बंटी पितलिया, पूर्व जिलाध्यक्ष बजरंग पुरोहित, पूर्व महापौर शैलेंद्र डागा के नाम प्रमुखता से सामने आए है। लेकिन यदि उम्र सीमा का ध्यान रखकर चयन होता है तो नए नाम में पार्टी के पिछड़ा वर्ग के नेता दिनेश राठौड़ और वर्तमान उपाध्यक्ष सुनील सारस्वत और विनोद करमचंदानी का नाम सभी को चौंका सकता है।