Ayodhya Verdict: असदुद्दीन ओवैसी ने कहा- हम अपने हक के लिए लड़ रहे थे, हमें दान के रूप में 5 एकड़ जमीन की जरूरत नहीं
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 9, 2019 02:18 PM2019-11-09T14:18:13+5:302019-11-09T14:18:26+5:30
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील 134 साल से भी अधिक पुराने इस विवाद का पटाक्षेप कर दिया।
उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को सर्वसम्मति के फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और केन्द्र को निर्देश दिया कि मस्जिद निर्माण के लिये सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ का भूखंड आबंटित किया जाए।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील 134 साल से भी अधिक पुराने इस विवाद का पटाक्षेप कर दिया। हालांकि, उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस निर्णय पर असंतोष व्यक्त करते हुये कहा है कि वह इस पर पुनर्विचार के लिये याचिका दायर करेगा। इस विवाद ने देश के सामाजिक और साम्प्रदायिक सद्भाव के ताने बाने को तार तार कर दिया था।
सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि फैसले से संतुष्ट नहीं सुप्रीम कोर्ट वास्तव में सर्वोच्च है लेकिन अचूक नहीं है। हमें संविधान पर पूरा भरोसा है, हम अपने हक के लिए लड़ रहे थे, हमें दान के रूप में 5 एकड़ जमीन की जरूरत नहीं है। हमें इस 5 एकड़ भूमि के प्रस्ताव को अस्वीकार करना चाहिए, हमें संरक्षण नहीं देना चाहिए। मस्जिद के लिए जमीन खरीद सकते हैं।
Asaduddin Owaisi: Not satisfied with the verdict. Supreme Court is indeed supreme but not infallible. We have full faith in the constitution, we were fighting for our right, we don't need 5 acre land as donation. We should reject this 5 acre land offer, don't patronize us. pic.twitter.com/wKXYx6Mo5Q
— ANI (@ANI) November 9, 2019
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। संविधान पीठ ने अपने 1045 पन्नों के फैसले में कहा कि मस्जिद का निर्माण ‘प्रमुख स्थल’ पर किया जाना चाहिए और उस स्थान पर मंदिर निर्माण के लिये तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट गठित किया जाना चाहिए जिसके प्रति हिन्दुओं की यह आस्था है कि भगवान राम का जन्म यहीं हुआ था।
इस स्थान पर 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद थी जिसे कार सेवकों ने छह दिसंबर, 1992 को गिरा दिया था। पीठ ने कहा कि 2.77 एकड़ की विवादित भूमि का अधिकार राम लला विराजमान को सौंप दिया जाये, जो इस मामले में एक वादकारी हैं। हालांकि यह भूमि केन्द्र सरकार के रिसीवर के कब्जे में ही रहेगी।
रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के अहम पक्षकार रहे सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष जुफर फारुकी ने इस मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया है। फारुकी ने कहा कि वह न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हैं। फिलहाल अदालत के निर्णय का गहराई से अध्ययन किया जा रहा है जिसके बाद बोर्ड अगली रणनीति तय करेगा।
उल्लेखनीय है कि बोर्ड ने अयोध्या मामले में गठित मध्यस्थता समिति को पिछले माह प्रस्ताव दिया था कि वह कुछ शर्तों के आधार पर विवादित स्थल से अपना दावा छोड़ने को तैयार है। फारुकी ने कहा था कि उन्होंने देशहित में यह प्रस्ताव दिया है।
गौरतलब है कि न्यायालय ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ करते हुए शनिवार को अपने फैसले में सरकार को निर्देश दिया कि वह अयोध्या में मस्जिद निर्माण के लिये किसी प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन दे। न्यायालय ने केंद्र को मंदिर निर्माण के लिये तीन महीने में योजना तैयार करने और न्यास बनाने का निर्देश दिया है। भाषा सलीम सिम्मी सिम्मी