बिहार में दलित मतदाताओं की संख्या 20 फीसदी?, 40 सीटें आरक्षित, कांग्रेस, राजद, जदयू और भाजपा की नजर, किस सीट पर क्या समीकरण

By एस पी सिन्हा | Updated: October 1, 2025 15:03 IST2025-10-01T15:01:48+5:302025-10-01T15:03:17+5:30

रविदास की आबादी 31 फीसदी है और लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में इनकी ऐसी संख्या है जो चुनाव के नतीजे पर असर डालती है।

bihar chunav number Dalit voters in Bihar 20 percent Congress, RJD, JDU and BJP keeping eye which seats chirag paswan jitam ram rajesh ram | बिहार में दलित मतदाताओं की संख्या 20 फीसदी?, 40 सीटें आरक्षित, कांग्रेस, राजद, जदयू और भाजपा की नजर, किस सीट पर क्या समीकरण

सांकेतिक फोटो

Highlightsबिहार में दलित मतदाताओं की संख्या करीब 20 फीसदी है।दलित मतदाताओं में सबसे बड़ा हिस्सा रविदास समाज का है।रविदास के बाद दलितों में दूसरी सबसे बड़ी आबादी पासवान जाति की है।

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार दलित वोटों के लिए महासंग्राम मचने की संभावना है। सूबे की दोनों प्रमुख गठबंधनों के बीच दलित वोट बैंक को साधने की जबर्दस्त होड़ दिख रही है। एनडीए के खेमे में दलित तबके से आने वाले लोजपा(रा) प्रमुख चिराग पासवान और हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा(से)-हम के संयोजक जीतन राम मांझी जैसे चेहरे पहले से मौजूद हैं तो वहीं कांग्रेस ने अपने विधायक राजेश राम को प्रदेश में पार्टी की कमान देकर दलित वोट बैंक पर एनडीए का एकाधिकार तोड़ने का प्रयास किया है। दरअसल, बिहार में दलित मतदाताओं की संख्या करीब 20 फीसदी है।

जिसमें अलग-अलग जातियां शामिल हैं। दलित मतदाताओं में सबसे बड़ा हिस्सा रविदास समाज का है। इसमें रविदास की आबादी 31 फीसदी है और लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में इनकी ऐसी संख्या है जो चुनाव के नतीजे पर असर डालती है। रविदास के बाद दलितों में दूसरी सबसे बड़ी आबादी पासवान जाति की है।

राज्य में पासवान 30 फीसदी हैं। जो गणित रविदास समाज के साथ है, लगभग वैसा ही पासवान जाति के साथ। हर विधानसभा क्षेत्र में इनकी मौजूदगी उम्मीदवारों की किस्मत तय करता है। इसके बाद दलितों में तीसरी बड़ी आबादी मुसहर यानी मांझी समाज की है। दलित तबके में मुसहर आबादी 14 फीसदी है।

243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में कुल 40 सीटें ऐसी हैं जो अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित हैं। मौजूदा विधानसभा में इन 40 सीटों में से 21 पर एनडीए का कब्जा है और 17 सीटें महागठबंधन के पास है। भाजपा और जदयू के सबसे अधिक दलित विधायक मौजूदा विधानसभा में हैं। भाजपा के 9 और जदयू के 8 दलित विधायक हैं।

ऐसे में इन 40 सुरक्षित सीटों पर दोनों गठबंधनों की तरफ से जीत की कोशिश होगी। लेकिन उससे बड़ी बात यह भी है कि जो सामान्य सीटें हैं वहां भी दलित मतदाता निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव से तेजस्वी यादव को दलित वोट बैंक में सेंधमारी करने में तब सफलता मिली जब राजद ने भाकपा-माले जैसी वामपंथी पार्टी को महागठबंधन में शामिल किया।

माले के प्रभाव वाले शाहाबाद के किला के में इस का नतीजा भी देखने को मिला। माले के साथ दलित वोट बैंक शाहाबाद के इलाके में जुड़ा हुआ रहा है और 2020 के विधानसभा के साथ-साथ 2024 के लोकसभा चुनाव में भी तेजस्वी और उनके महागठबंधन को इसका फायदा मिला।

राजद का यह प्रयोग सफल रहा और इसीलिए अब महागठबंधन में तेजस्वी यादव को दलित वोट बैंक साधने के लिए सबसे अधिक भरोसा भाकपा-माले जैसी सहयोगी पार्टी पर है। उधर कांग्रेस ने भी दलित वोट बैंक साधने के लिए प्रदेश नेतृत्व की कमान रविदास समाज से आने वाले राजेश राम को दी है।

राहुल गांधी ने मतदाता अधिकार यात्रा के दौरान बिहार के 25 जिलों में राजेश राम का हाथ थामे रखा तो इसकी सबसे बड़ी वजह दलितों में 31 फीसदी की सबसे बड़ी भागीदारी रखने वाला रविदास समाज है।वैसे रविदास समाज के मतदाता बिहार में सीधे-सीधे एनडीए या महागठबंधन को वोट करते आए हो इसे पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता,

क्योंकि उत्तर प्रदेश से सटे बिहार के सीमावर्ती जिलों में रविदास मतदाता बीएसपी के लिए वोट करते रहे हैं। यही वजह है कि कई चुनाव में बीएसपी की जीत भी कुछ सीमावर्ती सीटों पर हुई है। लेकिन कांग्रेस का मकसद रविदास मतदाताओं के बीच इसी स्थिति को साधते हुए खुद को एक विकल्प के तौर पर पेश करने की है।

उधर, भाजपा ने सहयोगी दल 'हम' से 14 फीसदी मुसहर मतदाताओं का बड़ा हिस्सा एनडीए में ट्रांसफर कराने की उम्मीद पाल रखी है। इसके अलावा नीतीश कुमार के पॉलिटिकल मॉडल में भी दलित वोट बैंक जदयू के लिए वोट करता रहा है। बीते दो दशक में नीतीश ने दलित वोट बैंक को खूब साधा है।

वहीं, रविदास समाज के बाद दलितों में दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले पासवान जाति के नेता बिहार में चिराग पासवान हैं। पासवान मतदाताओं की संख्या 30 फीसदी है। चिराग पासवान केंद्र में मंत्री हैं और वह खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान एनडीए के साथ मैदान में नहीं उतरे थे।

ऐसे में इस बार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान का करिश्मा एनडीए के लिए फायदेमंद हो सकता है। पासवान जाति को लेकर सियासी जानकारों का मानना है कि यह वोट बैंक चिराग की पार्टी के साथ सुरक्षित है। चिराग जहां रहेंगे पासवान मतदाता बड़ी संख्या में वहीं मतदान करेंगे। संभावना जताई जा रही है दुसाध और मुसहर मतदाताओं का झुकाव एनडीए की ओर ही जा सकता है।

बता दें कि हाजीपुर पासवान (दुसाध) समुदाय का गढ़ माना जाता है। चिराग की आवाज अभी भी आधुनिकता के सपनों हाईवे, स्मार्ट सिटी और उनके पिता की अधूरी गरिमा की धुन से जुड़ी हुई है, जो दुसाध (पासवान) समुदाय के लिए है। वे पासवान समुदाय में लोकप्रिय बने हुए हैं। वहीं, हाजीपुर से दूर गयाजी के गांवों में जीतन राम मांझी मुसहर समुदाय के नेता हैं।

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री मांझी ने भी अपनी किस्मत एनडीए से जुड़ी हुई है। उनके लोग, जो कभी बचे-खुचे अनाज के दानों के लिए भटकते थे, उन्हें अब मांझी की आवाज में एक भरोसा नजर आता है। इस वजह से धीमी ही सही मुसहरों की समस्याएं सत्ता के गलियारों तक पहुंच रही हैं। चिराग और मांझी या यह कहें कि दलित समाज की दो प्रमुख जातियां दुसाध और मुसहर एनडीए के साथ जुड़ती नजर आ रही हैं। 

औरंगाबाद के कुटुंबा से विधायक राजेश कुमार कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष हैं। वो रविदास (चमार) समुदाय से आते हैं। उनका अध्यक्ष बनना कांग्रेस के लिए फायदेमंद हो सकता है। वैसे भी रविदास जाति के मतदाताओं का झुकाव लंबे समय से राजद की ओर रहा है, जहां लालू प्रसाद का दलित बस्तियों में गरिमा लौटाने का नारा अभी भी गूंजता है।

राजेश कुमार के नेतृत्व में, कांग्रेस खुद को एक ऐसा घर बनाना चाहती है, जहां रविदास की आवाज मेहमान की नहीं, बल्कि मेजबान की हो। ऐसे में राजद और वामपंथियों के साथ, महागठबंधन को अनुसूचित जाति की रविदास, पासी, धोबी और जातियों को अपने पाले में शामिल होने की उम्मीद है। जाहिर है, इस बार दलित वोटों के ऊपर हर दल और हरेक गठबंधन निगाह गड़ाए हुए है। 

भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री संजय पासवान ने बताया कि इस बार एनडीए का जोर उन आरक्षित सीटों को जीतने पर है, जो महागठबंधन के पास है। आरक्षित 38 सीटों में से 17 ही ऐसी सीटें हैं, जहां एनडीए का विधायक नहीं है। इस बार कम से कम सभी 35 आरक्षित सीटों को जीतने का लक्ष्य है।

उन्होंने कहा कि एनडीए में जीतन राम मांझी और चिराग पासवान के होने से मुसहर और पासवान जाति के वोटों का पूरा लाभ मिलेगा। एनडीए चुनाव में दलित वर्ग के अन्य जातियों को भी साधने के फार्मूले पर भी तेजी से काम कर रही है। वहीं, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की विधान पार्षद मुन्नी देवी ने दावा किया कि महागठबंधन इस बार विधानसभा चुनाव में सभी आरक्षित सीटों को जीतेगा।

कांग्रेस ने दलितों के सबसे बड़े हिस्से यानी रविदास समुदाय से आने वाले राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बना कर एक अलग ही दांव खेला है। उन्होंने कहा कि दलित समाज के लोग यह जान गए हैं कि उनके सच्चे हितैषी तेजस्वी यादव ही हैं। उनकी सरकार बनने पर दलितों का ज्यादा भला होगा।

वहीं, जदयू के मुख्य प्रवक्ता एवं विधान पार्षद नीरज कुमार ने कहा कि दलित समाज के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जितना किया, उतना किसी और सरकारों ने नहीं किया। दलित समाज के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दिल में कितनी जगह है, इसका उदाहरण के तौर पर यह देखा जा सकता है कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद का त्याग कर जीतन राम मांझी जैसे दलित नेता को मुख्यमंत्री बनाकर सम्मानित किया। ऐसे कई उदाहरण है, जो दलित समाज के हित में उठाया जाता रहा है।

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