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दुराचार के आरोपी विद्यार्थियों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम बनाएं बीएचयू, एएमयू : अदालत

By भाषा | Updated: December 5, 2019 05:57 IST

अदालत ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को विद्यार्थी के तौर पर बहाल किया जाए और उसे अपना पाठ्यक्रम पूरा करने की अनुमति दी जाए। 

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ठळक मुद्दे मौजूदा मामले में अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ पारित निलंबन के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया निलंबन के आदेश में कहा गया था कि आपराधिक मामले में अदालत द्वारा दोषमुक्त किए जाने तक छात्र का निलंबन बरकरार रहेगा

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को दुराचार के आरोपी उन विद्यार्थियों के लिए सुधार और पुनर्वास कार्यक्रम तैयार करने को कहा है जिनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है या प्रस्तावित है। न्यायमूर्ति अजय भनोट ने यह निर्णय सुनाते हुए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सचिव और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को इन विश्वविद्यालयों को आवश्यक सहयोग उपलब्ध कराने का भी निर्देश दिया।

अदालत ने कहा कि यह कवायद प्राथमिकता के साथ छह महीने के भीतर पूरी हो जाए, लेकिन इसमें 12 महीने से अधिक का समय न लगे। साथ ही इसे विद्यार्थियों और समाज के बेहतर हित को ध्यान में रखकर पूरी की जाए। यह निर्णय बीएचयू के छात्र अनंत नारायण मिश्रा की रिट याचिका पर सुनाया गया, जिसमें उन्होंने बीएचयू के रजिस्ट्रार द्वारा 30 मार्च, 2019 को सुनाए गए आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश के तहत याचिकाकर्ता को विश्वविद्यालय की सभी सुविधाओं और गतिविधियों से वंचित कर दिया गया था।

विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने उक्त छात्र के खिलाफ वाराणसी के लंका थाने में एफआईआर दर्ज कराने के बाद निलंबन का यह आदेश पारित किया था। प्रोफेसर का आरोप था कि 28 जनवरी, 2019 को अनंत नारायण ने उसके साथ मारपीट की थी। निलंबन के आदेश में कहा गया था कि आपराधिक मामले में अदालत द्वारा दोषमुक्त किए जाने तक छात्र का निलंबन बरकरार रहेगा। छात्रों को दिए गए दंड पर गौर करते हुए अदालत ने कहा, "एक कानूनी रूपरेखा के भीतर सुधार, आत्म विकास और पुनर्वास कार्यक्रम से विश्वविद्यालयों में मानव सम्मान के मौलिक अधिकारों के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण होगा।"

मौजूदा मामले में अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ पारित निलंबन के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि विश्वविद्यालय की ओर से याचिकाकर्ता का निलंबन अपरिभाषित या अनिश्चितकाल के लिए है और एक तरह से यह विश्वविद्यालय से निष्कासन है जो कि मनमाना और अवैध है। निलंबन का आदेश रद्द होने से याचिकाकर्ता को सुधार, आत्म विकास और पुनर्वास कार्यक्रम का लाभ दिया जाएगा। अदालत ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को विद्यार्थी के तौर पर बहाल किया जाए और उसे अपना पाठ्यक्रम पूरा करने की अनुमति दी जाए। 

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