बिहार विधानसभा चुनाव 2025ः महागठबंधन बनाम एनडीए?, सियासी दलों ने बिछानी शुरू की बिसात, जानें समीकरण और आंकड़े
By एस पी सिन्हा | Updated: March 13, 2025 15:27 IST2025-03-13T15:26:19+5:302025-03-13T15:27:34+5:30
Bihar Assembly Elections 2025: कांग्रेस लगातार ये दावा कर रही है कि चुनाव के नतीजों के बाद महागठबंधन अपने मुख्यमंत्री का ऐलान करेगी।

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पटनाः बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला महागठबंधन और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नेतृत्व वाले एनडीए के बीच माना जा रहा है। ऐसे में सभी दलों ने हर सीट के लिए सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी है। हर तरह के कील-कांटे दुरुस्त किए जा रहे हैं। इस क्रम में हर दल सबसे पहले अपना घर दुरुस्त करने में लगा है। राजद, जदयू और भाजपा अपने कोर वोटर पर फोकस कर रहे हैं। नया वोट बैंक तैयार करने की बजाय सभी की नजर अपने पारंपरिक वोटरों पर टिक गई है। इस बीच एनडीए नीतीश कुमार नेतृत्व में ही चुनावी मैदान उतरने का ऐलान किया है। जबकि महागठबंधन में अभी नेतृत्व को लेकर खींचतान जारी है। कांग्रेस लगातार ये दावा कर रही है कि चुनाव के नतीजों के बाद महागठबंधन अपने मुख्यमंत्री का ऐलान करेगी।
वहीं राजद का दावा है कि विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। हालांकि चुनाव होने में अभी काफी वक्त है मगर महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान ऐसी मची दिखाई दे रही है, जैसे आपसी तालमेल खत्म हो गया है। इस बीच वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी से 60 सीटों के साथ साथ उपमुख्यमंत्री के पद पर भी अपना दावा ठोक दिया।
मुकेश सहनी ऐलान किया है कि उनकी पार्टी बिहार में 60 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। मुकेश सहनी ने ये ऐलान राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद किया है। सहनी के इस ऐलान ने तेजस्वी यादव की मुश्किलें बढ़ा दी है। वहीं, राजद के पारंपरिक मतदाता अल्पसंख्यक और यादव रहे हैं। इन दोनों का सामाजिक समीकरण बना कर राजद अपने वोट बैंक पर इतराता रहा है।
लालू यादव ने जब पार्टी की कमान अपने बेटे तेजस्वी यादव को सौंपी तो वे माय(मुस्लिम-यादव) को अपना पक्का वोट मान कर 'बाप' (बैकवर्ड, अगड़े, आधी आबादी और पूअर) का नया सामाजिक समीकरण गढ़ने की कोशिश शुरू की। लेकिन लोकसभा चुनाव में तेजस्वी के 'बाप' का समीकरण काम नहीं आया। माय समीकरण भी दरक गया।
23 सीटों पर लड़ कर इडिया ब्लॉक की अग्रणी पार्टी राजद के खाते में सिर्फ चार सीटें आईं। अपनी बेटी रोहिणी आचार्य के लिए लालू-राबड़ी का प्रचार भी काम नहीं आया। चुनावी नतीजों की समीक्षा में राजद को इस बात का एहसास हुआ कि उसका पारंपरिक माय समीकरण दरक गया है। यही वजह है कि राजद ने माय में एम यानी मुस्लिम समाज की ओर अपना फोकस बढ़ा दिया है।
महागठबंधन में जहां 6 दल (राजद, कांग्रेस, भाकपा-माले, भाकपा, माकपा और वीआईपी शामिल हैं। वहीं एनडीए में 5 दल( जदयू, भाजपा, लोजपा(आर), हम, राष्ट्रीय लोक मंच) शामिल हैं। इसबीच लालू यादव ने एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी से नजदीकी बढ़ानी शुरू कर दी है। सीमांचल में असुदुद्दीन की पकड़ का अंदाजा राजद को है।
2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल की पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी। लोकसभा चुनाव में भी किशनगंज सीट से एआईएमआईएम के उम्मीदवार ने खासा वोट हासिल किए थे। हालांकि पार्टी को सफलता नहीं मिली थी। इस बीच जन सुराज ने भी किशनगंज में अपना जलवा दिखाना शुरू किया है, जो ओवैसी के लिए चिंता का विषय है।
यही वजह है कि उनके राजद से हाथ मिलाने की जानकारी मिल रही है। अगर राजद से ओवैसी की बात बन जाती है तो उन्हें न सिर्फ मुसलमानों का साथ मिलेगा, बल्कि यादव भी उनके उम्मीदवार का समर्थन कर देंगे।