कश्मीर में पाबंदी: क्या अधिकारियों को दंगा होने का इंतजार करना चाहिए था, सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता आजाद से किए सवाल

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 8, 2019 02:16 PM2019-11-08T14:16:41+5:302019-11-08T14:16:41+5:30

पीठ ने सवाल किया, ‘‘क्या उन्हें दंगा होने का इंतजार करना चाहिए था?’’ इसके जवाब में सिब्बल ने कहा, ‘‘वे यह कैसे मान सकते हैं कि दंगे होंगे? यह दर्शाता है कि उनके दिमागों एक धारणा है और उनके पास कोई तथ्य नहीं है।

Ban in Kashmir: Should the officials have waited for the riot, the Supreme Court asked Congress leader Azad | कश्मीर में पाबंदी: क्या अधिकारियों को दंगा होने का इंतजार करना चाहिए था, सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता आजाद से किए सवाल

सिब्बल ने कहा, ‘‘घाटी के दस जिलों में 70 लाख की आबादी को इस तरह से पंगु बनाना क्या जरूरी था?

Highlights सिब्बल पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की याचिका पर उनकी ओर से बहस कर रहे थे। प्राधिकारियों द्वारा संचार और परिवहन व्यवस्था सहित अनेक पाबंदियां लगाना अधिकारों का आभासी इस्तेमाल था।

उच्चतम न्यायालय ने जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करने के बाद लगाये गये अनेक प्रतिबंधों को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद से सवाल किये और जानना चाहा कि क्या प्राधिकारियों को ‘दंगा होने का’ इंतजार करना चाहिए था।

न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने आजाद के पार्टी सहयोगी व वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से सवाल किया, ‘‘इस तरह के मामले में ऐसी आशंका क्यों नहीं हो सकती कि पूरा क्षेत्र या स्थान अशांत हो सकता है?’’ सिब्बल पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की याचिका पर उनकी ओर से बहस कर रहे थे।

उन्होंने दलील दी थी कि प्राधिकारियों द्वारा संचार और परिवहन व्यवस्था सहित अनेक पाबंदियां लगाना अधिकारों का आभासी इस्तेमाल था। सिब्बल ने कहा कि सार्वजनिक सद्भाव को किसी प्रकार के खतरे की आशंका के बारे में उचित सामग्री के बगैर ही प्राधिकारी इस तरह की पाबंदियां नहीं लगा सकते हैं।

उन्होंने सवाल किया कि सरकार यह कैसे मान सकती है कि सारी आबादी उसके खिलाफ होगी और इससे कानून व्यवस्था की समस्या पैदा होगी। सिब्बल ने कहा, ‘‘घाटी के दस जिलों में 70 लाख की आबादी को इस तरह से पंगु बनाना क्या जरूरी था? उन्हें ऐसा करने के समर्थन में सामग्री दिखानी होगी। इस मामले में हम जम्मू कश्मीर की जनता के अधिकारों की बात नहीं कर रहे हैं। हम भारत के लोगों के अधिकारों के बारे में बात कर रहे हैं।’’

इस पर पीठ ने सवाल किया, ‘‘क्या उन्हें दंगा होने का इंतजार करना चाहिए था?’’ इसके जवाब में सिब्बल ने कहा, ‘‘वे यह कैसे मान सकते हैं कि दंगे होंगे? यह दर्शाता है कि उनके दिमागों एक धारणा है और उनके पास कोई तथ्य नहीं है। उनके पास ऐसा कहने के लिये खुफिया जानकारी हो सकती है।

उनका तर्क था कि शासन के पास व्यापक अधिकार होते हैं और यदि हालात का तकाजा होता तो प्राधिकारी धारा 144 लगा सकते थे। उन्होंने कहा कि शासन का यह परम कर्तव्य है कि वह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा ही नहीं करे बल्कि जरूरतमंदों की भी मदद करे।

सिब्बल ने कहा, ‘‘जम्मू कश्मीर में जो कुछ हो रहा है, उसके बारे में भारत की जनता को जानने का अधिकार है।’’ उन्होंने कहा कि सरकार यह नहीं कह सकती कि एक जिले में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति शांति भंग कर सकता है। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान खत्म करने से एक दिन पहले चार अगस्त को कई तरह के प्रतिबंध लगाने के आदेश दिये गये थे।

उन्होंने कहा कि आप यह कैसे मान सकते हैं कि पूरी आबादी ही इसके खिलाफ होगी और इसका क्या आधार है? इस पर पीठ ने सिब्बल से कहा, ‘‘यदि ऐसा है तो किसी भी स्थान पर धारा 144 नहीं लगायी जा सकती। पीठ ने यह भी कहा कि कुछ परिस्थितियों में किसी क्षेत्र में कर्फ्यू लगाये जाने पर भी तो कुछ लोगों को परेशानी हो सकती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद की याचिका पर बृहस्पतिवार को सिब्बल की बहस अधूरी रही। वह अब 14 नवंबर को आगे बहस करेंगे। 

Web Title: Ban in Kashmir: Should the officials have waited for the riot, the Supreme Court asked Congress leader Azad

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