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बिहार में कोरोना महामारी के बीच सरकारी दावों की खुली पोल, बेतिया में बेटी ने खुद किया कोविड संक्रमित पिता के शव को पैक

By एस पी सिन्हा | Updated: May 12, 2021 16:13 IST

बिहार में कोरोना के कहर के बीच कई ऐसे उदाहरण सामने आ रहे हैं जो सरकारी दावों की हकीकत बता देते हैं. जमीनी सच यही है कि ज्यादातर जगहों पर परिजन परेशान हैं और हर एक काम के लिए उन्हें अतिरिक्त पैसे चुकाने पड़ रहे हैं.

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ठळक मुद्देबिहार के बेतिया की घटना, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज बेटी को खुद पैक करना पड़ा पिता का शवमुजफ्फरपुर स्थित एसकेएमसीएच कोविड वार्ड में भी बॉडी की पैकिंग के लिए एक हजार रुपये मांगने की बात आई है सामनेकई सरकारी अस्पतालों में भी बिना रुपए खर्च किये कोई सुविधा नहीं मिलने की परिजन कर रहे हैं शिकायत

पटना: बिहार में कोरोना के कहर से स्थिति दिन प्रतिदिन और भयानक होती जा रही है. हर दिन एक के बाद एक दिल दहला देने वाली तस्वीरें सामने आ रही हैं. राज्य में व्यवस्था ठीक करने में मंत्री से लेकर अस्पताल व जिला प्रशासन की टीम लगी हुई है. लेकिन व्यवस्था ठीक होने के बजाय बिगड़ती ही जा रही है. 

हालात ऐसे हो गये हैं कि अस्पताल में बिना रुपए खर्च किये कोई सुविधा नहीं मिलती. चाहे मरीज को कोविड वार्ड ले जाने या फिर डेडबॉडी को निकालने में. परिजन को जेब डीली करनी पडती है. कोविड मरीज की मौत के बाद पैकिंग के लिए एक हजार रुपए देने पडते हैं. जिसने नही दिया, फिर वह या तो खुद शव पैक करे और उठा ले जाये अथवा वार्ड ब्याय शव को जमीन पर पटक देगा.

ऐसे में लोगों में स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर काफी नाराजगी भी देखने को मिल रही है. इसी कड़ी में बेतिया से एक ऐसा मामला सामने आया जिसे जानकार आप भी हैरान रह जाएंगे. 

बेतिया में बेटी ने खुद किया कोरोना संक्रमित पिता के शव को पैक

बेतिया के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मंशा टोला के रहने वाले पेशे से ड्राइवर 55 वर्षीय फखरू जमा की मौत कोरोना संक्रमण से हो गई. मौत के बाद जब अस्पताल में किसी भी कर्मचारी ने शव नहीं छुआ तो बेटी ने खुद अपने पिता का शव पैक किया. 

बताया जाता है कि मृतक के परिजन काफी समय से शव को कोरोना प्रोटोकॉल के अनुसार सौंपने की मांग कर रहे थे. अस्पताल में फखरू जमा की पत्नी, बेटी रेशमा परवीन और पुत्र मो. शिबू मौजूद थे. लगभग छह घंटे तक इंतजार के बाद भी अस्पताल प्रशासन में कोई सुगबुगाहट नहीं देख रेशमा परवीन खुद जिला प्रशासन द्वारा बनाए गए कंट्रोल रूम में पहुंचीं. 

वहां पहुंचकर उन्होंने शिकायत दर्ज कराई तो अस्पताल के कर्मियों ने उन्हें शव पैक करने वाला बैग और पीपीई किट थमा दिया. रेशमा ने अपने भाई मो. शिबू के सहयोग से पिता के शव को बैग में पैक किया. फिर डेडबॉडी को स्ट्रेचर पर रखकर नीचे ले आई. उसके बाद दोनों भाई- बहनों ने मिलकर शव को एम्बुलेंस में रखा. 

रेशमा ने बताया कि वे लोग सुबह पांच बजे से परेशान थे. यहां अस्पताल में कोई सुनने वाला नहीं था. मरीज और उनके परिजनों की परेशानियों से अधिकारियों का कोई लेना-देना नहीं है. अंत में थक कर हमलोगों ने खुद अपने पिता के शव को अस्पताल प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराए गए बैग में पैक किया. 

इस बाबत पूछे जाने पर अस्पताल अधीक्षक डॉ. प्रमोद तिवारी ने कहा कि उन्हें इस मामले की जानकारी मिली है. वे खुद मामले की जांच करेंगे. 

मुजफ्फरपुर में डेडबॉडी पैकिंग के लिए मांगे गए एक हजार रुपये

वहीं, दूसरी कहानी मुजफ्फरपुर स्थित एसकेएमसीएच कोविड वार्ड की है, जहां दोपहर में एक मरीज की मौत कोविड वार्ड में हो गई. सफाई कर्मी डेडबॉडी पैकिंग के लिए एक हजार रुपए मांग रहा था. लेकिन परिजन के पास रुपये नहीं थे. 

परिजन कागजी कार्रवाई के बाद शव को खुद ट्राली पर रखे ले जाने लगे. गेट पर तैनात गार्ड ने रोका तो अस्पताल मैनेजर को जानकारी हुई. इसके बाद डेडबॉडी की पैकिंग कर परिजन को दिया गया. 

सीतमढ़ी: बेटे की जान नहीं बचा सका बूढा पिता

सीतामढ़ी के एसकेएमसीएच के कोरोना वार्ड में भर्ती विमलेश की जान बचाने के लिए उसके पिता सुख सागर राम 72 साल उम्र में भी खुद ऑक्सीजन का सिलेंडर अपने कंधे पर लाद कर अस्पताल के ऊपरी तल पर स्थित कोविड वार्ड में पहुंचाते रहे. लेकिन वह अपने बेटे को नही बचा पाये. 

वह रोज कंधे पर ऑक्सीजन सिलेंडर लिए लडखडाते कदमों से अस्पताल की सीढी चढते, लेकिन वह पुत्र की जान नहीं बचा पाये. 

सीतामढी जिले के सुरसंड निवासी सुखसागर राम ने बताया कि विमलेश मेहनत मजदूरी कर जीवन यापन करता था. उसे तीन बेटी और एक बेटा है. वह एक शादी में शामिल होने नेपाल गया हुआ था. इसी दौरान उसकी तबीयत बिगडने लगी. वहां से वह सीधे मुजफ्फरपुर पहुंचा. उसका ऑक्सीजन लेबल काफी गिर चुका था. 

जांच में कोरोना की पुष्टि होने पर उसे एसकेएमसीएच में भर्ती कराया गया. एक-एक ऑक्सीजन सिलेंडर भी अधिक दाम पर खरीदा. अस्पताल के कर्मी ऑक्सीजन सिलेंडर लाने के लिए तैयार नहीं होते था. उनका कहना है कि खुद ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर आइये. लेकिन इसके बाद भी वह अपने बेटे को नहीं बचा पाये. 

बता दें कि नियमानुसार ऑक्सीजन अस्पताल को ही व्यवस्था करनी है, वह भी सरकारी अस्पताल में, बावजूद इसके ऑक्सीजन बाहर से रोगी के परिजनों के द्वारा मंगाये जाते रहे. यह सब सरकार के व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है.

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