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भाजपा के लिए आसान नहीं यूपी में दूसरे चरण का चुनाव, समीकरणों में उलझी हैं 8 सीटें

By नितिन अग्रवाल | Updated: April 18, 2019 06:03 IST

लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के लिए गुरुवार को उत्तरप्रदेश की 8 महत्वपूर्ण सीटों पर मतदान होगा. 2014 में इन सभी पर भाजपा की जीत हुई थी

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लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के लिए गुरुवार को उत्तरप्रदेश की 8 महत्वपूर्ण सीटों पर मतदान होगा. 2014 में इन सभी पर भाजपा की जीत हुई थी, लेकिन बदले राजनीतिक माहौल में उसके लिए इस बार चुनौती कड़ी है.

गुरुवार को यूपी के आगरा, फतेहपुर सीकरी, मथुरा, अलीगढ़, हाथरस, अमरोहा, बुलंदशहर और नगीना लोकसभा के लिए मतदान होगा. इनमें से अलीगढ़, बुलंदशहर, हाथरस और आगरा परंपरागत रूप से भाजपा के गढ़ माने जाते हैं. यहां अधिकतर समय भाजपा का कब्जा रहा है. इस बार सपा-बसपा-रालोद के गठबंधन और वोटरों के गणित को देखते हुए भाजपा को अपने गढ़ में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.

अलीगढ़ में 27% अगड़े, 24% पिछड़े और 12% वोटर अतिपिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखते हैं. यहां 15% मुस्लिम मतदाता भी हैं. 1991 से 2014 तक भाजपा लगातार चार बार चुनाव जीती. 2004 में कांग्रेस और 2009 में बसपा को यहां जीत हासिल हुई लेकिन 2014 में फिर भाजपा के सतीश कुमार ने बसपा को लगभग 2.80 लाख मतों से मात दी. इस बार सपा-बसपा गठबंधन में हैं ऐसे में पिछड़े और मुस्लिम एक साथ आते हैं तो भाजपा का गणित फिर बिगड़ सकता है.

आगरा सीट से भाजपा ने एस. पी. बघेल को उतारा है. उनका मुकाबला गठबंधन के उम्मीदवार सपा के मनोज सोनी से है. कांग्रेस ने भी यहां से प्रीता हरित को उतारा है. इस सीट पर 37% वोटर दलित और मुस्लिम हैं. 2009 से लगातार भाजपा यहां जीतती रही है. 2014 में भाजपा के रमाशंकर कठेरिया ने यहां 3 लाख मतों से बसपा के नारायण सिंह को मात दी थी. लेकिन इस बार पार्टी ने उनका टिकट काट दिया है.

मथुरा संसदीय क्षेत्र से भाजपा ने हेमामालिनी को उम्मीदवार बनाया है. मौजूदा सांसद ने 2014 में रालोद के अजित सिंह के बेटे जयंत सिंह को लगभग 2 लाख मतों से हराया था. इस बार उनके मुकाबला रालोद के कुंवर नरेंद्र सिंह से है. कांग्रेस ने यहां महेश पाठक को मैदान में उतारा है. यहां 4 लाख जाट, 2.5 लाख ब्राह्मण और करीब 2.5 लाख राजपूत वोटर हैं. इस गणित को देखते हुए यहां भी भाजपा के लिए चुनौती कड़ी है.

फतेहपुर सीकरी में भाजपा के राजकुमार चहेर का मुकाबला बसपा के गुड्डू चौधरी और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर से है. यहां 2 लाख जाट और 3 लाख ब्राह्मण मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. भाजपा ने निगेटिव रिपोर्ट को देखते हुए मौजूदा सांसद बाबूलाल चौधरी का टिकट काटा है.

हाथरस में मुकाबला भाजपा के राजवीर सिंह वाल्मीकि, सपा के रामजी लाल सुमन और कांग्रेस के त्रिलोकीराम दिवाकर के बीच है. जाट बहुल इलाके में 3 लाख जाट, 3 लाख दलित, 2 लाख ब्राह्मण, 1.5 लाख राजपूत, 1.5 लाख बघेल और 1.5 लाख मुस्लिम मतदाता हैं. 2014 में यहां कुंवर दिवाकर ने बसपा के मनोज सोनी को 3.26 लाख मतों से मात दी थी.

बुलंदशहर सीट भी परंपरागत रूप से भाजपा का गढ़ है. 1991 के बाद से 2009 के अतिरिक्त भाजपा यहां से लगातार जीतती रही है. यहां 1.5 लाख ब्राह्मण, 1 लाख राजपूत, 1 लाख यादव, 1 लाख जाट और 3.5 लाख दलित वोटर हैं. 2.5 लाख मुस्लिम और 2 लाख लोध मतदाता भी हैं जो निर्णायक भूमिका में हैं. 2014 में यहां से भाजपा के भोला सिंह ने 3.68 लाख मतों से सपा के उम्मीदवार को मात दी थी. दलित और मुसलिम वोटरों की एकजुटता से यहां भी भाजपा की राह आसान नहीं लग रही है.

नगीना सुरक्षित सीट है. यहां भाजपा ने मौजूदा सांसद यशवंत सिंह पर फिर से भरोसा किया है. उनका मुकाबला बसपा के गिरीश चंद के बीच है. कांग्रेस ने यहां पूर्व आईएएस आर. के. सिंह की पत्नी ओमवती को मैदान में उतारा है. यहां के लगभग 50% मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. 21% अनूसूचित जाति से ताल्लुक रखते हैं. मतदाताओं के आंकड़ों के लिहाजा से यहां भी भाजपा के लिए कड़ी चुनौती है.

अमरोहा से भाजपा ने मौजूदा सांसद कुंवर सिंह तंवर को फिर से मैदान में उतारा है. उनका मुकाबला बसपा के दानिश अली और कांग्रेस के सचिन चौधरी से है. यहां 5 लाख मुस्लिम, 2.5 लाख दलित, 1 लाख गुर्जर मतदाता निर्णायक हैं. इसके अलावा 1 लाख कश्यप, 1.5 लाख जाट और 95 हजार लोध मतदाता भी हैं. 2014 में कुंवर सिंह ने लगभग 1.5 लाख मतों से सपा की सुमेरा अख्तर को मात दी थी

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