Azadi Ka Amrit Mahotsav: आजादी और गुलामी के फर्क को समझने के लिए इन 5 किताबों के पन्नों को जरूर पलटें

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: June 6, 2022 11:29 PM2022-06-06T23:29:22+5:302022-06-06T23:48:22+5:30

आजादी के अमृत महोत्सव के वक्त में हमें गांधी, नेहरू, पटेल, ,सुभष, आजाद, भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां जैसे कई महापुरुषों की कहानियों से पटे पड़े अपने इतिहास को जरूर पढ़ना चाहिए और इसमें मददगार 5 किताबों के बारे में हम यहां आपको बता रहे हैं।

Azadi Ka Amrit Mahotsav: To understand the difference between freedom and slavery, you must turn the pages of these 5 books | Azadi Ka Amrit Mahotsav: आजादी और गुलामी के फर्क को समझने के लिए इन 5 किताबों के पन्नों को जरूर पलटें

Azadi Ka Amrit Mahotsav: आजादी और गुलामी के फर्क को समझने के लिए इन 5 किताबों के पन्नों को जरूर पलटें

Highlightsदेश की आजादी के लिए हमारे कई महान शख्सियतों ने अपने भविष्य को कुर्बान कर दियादेश की आजादी का संघर्ष हमारे लिए महज इतिहास का पन्ना नहीं हैइनके जरिये हमें पता चलता है कि हमारे पुरखों ने क्या खोया और उसके बदले हम आज क्या पा रहे हैं

दिल्ली: आजादी, इंसान के लिए, समाज के लिए और देश के लिए एक ऐसा शब्द है। जिससे उसकी गरिमा जुड़ी है, जिससे आत्मसम्मान जुड़ा होता है। जिससे सार्वभौमिकता जुड़ी हुई होती है।

14 और 15 अगस्त 1947 की आधी रात पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जब समूचे दुनिया के सामने जब 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' में कहा, "आधी रात के समय जब दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जाग जाएगा।" तो देश में एक अजीब से उत्साह से लबालब हो गया था।

सन 47 में मिली आजादी के लिए हमारे पुरखों ने क्या-क्या खोया और उनके त्याग के कारण हम आज क्या पा रहे हैं। इसे हम सभी के लिए जानना बेहद जरूरी है। देश की आजादी का संघर्ष हमारे लिए महज इतिहास का पन्ना नहीं हो सकता है क्योंकि उन पन्नों में ऐसे अनगित अफसाने दबे पड़े हैं, जिन्हें गढ़ने के लिए हमारे महान शख्सियतों ने अपना भविष्य कुर्बान कर दिया, ताकि हम अपना भविष्य बना सकें।

गांधी, नेहरू, पटेल, ,सुभष, आजाद, भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां जैसे कई महापुरुषों की कहानियों से पटे पड़े अपने आजादी के इतिहास को हमें जानने के लिए कुछ किताबों को जरूर पढ़ना चाहिए। आइये आजादी के अमृत महोत्सव में उन 5 किताबों की बात करें, जिनकी बुनियाद में हमारे आजादी की लड़ाई के कुछ राज खामोशी से दफ्न हैं।

फ्रीडम एट मिडनाइट: लेखक- डोमिनिक लैपिएरे और लैरी कॉलिन्स

इस किताब में दर्ज है बंटवारे का दर्द, हमें अपनी आजादी की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। अंग्रेज ने जब हमारे मुस्तक़बिल को गांधी और नेहरू के हाथों में सौंपा तो उन्होंने हिंदोस्तान के नक्शे पर अपने नापाक इरादों का ऐसा नश्तर चलाया कि देश दो भागों में तक़सीम हो गया।

डोमिनिक लैपिएरे और लैरी कॉलिन्स भारत और पाकिस्तान के विभाजन को रेखांकित करते हुए प्रामाणिकता के साथ उस समय की परिस्थितियों को बहुत ही विस्तार से पेश किया है। इस किताब की शुरूआत अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन की नियुक्ति से लेकर हमारे राष्ट्रपिता के अंतिम संस्कार तक की घटनाओं पर प्रकाश डालती है।

डिस्कवरी ऑफ इंडिया: लेखक- जवाहरलाल नेहरू

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आजादी के संघर्ष में अंग्रेजों द्वारा द्वारा साल 1942 से 1946 तक महाराष्ट्र के अहमदनगर किले में कैद किये गये थे। उस दौरान नेहरू ने जेल अधिकारियों से कागज और कलम की मांग की, अंग्रेजों ने नेहरू की बात मानते हुए उन्हें कलम और दवात मुहैया करवा दी।

नेहरू ने कलम को रोशनाई में डूबोई और कागज पर उकेरा डिस्कवरी ऑफ इंडिया को। इस किताब में नेहरू ने उपनिषदों, वेदों और प्राचीन इतिहास के बारे में बहुत ही विस्तार से लिखा है। यह किताब सिंधु घाटी सभ्यता से उस समय के आधुनिक भारत के राजनीतिक, सामाजिक और भौगौलिक परिस्थितियों की काफी गहनता से पड़ताल करती है।

ट्रेन टू पाकिस्तान: लेखक- खुशवंत सिंह

देश के ज्वलंत और विवादास्पद विषयों के जाने-माने लेखक खुशवंत सिंह ने साल 1956 में चर्चित उपन्यास ट्रेन टू पाकिस्तान को प्रकाशित कराया। अपनी कल्पनाशीलता से बंटवारे का दर्द झेल रहे गांव मनो माजरा को केंद्र बनाकर धर्म के नाम पर हिंसा और क़त्ल-ओ-ग़ारत के खौफनाक मंजर को पेश किया है।

यह उपन्यास उस समय मजहब के लिए गैर मजहबी और बर्बर हो चुके भारत और पाकिस्तान के उन कातिलों के चेहरे को बेनकाब करता है, जो 1947 से पहले अंग्रेजों के खिलाफ एक हुआ करते थे। उपन्यास में फैले मजहबी नफरत के बीच खुशवंत सिंह ने बेदह उम्दा कलमकारी करते हुए 'ट्रेन टू पाकिस्तान' में एक सिख लड़के और एक मुस्लिम लड़की के मोहब्बत के दर्द भरे अफसाने को बड़ी खूबसूरती से बयां किया है।

इंडिया आफ्टर गांधी: लेखक- रामचंद्र गुहा

भारत के जानेमाने इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी कलम से अंग्रेजों से मिली आजादी के बाद के भारतीय राष्ट्र के तानेबाने को बुनने का काम किया है। साल 2007 में पहली बार प्रकाशित हुई गुहा की इस बेहद शानदार और प्रामाणिक किताब को द इकोनॉमिस्ट, द वॉल स्ट्रीट जर्नल और आउटलुक द्वारा बुक ऑफ द ईयर के रूप में सम्मानित किया गया है। इसके अलावा इस किताब को साल 2011 में अंग्रेजी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है।

'इंडिया आफ्टर गांधी' में नेहरू और पटेल के समीकरण के साथ-साथ सोशलिस्टों की राजनीति पर काफी गहराई से प्रकाश डाला है। इस किताब का हिंदी अनुवाद "भारत गांधी के बाद" पत्रकार सुशांत झा ने किया है।

द ग्रेट इंडियन नॉवेल: लेखक- शशि थरूर

पूर्व राजनयिक और कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने 'द ग्रेट इंडियन नॉवेल' में हिंदू सभ्यता को वर्णित करने वाले महाकाव्य "महाभारत" को बीसवीं सदी की भारतीय राजनीति की घटनाओं और पात्रों के साथ तुलना करते हुए बहुत ही शानदार तरीके से लिखा है। स्वतंत्रता संघर्ष के विषय में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ थरूर ने ब्रिटिश शासकों के बात-व्यवहार पर तीखा व्यंग्य किया है। 

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