बिहार में शिक्षा विभाग में बड़ा घोटाला, फर्जी सर्टिफिकेट पर जॉब कर रहे कई टीचर, निगरानी विभाग कर है जांच
By एस पी सिन्हा | Updated: May 29, 2021 16:42 IST2021-05-29T16:39:57+5:302021-05-29T16:42:33+5:30
बताया जा रहा है वर्षों से अपने स्कूल से 'गायब' कई शिक्षिकाएं फर्जी प्रतिनियोजन दिखाकर बीईओ यानि ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर की मिलीभगत से सरकार को लाखों का चूना लगा रही हैं।

(फाइल फोटो)
बिहार के शिक्षा विभाग में एक बड़ा घोटाला सामने आ रहा है। एक ओर जहां विभिन्न जिलों के अलग-अलग स्कूलों की कई शिक्षिकाएं दिल्ली, बेंगलुरु सहित देश के अन्य शहरों में वर्षों से रह रही हैं, लेकिन हर साल का वेतन एकमुश्त उठा रही हैं। वहीं दूसरी ओर फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर करीब 54 हजार शिक्षकों के काम करने की जांच निगरानी विभाग कर रहा है।
ऐसे शिक्षकों के प्रमाण पत्र नहीं मिले हैं, जिसके बाद उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की तैयारी है। सूत्रों के अनुसार अबतक के जांच में हजारों शिक्षकों के सर्टिफिकेट संदिग्ध पाए गए हैं। इनमें कुछ शिक्षकों के खिलाफ निगरानी विभाग की ओर से अलग-अलग थानों में प्राथमिकी दर्ज कराए जाने की खबर भी है। हालांकि, अभी तक आधिकारिक तौर पर इस मामले में किसी ने कुछ नहीं कहा है।
निगरानी विभाग की कार्रवाई से फर्जी सर्टिफिकेट पर नौकरी करने वाले शिक्षकों में हडकंप सा मच गया है। विभाग की ओर से फिलहाल प्रारंभिक स्कूलों में बहाल पंचायत और प्रखंड शिक्षकों के सर्टिफिकेट की जांच की जा रही है। इसके लिए नियोजित शिक्षकों के सर्टिफिकेट की निगरानी जांच का काम तेज बढाया गया है। बिहार में करीब 54000 शिक्षकों को विभाग ने अपने सर्टिफिकेट निर्धारित फोल्डर में जमा करने का कई मौका भी दिया था।
परंतु नियोजन इकाई से घालमेल व मिलीभगत से ऐसे शिक्षक अपने आप को अब तक बचाए हुए थे। फर्जी शिक्षको पर कार्रवाई शुरू होते देखकर अन्य फर्जी शिक्षको में भी हडकंप मचा हुआ है। कई शिक्षक खुद को बचाने के लिए आला अधिकारियों के दफ्तर में चक्कर काटने लगे हैं। वे किसी भी हालत में अपनी नौकरी बचाए रखना चाहते हैं।बताया जाता है कि निगरानी ने फोल्डर गायब होने के लिए शिक्षकों के साथ-साथ नियोजन इकाइयों को भी जिम्मेवार माना है।
सरकार को सुझाव दिया है कि संबंधित नियोजन इकाइयों के मामले की भी जांच होनी चाहिए। शिक्षा विभाग ने जांच में दोषी नियोजन इकाइयों पर प्राथमिकी दर्ज कराएगी। इससे पहले विभाग के स्तर से यह जांच भी कराई जाएगी कि पंचायतों एवं प्रखंडों के अलावा नगर निकायों से संबंधित नियोजन इकाइयों में शिक्षकों के फोल्डर कैसे गायब हुए? इसका भी पता लगाया जाएगा कि इसमें कौन लोग जिम्मेवार हैं? पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर वर्ष 2015 से नियोजित शिक्षकों के मामले की जांच निगरानी विभाग कर रही है। निगरानी जांच में अबतक करीब 234 मुखिया की भूमिका संदिग्ध मिली है। ये निगरानी टीम की रडार पर हैं।
दरअसल, ये सारा खेल अधिकारियों और शिक्षिकाओं की सेटिंग से चलता है। भले ही वह रजिस्टर में कई वर्षों तक बिना किसी सूचना के अनुपस्थित रहीं, लेकिन न तो उनकी नौकरी गई और न ही कोई कार्रवाई की गई। बीईओ से सेटिंग कर कोई गर्भवती बन कर तो कोई मेडिकल ग्राउंड पर स्कूल नहीं आती हैं। कई ऐसी भी हैं जो किसी अन्य विद्यालय में प्रतिनियोजित होकर वेतन का भुगतान ले रही हैं।
खास बात यह कि इनका नाम शिक्षा विभाग की फाइलों में भी नहीं है। अधिकारियों की मिलीभगत से 50वें साल में भी शिक्षिका को गर्भवती बताकर छुट्टी स्वीकृत की गई और उसे वेतन का भुगतान किया गया। इसमें खास बात यह थी कि वह 7 वर्षों से विद्यालय से गायब थीं। उदाहरणस्वरूप सुपौल जिले के पिपरा प्रखंड के बीईओ ने मध्य विद्यालय हटबरिया में पदस्थ टीचर कुमारी सुभद्रा ठाकुर को 5 जुलाई 2017 से 16 नवम्बर 2017 तक मातृत्व अवकाश दिया। लेकिन फर्जीवाडा तब सामने आया जब जांच में यह पता चला कि इस विद्यालय से शिक्षिका कुमारी सुभद्रा ठाकुर 2012 से बिना सूचना के गायब हैं।
उसी तहर से त्रिवेणीगंज प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय कुकूरधरी की शिक्षिका सुनिता सुमन भी इसी तरह नवंबर 2010 से ही गायब हैं, लेकिन शिक्षा विभाग की फाइलों में इन्हें बीईओ की मिलीभगत से नवंबर 2010 से अप्रेल 2017 तक का वेतन 6 लाख 92 हजार रुपया एकमुश्त मिल चुका है। वहीं, उत्क्रमित मध्य विद्यालय दतुवा की शिक्षिका ज्योति रानी विद्यालय से 2018 से बिना सूचना के गायब हैं। दूसरी तरफ, मध्य विद्यालय मटकुरिया की किरण कुमारी कई सालों से विद्यालय से गायब हैं। वह बेंगलुरु में रहती हैं, लेकिन बीईओ की मिलीभगत से इन्हें भी हर माह वेतन का भुगतान मिल रहा है।
जबकि सुपौल सदर प्रखंड की प्रियंका कुमारी मध्य विद्यालय परसौनी ये भी 6 महीने से विद्यालय से बिना सूचना के गायब हैं। साथी शिक्षक बताते हैं कि मैडम दिल्ली में अपने पति के साथ रहकर अपने बच्चों को शिक्षा दे दिलवा रही हैं और वेतन यहां से पा रही हैं। ऐसे में सवाल यह उठने लगा है कि आखिर यह सब खेल कैसे सालों साल से जारी है? सूत्रों के अनुसार ऐसी शिक्षिकाओं की संख्या शायद हजारों में होगी,
जिसके पति सरकारी वरिय मुलाजिम हैं या जिनके पति बाहर रहकर व्यापार या अच्छी नौकरी कर रहे हैं, वे अपनी पत्नियों के लिए ऐसी सौदेबाजी कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि बिना काम के होने वाले लाखों-लाख के भुगतान में एक मोटा हिस्सा बीईओ को भी मिला करता है। ऐसे मामलों को ढूंढ निकालना इसलिए भी कठिन होता है क्योंकि किसी प्रखंड से सभी विद्यालयों का बीईओ के एकमुश्त वेतन का लिस्ट भेजते हैं।
सबसे खास यह है कि प्रतिनियोजन यानि एक विद्यालय से दूसरे विद्यालय में पदस्थापन का प्रावधान ही नहीं है। इसको लेकर विभाग 2012 से लेकर अब तक कई पत्र निर्गत कर चुका है। साल 2016 में शिक्षा विभाग के तत्कालिन प्रधान सचिव आर के महाजन ने एक पत्र जारी कर सभी शिक्षा पदाघिकारियों को आदेश देकर इस पर रोक लगाई थी। इसमें यह भी कहा गया था कि प्रतिनियोजन अवधि का वेतन विभाग नहीं देगा और इसकी वसूली प्रतिनियोजन करने वाले अधिकारीयों से होगी। लेकिन यह आदेश कागजों में ही सिमटकर रह गया और प्रतिनियोजन और भुगतान का खुला खेल बदस्तूर जारी है।