ब्लॉग: जितनी अधिक सहूलियत, उतना कम मतदान

By पंकज चतुर्वेदी | Published: June 8, 2024 02:27 PM2024-06-08T14:27:59+5:302024-06-08T14:28:03+5:30

मारा लोकतंत्र भी एक ऐसे अपेक्षाकृत आदर्श चुनाव प्रणाली की बाट जोह रहा है, जिसमें कम से कम सभी मतदाताओं का पंजीयन हो और मतदान तो ठीक तरीके से होना सुनिश्चित हो सके।

Lok Sabha Election 2024 The more convenience the less turnout | ब्लॉग: जितनी अधिक सहूलियत, उतना कम मतदान

ब्लॉग: जितनी अधिक सहूलियत, उतना कम मतदान

भारत की 18वीं लोकसभा के निर्वाचन की प्रक्रिया संपन्न होने के साथ ही एक सवाल फिर खड़ा हुआ कि आखिर बड़े शहरों में रहने वाले, खासकर संपन्न इलाकों के लोग वोट क्यों नहीं डालते जबकि उनके क्षेत्रों में जन सुविधा-सुंदरता और शिकायतों पर सुनवाई सरकारें प्राथमिकता से करती हैं।

गौर करने वाली बात है जो शहर जितना बड़ा है, जहां विकास और जनसुविधा के नाम पर सरकार बजट का अधिक हिस्सा खर्च होता है, जहां प्रति व्यक्ति आय आदि औसत से बेहतर है, जहां सड़क-बिजली–पानी-परिवहन अन्य स्थानों से बेहतर होते हैं। वहीं के लोग वोट डालने निकले नहीं।

हरियाणा की दस सीटों में जिन दो जगहों पर सबसे कम मतदान हुआ, वह हैं दिल्ली का विस्तार कहे जाने वाले-फरीदाबाद और गुरुग्राम हैं। फरीदाबाद में ग्रामीण अंचल की हथिन में 70 फीसदी, पलवल और पर्थला में 65 फीसदी पार वोट पड़े, सो वहां आंकड़ा 60.20 पर पहुंच पाया, वर्ना फरीदाबाद शहर की संभ्रांत बस्तियां कहलाने वाले इलाकों में मतदान 55 से नीचे रहा।

गुरुग्राम सीट पर भी नूहं, पुन्हाना, पटौदी, बादशाहपुर जैसे ग्रामीण अंचलों में 65 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ। यहां शहर में तो बमुश्किल 55 फीसदी ही वोट गिरे। गाजियाबाद और नोएडा में भी वोट प्रतिशत वहीं ठीक रहा जहां जरूरतमंद लोगों की घनी आबादी है, वरना भरे पेट के मुहल्लों ने तो निराश ही किया।

सवाल यह है कि क्या लोकतंत्र को सहेज कर रखने की जिम्मेदारी सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर लोगों पर ही है।

इसके बाद भी जब विकास, सौन्दर्यीकरण, नई सुविधा जुटाने की बात आती है तो प्राथमिकता उन्हीं क्षेत्रों को दी जाती है जहां के लोग कम मतदान करते हैं।

मतदान को अनिवार्य करना भले ही फिलहाल वैधानिक रूप से संभव न हो लेकिन यदि दिल्ली एनसीआर से यह शुरुआत की जाए कि विकास योजनाओं का पहला हक उन विधान सभा क्षेत्रों का होगा, जहां लोकसभा के लिए सर्वाधिक मतदान हुआ तो शायद अगली बार पॉश इलाकों के लोग मतदान की अनिवार्यता को महसूस कर सकें।
राजनैतिक दल कभी नहीं चाहेंगे कि मतदान अधिक हो, क्योंकि इसमें उनके सीमित वोट-बैंक के अल्पमत होने का खतरा बढ़ जाता है।

कोई भी दल चुनाव के पहले घर-घर जा कर मतदाता सूची के नवीनीकरण का कार्य करता नहीं और बीएलओ पहले से ही कई जिम्मेदारियों में दबे सरकारी मास्टर होते हैं। हमारा लोकतंत्र भी एक ऐसे अपेक्षाकृत आदर्श चुनाव प्रणाली की बाट जोह रहा है, जिसमें कम से कम सभी मतदाताओं का पंजीयन हो और मतदान तो ठीक तरीके से होना सुनिश्चित हो सके।

Web Title: Lok Sabha Election 2024 The more convenience the less turnout