पुणे (महाराष्ट्र), 29 अगस्त:महाराष्ट्र पुलिस ने कई राज्यों में माओवादियों से कथित संबंधों और गैर-कानूनी गतिविधियों के आरोप में देश के पांच बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार किया था। इस ममाले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की गई है। इस बीच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग( NHRC) के नोटिस का जवाब देते हुए महाराष्ट्र के गृह राज्यमंत्री दीपक वसंत केसरकर ने कहा है कि बिना सबूत कोई गिरफ्तारी नहीं की गई है।
कानूनी प्रक्रिया के तहत गिरफ्तारी
महाराष्ट्र के गृह राज्यमंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि इस मामले में जो भी पांच गिरफ्तारी हुई है, वह पूरी कानूनी प्रक्रिया के तहत की गई है। उनके खिलाफ कुछ सबूत मिले हैं, जो उन्हें शक के घेरे में लाते हैं। बिना सबूत पुलिस उनको कस्टडी में कैसे ले सकता है, जरा आप ही सोचिए? राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मीडिया रिपोर्ट्स का जिक्र करते हुए कहा था कि ऐक्टिविस्ट्स बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी में तय मानकों का पालन नहीं किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका
उन्होंने यह भी कहा, मुझे समझ में नहीं आता कि कोई नक्सलियों का कैसे समर्थन कर सकता है। उच्चतम न्यायालय में गिरफ्तारी के खिलाफ अर्जी रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे, माया दर्नाल और एक अन्य ने दी है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर आज ( 29 अगस्त) दोपहर 3:45 पर सुनवाई भी कर सकता है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से जांच होने तक पॉंच लोगों की रिहाई की मांग की गई है।
महाराष्ट्र पुलिस की छापेमारी
बता दें कि महाराष्ट्र पुलिस ने कई राज्यों में बुद्धिजीवियों के घरों में मंगलवार 28 अगस्त को छापा मारा। जिसमें माओवादियों से संपर्क रखने के शक में कम से कम पांच लोगों को गिरफ्तार किया। जिसमें रांची से फादर स्टेन स्वामी , हैदराबाद से वामपंथी विचारक और कवि वरवरा राव, फरीदाबाद से सुधा भारद्धाज और दिल्ली से सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलाख शामिल है।
महाराष्ट्र पुलिस ने स्थानीय पुलिस की मदद से मंगलवार दिल्ली में पत्रकार-सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा, गोवा में प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे, रांची में मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी, मुंबई में सामाजिक कार्यकर्ता अरुण परेरा, सुजैन अब्राहम, वर्नन गोनसाल्विस, हैदराबाद में माओवाद समर्थक कवि वरवर राव, वरवर राव की बेटी अनला, पत्रकार कुरमानथ और फरीदाबाद में सुधा भारद्वाज के घर पर छापेमारी की।
मोदी सरकार पर लग रहे हैं आरोप
- इस बीच, सिविल लिबर्टिज कमेटी के अध्यक्ष गद्दम लक्ष्मण ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि वह बुद्धिजीवियों को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रही है। लक्ष्मण ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम कानूनी विशेषज्ञों से मशविरा कर रहे हैं। हम कानूनी लड़ाई लड़ेंगे ...उनकी गिरफ्तारी मानवाधिकारों का घोर हनन है।’’
- वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया, ‘‘फासीवादी फन अब खुल कर सामने आ गए हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह आपातकाल की स्पष्ट घोषणा है। वे अधिकारों के मुद्दों पर सरकार के खिलाफ बोलने वाले किसी भी शख्स के पीछे पड़ रहे हैं। वे किसी भी असहमति के खिलाफ हैं।’’
- चर्चित इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने पुलिस की कार्रवाई को ‘‘काफी डराने वाला’’ करार दिया और उच्चतम न्यायालय के दखल की मांग की ताकि आजाद आवाजों पर ‘‘अत्याचार और उत्पीड़न’’ को रोका जा सके। गुहा ने ट्वीट किया, ‘‘सुधा भारद्वाज हिंसा और गैर-कानूनी चीजों से उतनी ही दूर हैं जितना अमित शाह इन चीजों के करीब हैं।
- नागरिक अधिकार कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने भी छापेमारियों की कड़ी निंदा की। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘‘महाराष्ट्र, झारखंड, तेलंगाना, दिल्ली, गोवा में सुबह से ही मानवाधिकार के रक्षकों के घरों पर हो रही छापेमारी की कड़ी निंदा करती हूं। मानवाधिकार के रक्षकों का उत्पीड़न बंद हो। मोदी के निरंकुश शासन की निंदा करती हूं।’’
(भाषा इनपुट)