अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी घोषित करने के लिये संविधान संशोधन की जरूरत नहीं: अमित शाह
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 5, 2019 04:07 PM2019-08-05T16:07:41+5:302019-08-05T16:07:41+5:30
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि आरक्षण विधेयक जम्मू कश्मीर के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान करेगा। यह आरक्षण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के अलावा होगा।
गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया है कि जम्मू कश्मीर के बारे में विशेष प्रावधान करने वाले अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी घोषित करने के लिये संविधान में संशोधन करने की कानूनी बाध्यता नहीं है। शाह ने सोमवार को जम्मू कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी घोषित करने संबंधी संकल्प को राज्यसभा में पेश करते हुये बताया कि इस प्रावधान को राष्ट्रपति की महज एक अधिसूचना के माध्यम से संशोधित किया जा सकता है।
सपा के रामगोपाल यादव ने सदन में व्यवस्था का प्रश्न उठाते हुये कहा कि संविधान के किसी प्रावधान में किसी भी प्रकार का संशोधन करने के लिये संविधान संशोधन करना अनिवार्य है। उन्होंने गृह मंत्री से पूछा कि ऐसे में सरकार ने संविधान संशोधन विधेयक के बिना अनुच्छेद 370 को हटाने का संकल्प कैसे प्रस्तुत किया है।
इसके जवाब में शाह ने सदन को बताया कि अनुच्छेद 370 के खंड तीन में राष्ट्रपति को एक अधिसूचना के द्वारा अनुच्छेद 370 को खत्म करने का अधिकार देने का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि इस प्रावधान के साथ ही संविधान में एक शर्त यह जोड़ी गयी है कि अनुच्छेद 370 में बदलाव से पहले राज्य की विधानसभा से सहमति लेनी होगी।
उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू होने के कारण इस बाध्यता का पालन अनिवार्य नहीं रह जाता है। उन्होंने सदन को बताया, ‘‘आज सुबह राष्ट्रपति ने एक अधिसूचना जारी कर संवैधानिक आदेश पारित किया है। इसमें कहा गया है कि जम्मू कश्मीर में विधानसभा वजूद में नहीं होने के कारण राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य विधानसभा के समस्त अधिकार संसद के दोनों सदनों में निहित हैं। इसलिये राष्ट्रपति के आदेश को दोनों सदनों के साधारण बहुमत के द्वारा संसद से पारित कर सकते हैं।’’
शाह ने स्पष्ट किया कि सरकार की ओर से पहली बार इस तरह की पहल नहीं की गयी है। इसके पहले कांग्रेस की सरकार 1952 और 1962 में इस प्रक्रिया का पालन करते हुये अनुच्छेद 370 में संशोधन कर चुकी है। मौजूदा सरकार ने भी इसी प्रक्रिया का पालन किया है।
विपक्षी सदस्यों के भारी विरोध के बीच सरकार ने सोमवार को राज्यसभा में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त करने संबंधी एक संकल्प और राज्य को दो केंद्र शासित क्षेत्रों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने के प्रावधान वाला विधेयक पेश किया। गृह मंत्री अमित शाह ने साथ ही जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 भी पेश किया। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 हमेशा से ही अस्थायी रहा है और पहले की सरकारों ने राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में और वोट बैंक की राजनीति के चलते इसे नहीं हटाया।
गृह मंत्री ने कहा ‘‘न तो हम वोट बैंक चाहते हैं और न ही हमारे अंदर राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव है।’’ इस दौरान विपक्षी सदस्यों ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त करने संबंधी एक संकल्प और राज्य को दो केंद्र शासित क्षेत्रों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने के प्रावधान वाले विधेयक का विरोध किया। विरोध कर रहे कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक के सदस्य आसन के समक्ष आ कर बैठ गए। वहीं पीडीपी के सदस्यों पहले अपने कपड़े, फिर विधेयक और फिर संविधान की प्रति फाड़ी जिसके बाद सभापति एम वेंकैया नायडू ने मार्शलों को उन्हें सदन से बाहर करने को कहा।
गृह मंत्री अमित शाह ने संकल्प और विधेयक पेश करते हुए इसे ‘‘ऐतिहासिक कदम’’बताया। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू कश्मीर का देश के साथ एकीकरण नहीं हो पाया। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 अब जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होगा। सदन की बैठक शुरू होने पर सभापति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि पहले से नोटिस दिए जाने की जरूरत से सरकार को छूट देने तथा विधेयक की प्रति वितरित करने के लिए उन्होंने अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया है क्योंकि यह मुद्दा अत्यावश्यक एवं राष्ट्रीय महत्व का है।
विपक्ष के नेता और कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य गुलाम नबी आजाद ने कहा कि पूरी कश्मीर घाटी में कर्फ्यू लगा है और राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री तथा कई नेताओं को नजरबंद कर दिया गया है। आजाद ने कहा कि राज्य के हालात पर पहले सदन में चर्चा की जाए। लेकिन सभापति ने गृहमंत्री को संकल्प पेश करने की अनुमति दे दी। सभापति ने कहा कि इस पर चर्चा के दौरान सदस्य अपनी बात रख सकते हैं। शाह ने राज्य से अनुच्छेद 370 को हटाने संबंधी संकल्प पेश किया। साथ ही उन्होंने राज्य पुनर्गठन विधेयक एवं जम्मू कश्मीर में सरकारी नौकरियों तथा शैक्षिक संस्थानों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण बढ़ाने के प्रावधान वाले संशोधन विधेयक को भी पेश किया।
जम्मू कश्मीर आरक्षण (द्वितीय संशोधन) विधेयक 2019 उच्च सदन की आज की कार्यसूची में था। पुनर्गठन विधेयक के तहत, जम्मू कश्मीर केंद्र शासित क्षेत्र में अपनी विधायिका होगी जबकि लद्दाख बिना विधायिका वाला केंद्रशासित क्षेत्र होगा। नायडू ने कहा कि आरक्षण संबंधी विधेयक अभी पेश किया जा रहा है और दूसरे विधेयक को, उसकी प्रतियां सदस्यों को वितरित किए जाने के बाद पेश किया जाएगा। इस पर सदस्यों ने सहमति जताई। सभापति ने शाह को यह कहते हुए संकल्प एवं पुनर्गठन विधेयक पेश करने की अनुमति दी कि इसकी प्रतियां सदस्यों को वितरित की जा रही हैं।
बहरहाल, हंगामे की वजह से यह तत्काल स्पष्ट नहीं हो पाया कि क्या सदस्यों ने सभी विधेयकों के लिए सहमति जताई थी या आरक्षण संबंधी विधेयक के लिए सहमति जताई थी। गृह मंत्री अमित शाह ने संकल्प और विधेयक एक साथ पेश किये। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक सदस्यों ने संकल्प और विधेयक का विरोध किया तथा आसन के समक्ष आ गए। सरकार विरोधी नारे लगाते हुए विपक्षी सदस्य आसन के समक्ष धरने पर बैठ गए। धरने पर बैठे सदस्यों में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, सदन में कांग्रेस के उप नेता आनंद शर्मा, अंबिका सोनी, कुमारी शैलजा, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन भी शामिल थे। समाजवादी पार्टी के सदस्य आसन के समक्ष नहीं आए। लेकिन वे अपने स्थानों पर खड़े हो कर विरोध जताते रहे।
कुछ देर बाद एमडीएमके संस्थापक वाइको भी आसन के समक्ष आ गए। हंगामे के दौरान ही पीडीपी सदस्य नजीर अहमद लवाय और मीर मोहम्मद फयाज ने नारे लगाते हुए पोस्टर दिखाए। सभापति ने उनसे ऐसा न करने को कहा। बाहों में काली पट्टी बांधे लवाय और फयाज जब आसन के समक्ष आ कर विरोध जता रहे थे तब उन्होंने विधेयक की प्रतियां फाड़ कर हवा में उछालीं। इस दौरान लवाय ने अपना कुर्ता भी फाड़ लिया। इस पर सभापति ने गहरी नाराजगी जाहिर की। हंगामे के दौरान ही दोनों सदस्यों ने भारत के संविधान की प्रतियां भी फाड़ीं जिसके बाद सभापति ने मार्शल के जरिये उन्हें सदन से बाहर करने का आदेश दिया।
सभापति ने कहा ‘‘भारत का संविधान सर्वोच्च है। इसके अपमान की इजाजत किसी को भी नहीं दी जा सकती। इसे फाड़ने का अधिकार किसी को भी नहीं है। ’’ उन्होंने कहा ‘‘सदन में संविधान की प्रति फाड़ने, भारत के खिलाफ नारे लगाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। मैं न केवल (सदस्यों के) नाम लूंगा बल्कि कार्रवाई भी करूंगा।’’
सदन में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य गुलाम नबी आजाद ने कहा कि उनकी पार्टी देश के संविधान का सम्मान करती है, उसकी रक्षा का संकल्प दोहराती है और संविधान की प्रति फाड़े जाने की कड़ी निंदा करती है। आजाद ने कहा कि विपक्षी सदस्य आरक्षण विधेयक के विरोध में नहीं हैं लेकिन वह कश्मीर के हालात पर पहले चर्चा करना चाहते हैं।
संसदीय मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि सरकार जम्मू कश्मीर राज्य में अनुच्छेद 370 लागू करने की ऐतिहासिक भूल को सुधार रही है। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा ‘‘ऐसे पर्याप्त प्रमाण और उदाहरण हैं जब सरकार ने विधेयक वितरित किए और उसी दिन उन्हें पारित भी किया गया।’’
शाह ने कहा कि आरक्षण विधेयक जम्मू कश्मीर के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान करेगा। यह आरक्षण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के अलावा होगा। उन्होंने कहा कि पहले भी 38 बार ऐसा हुआ है कि विधेयकों को एक ही दिन वितरित किया गया और उसी दिन पारित किया गया है। ‘‘ऐसा आज पहली बार नहीं हो रहा है।’’ शाह ने कहा कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने संबंधी संकल्प को मंजूरी मिलने के बाद यह स्वत: ही अमान्य हो जाएगा।
शाह ने कहा कि जम्मू कश्मीर के लोग अनुच्छेद 370 की वजह से गरीबी और भ्रष्टाचार में जीवन यापन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि तीन परिवारों ने वर्षों तक राज्य को लूटा। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर का 27 अक्तूबर 1947 में भारत में विलय किया गया था लेकिन अनुच्छेद 370 जो है, वह 1949 में आया।’’ शाह ने कहा ‘‘यह सही नहीं है कि अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा बना।’’ उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 हमेशा से ही अस्थायी रहा है और पहले की सरकारों ने राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में और वोट बैंक की राजनीति के चलते इसे नहीं हटाया।
(एजेंसी इनपुट)