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बिहार: नीतीश कुमार की जदयू विधायकों की संख्या के लिहाज से भले ही तीसरे नंबर पर हो, लेकिन धन के मामले में है सबसे अव्वल

By एस पी सिन्हा | Updated: April 19, 2023 17:47 IST

बिहार की चार प्रमुख पार्टियों में जदयू सबसे धनवान पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई है। वहीं राजद के खाते में नील बटा सन्नाटा है। यही हाल कांग्रेस का भी है। कांग्रेस की बिहार इकाई के नेता रूटीन खर्च चलाने में अक्सर हांफते रहते हैं।

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ठळक मुद्देनीतीश की पार्टी जदयू संख्याबल में भले तीसरे नंबर की हो, लेकिन धन के मामले में पहले नंबर पर हैविधायकों की संख्या के हिसाब से बिहार की सबसे बड़ी पार्टी राजद की माली हालत बेहद खराब हैवहीं देश की सबसे आमिर पार्टी कही जाने वाली भाजपा के बिहार के खाते में महज 51 लाख रुपये हैं

पटना: बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू संख्याबल के लिहाज से भले बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी हो, लेकिन धन के मामले में वह पहले नंबर की पार्टी है। जबकि विधायकों की संख्या के हिसाब से सबसे बड़ी पार्टी राजद की माली हालत बेहद खराब है। वहीं देश की सबसे आमिर पार्टी कही जाने वाली भाजपा के बिहार के खाते में महज 51 लाख रुपये हैं।

बिहार की चार प्रमुख पार्टियों में जदयू सबसे धनवान पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई है। वहीं राजद के खाते में नील बटा सन्नाटा है। यही हाल कांग्रेस का भी है। कांग्रेस की बिहार इकाई के नेता रूटीन खर्च चलाने में अक्सर हांफते रहते हैं। जबकि कम्युनिस्ट पार्टियां तो अपने खर्च के लिए अपने विधायकों का वेतन ले लेती हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार जदयू ने जनवरी 2022 के आखिरी हफ्ते में ‘स्वैच्छिक सहयोग राशि संग्रह’ अभियान शुरू किया। जिसके तहत पार्टी के खाते में कुल 71 करोड़ आए। हालांकि पार्टी ने इसकी आधिकारिक पुष्टि अभी तक नहीं की है। चुनाव आयोग और एडीआर के अनुसार साल 2020-21 में जदयू को कुल 65.31 करोड़ मिले थे।

जदयू के प्रदेशभर में 76 लाख से ज्यादा सदस्य हैं। इनके मेंबरशिप (प्रति 5 रुपया) का रुपया खाते में है। पार्टी, अपने विधायकों से हर महीने 500 रुपया लेती है। वहीं, बिहार भाजपा के खाते में 51 लाख है। इसके आलावा ‘आजीवन सहयोग निधि’ के सदस्य भी पार्टी को चंदा देते हैं।

इस संबंध में कोषाध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने बताया कि किसी तरह काम चल जाता है। 1 करोड़ सदस्यों का सदस्यता शुल्क (5-5 रुपया) सुरक्षित है। विधायक व विधान पार्षद से 6 हजार व सांसद से 10 हजार लिया जाता है। अब इसे बढ़ाकर इनसे क्रमश: 10 और 25 हजार रुपए लेने की बात है। जबकि राजद के कोषाध्यक्ष सुनील सिंह का कहना है कि पार्टी का बैंक बैलेंस लगभग जीरो है। सिर्फ 1 करोड़ सदस्यों के मेंबरशिप का 10-10 रुपया खाते में है। रूटीन खर्च बहुत दिक्कत से पूरा होता है। चंदा की बड़ी रकम नहीं मिलती। 79 विधायक, 14 एमएलसी हैं। इनसे हर माह 10-10 हजार लिया जाता है। इसी से रूटीन खर्च चलता है। साल 2019-20 में राजद पर 3.24 करोड़ की देनदारी थी। पार्टी की इस स्थिति का एक कारण ईडी और सीबीआई की जांच भी शामिल है।

इसके आलावा बिहार कांग्रेस का 1.55 करोड़ बैंक में फिक्स है। इसका सूद, रूटीन खर्च में मददगार है। यहां 35 स्टाफ हैं। इनके वेतन पर हर माह करीब 4 लाख रुपए खर्च होता है। विधायकों से पैसा लिया जाता है। 28 लाख नए मेंबर बने हैं। मेंबरशिप का 5-5 रुपया बैंक में है। सबसे बड़ी बात है कि पार्टी को बिहार में चंदा नहीं मिलता। बीच-बीच में दिल्ली से पैसा आता है। कहा जा रहा है कि भाजपा और कांग्रेस के बिहार के नेता इसलिए थोड़ा निश्चिंत हैं, चूंकि चुनावी मौके पर उनको दिल्ली से बड़ी मदद आ जाती है। सपा, बसपा बहुत अमीर है, मगर बिहार में उनका चुनावी वजूद केवल कहने भर को रहा है। ऐसे में जदयू, राजद, भाकपा माले (लिबरेशन) जैसी पार्टियां, आर्थिक मोर्चे से ज्यादा सरोकार रखी हुई हैं।

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