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बिहार उपचुनाव 2019: महागठबंधन हुआ खंड-खंड, एक-दूसरे को पटखनी देने के लिए चुनावी मैदान में उतरे उम्मीदवार

By एस पी सिन्हा | Updated: October 17, 2019 18:07 IST

दरअसल उपचुनाव को लेकर नामांकन के बाद महागठबंधन का जो स्वरूप सामने आया है, इसमें यह साफ है कि कांग्रेस और राजद का गठबंधन तो बरकरार रहा, लेकिन अन्य दलों की दावेदारी के बावजूद कोई तरजीह नहीं मिली.

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ठळक मुद्देबिहार में राजद नेता और विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पूरे दमखम के साथ चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं.महागठबंधन के दलों में राजद ने चार विधानसभा सीट और कांग्रेस ने एक लोकसभा और एक विधानसभा सीट के लिए अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं.

बिहार में पांच विधान सभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव के लिए 21 अक्टूबर मतदान के बाद 24 अक्टूबर को मगतणाना के बाद परिणाम की घोषणा की जाएगी. लेकिन इस उपचुनाव में महागठबंधन में घटक दलों के बीच विरोध का खेल खुल्लम-खुल्ला देखने को मिल रहा है. महागठबंधन में पहले भी घमासान मचा था और अभी भी घमासान ही मचा है.

हालांकि, बिहार में राजद नेता और विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पूरे दमखम के साथ चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं. महागठबंधन के दलों में राजद ने चार विधानसभा सीट और कांग्रेस ने एक लोकसभा और एक विधानसभा सीट के लिए अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. लेकिन महागठबंधन में शामिल हम, वीआईपी और रालोसपा दलों को कोई जगह नहीं मिली है. ऐसे में अब यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या बिहार में महागठबंधन अब केवल दिखावा तक ही सीमित है?

दरअसल उपचुनाव को लेकर नामांकन के बाद महागठबंधन का जो स्वरूप सामने आया है, इसमें यह साफ है कि कांग्रेस और राजद का गठबंधन तो बरकरार रहा, लेकिन अन्य दलों की दावेदारी के बावजूद कोई तरजीह नहीं मिली. ऐसे में यह कहा जाने लगा है कि महागठबंधन बिहार में व्यावहारिक रूप से खत्म हो गया है. वैसे 12 अक्टूबर को लोहिया जयंती के दिन पांचों पार्टियों के नेताओं ने एक दूसरे का हाथ थामकर एकता दिखाने की कोशिश तो की, लेकिन यह एकता अगले दिन ही तब तार-तार हो गई, जब भागलपुर जाकर जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी, तेजस्वी यादव पर जमकर बरसे. साथ ही नाथनगर से 'हम' ने और सिमरी बख्तियारपुर से वीआईपी ने राजद के पक्ष में उम्मीदवार हटाने से साफ इनकार कर दिया. 

इससे यह तो साफ हो गया कि बिहार महागठबंधन में अब कुछ बचा नहीं है. वैसे जब उपचुनाव की बारी आई थी तो यह लगा था कि फिर से सभी एक साथ मिलेंगे और मुकाबले के लिए खडे होंगे. लेकिन उससे पहले ही अपने-अपने उम्मीदवार मैदान में उतारकर राजद और हम जैसी पार्टियों के बीच खटास बढ गयी. हालांकि काफी जद्दोजहद के बाद सभी पार्टियों के दिग्गज नेता 12 अक्टूबर को लोहिया जयंती के बहाने एक मंच पर मिले.

इस दौरान सभी ने एक दूसरे का हाथ थामकर एकता का संदेश देने की कोशिश की. लेकिन अगले ही दिन जीतनराम मांझी और मुकेश लहनी ने एक एकता की हवा निकाल दी. यहां बता दें कि इसकी शुरुआत तब हुई जब विधान सभा की पांच में से चार- दरौंदा, सिमरी बख्तियारपुर, बेलहर और नाथनगर से राजद ने अपने उम्मीदवारों को उतारने की न सिर्फ़ घोषणा की बल्कि लड़ने के लिए पार्टी का सिंबल भी दे दिया. जबकि कांग्रेस पार्टी शुरू में दो सीटों किशनगंज और सिमरी बख्तियारपुर की मांग कर रही थी. वहीं, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने नाथनगर से अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर दी थी. मांझी ने तो यह ऐलान राजद की घोषणा से भी पहले कर दिया था, लेकिन राजद ने उनकी भी बात को दरकिनार करते हुए नाथनगर से भी अपना उम्मीदवार उतार दिया.

वहीं, लोकसभा चुनाव में तीन सीटों पर लड चुकी सन ऑफ़ मल्लाह कहे जाने वाले मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसाफ पार्टी (वीआईपी) ने भी सिमरी बख्तियारपुर सीट पर लड़ने की घोषणा की थी, लेकिन वहां से भी राजद ने अपना उम्मीदवार उतार दिया. वैसे राजद की ओर से चार सीटों पर लड़ने की घोषणा के बाद प्रदेश कांग्रेस कमेटी काफी नाराज दिख रही थी और पांचों विधानसभा और एक लोकसभा पर चुनाव लड़ने को तैयार थी.

लेकिन, केंद्रीय नेतृत्व के दखल के बाद वह एक विधान सभा और एक लोकसभा सीट पर लड़ने को राजी हो गई. इसतरह से इस उपचुनाव में राजद और कांग्रेस तो साथ है, लेकिन हम, वीआईपी और रालोसपा बिल्कुल अलग राह पर है. वैसे रालोसपा ने अपने उम्मीदवार नही उतारे हैं, लेकिन वह राजद के समर्थन में प्रचार में भी नही जा रही है. इसतरह से बिहार में महागठबंधन खंड-खंड नजर आने लगी है.

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