अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के ऊपर काम का भारी दबाव, 17 जजों की जगह केवल काम कर रहे नौ जज काम
By रामदीप मिश्रा | Published: October 1, 2019 09:06 AM2019-10-01T09:06:41+5:302019-10-01T09:06:41+5:30
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में नौ न्यायाधीशों में से केवल दो न्यायाधीश श्रीनगर विंग में बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिटों को सुनने के लिए नियुक्त किए गए हैं।
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट इस समय मुकदमों की आई बाढ़ के चलते भारी दबाव का सामना कर रहा है। दरअसल, प्रदेश में प्रतिबंधात्मक हिरासत को खत्म करने के लिए 250 से अधिक रिटें लगाई हैं। राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित हुए अभी एक महीना ही हुआ है हाईकोर्ट के ऊपर काम का भारी दवाब है क्योंकि 17 न्यायाधीशों की जगह नौ न्यायाधीश ही काम कर रहे हैं।
बताया जा रहा है कि इस साल दो अलग-अलग मौकों पर जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल ने रिक्त पदों को भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में सात नामों को आगे बढ़ाया, लेकिन उनकी आज तक नियुक्ति नहीं हुई।
इधर, सुप्रीम कोर्ट ने घाटी से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मित्तल से हाईकोर्ट में न्यायिक पहुंच पर रिपोर्ट मांगी है। इस महीने की एक याचिका पर सुनवाई में भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने इसे एक गंभीर मामला बताया था और कहा था कि यदि आवश्यकता पड़ी तो मैं व्यक्तिगत रूप से जम्मू-कश्मीर जाऊंगा और जांच करूंगा ।
बता दें, हाईकोर्ट में नौ न्यायाधीशों में से केवल दो न्यायाधीश श्रीनगर विंग में बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिटों को सुनने के लिए नियुक्त किए गए हैं। इस साल मार्च में न्यायमूर्ति मित्तल की अध्यक्षता में हाईकोर्ट कॉलेजियम ने राज्यपाल को चार नाम भेजे थे और उन्हीं को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को चिह्नित किया गया था।
मानक प्रक्रिया के अनुसार, जम्मू के दो अधिवक्ता रजनीश ओलाल और राहुल भारती और श्रीनगर के दो अधिवक्ता मोक्ष काज़मी और जावेद इकबाल वानी का नाम दिया गया था। इसके जुलाई में जुलाई में तीन नामों को और भेजा गया था, जिसमें जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल संजय धर और दो अन्य न्यायपालिका विनोद चटर्जी कौल और पुनीत गुप्ता का नाम शामिल था।
प्रक्रिया के अनुसार, एक हाईकोर्ट के न्यायाधीश की नियुक्ति का प्रस्ताव हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा शुरू किया जाता है और उसके प्रस्ताव की प्रति राज्यपाल को भेजी जाती है। इसके अलावा भारत के मुख्य न्यायाधीश और केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री का को भी समर्थन मांगा जाता है।