ब्लॉग: ‘आंग्रिया’- सेनानी मावला की कहानी

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: February 1, 2024 10:35 AM2024-02-01T10:35:53+5:302024-02-01T10:36:11+5:30

हमारे देश में संस्कृति की इतनी विशाल संपदा है कि एक ही राज्य के इतिहास का वर्णन करने के लिए पूरा जीवनकाल भी कम पड़ जाएगा। देश का इतिहास समुद्र जैसा विशाल है। इतिहास के पन्ने पलटने पर नई पीढ़ी को प्रेरित करने वाले कान्होजी जैसे अनगिनत प्रेरक व्यक्तित्व सामने आते हैं।

‘Angriya’ – Story of Fighter Mawla | ब्लॉग: ‘आंग्रिया’- सेनानी मावला की कहानी

ब्लॉग: ‘आंग्रिया’- सेनानी मावला की कहानी

छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनाप्रमुख कान्होजी आंग्रे के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालने वाली पुस्तक है- ‘आंग्रिया-द हिस्टोरिकल ओडिसी’। अंग्रेजों ने एक शूरवीर मावला सेनानी का नामोनिशान मिटाने का पूरा प्रयास किया और इसीलिए कान्होजी आंग्रे जैसे व्यक्तित्व को दुनिया नहीं जान सकी। कान्होजी आंग्रे की पहचान ‘कोंकण का राजा’ और ‘समुद्र का शिवाजी’ के नाम से भी थी. हिंदवी स्वराज्य के दौर में उन्होंने बहुत बड़ी सैन्य क्रांति की थी।

संपूर्ण कोंकण तट पर उनका राज्य फैला हुआ था। उनके दो बेटे शेखूजी और संभाजी आंग्रे थे। उन पर राज्य की सुरक्षा से लेकर करवसूली तक की जिम्मेदारी थी। अंग्रेजों के तुलाजी आंग्रे के विरुद्ध विजयदुर्ग आक्रमण के बाद कान्होजी का साम्राज्य अस्त हो गया।

भूटान के रहने वाले सोहेल रेखी मशहूर एक्ट्रेस वहीदा रहमान के सुपुत्र हैं। उन्हें बचपन से ही भारतीय इतिहास में रुचि थी। यह रुचि आगे चलकर शौक में बदल गई। उनकी नवीनतम पुस्तक ‘आंग्रिया-द हिस्टोरिकल ओडिसी’ है।

पुस्तक लिखने का विचार कैसे आया?

बच्चों की किताब के लिए समुद्री पायरेट्स पर शोध करते समय मुझे कान्होजी आंग्रे का नाम पता चला. इसके अलावा ‘पायरेट्स ऑफ द कैरेबियन’ में एक भारतीय पायरेट का नाम संभाजी है, जो कान्होजी के बेटे थे। पश्चिमी मीडिया के अनुसार, कान्होजी लगभग 300 वर्षों तक समुद्री पायरेट थे, लेकिन वास्तव में वह कोंकण के सूबेदार, हिंदवी साम्राज्य के सेना प्रमुख थे। कान्होजी की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने उनका नामोनिशान मिटा दिया। 1951 में पश्चिमी नौसेना कमान का नाम बदलकर ‘आईएनएस आंग्रे’ रखा गया। इसके अलावा, आंग्रे का नाम आज एक लाइटहाउस और आंग्रिया बैंक को छोड़कर कहीं नहीं मिलता है। यह पुस्तक ऐसे शूरवीर आंग्रे के इतिहास को पूरी दुनिया तक फैलाने के उद्देश्य से लिखी गई है।

पुस्तक के लिए संदर्भ तलाशना कितना कठिन था?

कान्होजी से संबंधित संदर्भ खोजने में पांच साल शोध करना पड़ा। मैंने अधिकतम संदर्भ उस अवधि के उपलब्ध पत्रों से लिए हैं। कान्होजी के पुर्तगालियों को लिखे पत्र आज भी ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यालय में उपलब्ध हैं। अलीबाग में मेरी मुलाकात कान्होजी आंग्रे के वंशज रघुजी आंग्रे से हुई। मुझे उनसे बहुत सहायता मिली। इतिहास में कान्होजी का जो उल्लेख है, उसके साथ हिंदवी स्वराज्य के इतिहास का भी अध्ययन किया।

कान्होजी के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। उनके बारे में शालेय पाठ्यक्रम में भी बहुत कम पढ़ाया जाता है, फिर भी महाराष्ट्र में उनका नाम जाना जाता है, लेकिन महाराष्ट्र के बाहर उन्हें ज्यादा लोग नहीं जानते।

इस पुस्तक की खासियत क्या है?

पाठकों की रुचि बढ़ाने के लिए ‘हिस्टोरिकल गल्प’ का प्रयोग किया गया है। पुस्तक लिखने के पीछे भावना यह है कि शिवकालीन इतिहास के इस नायक के व्यक्तित्व की जानकारी दूर-दूर तक पहुंचे। उनकी जिंदगी में वह सबकुछ है जिसकी मदद से एक बेहतरीन फिल्म बन सकती है। इसलिए अगर भविष्य में इस विषय पर कोई फिल्म बनाना चाहे, तो मैं मदद करने के लिए तैयार हूं। हमारे देश में संस्कृति की इतनी विशाल संपदा है कि एक ही राज्य के इतिहास का वर्णन करने के लिए पूरा जीवनकाल भी कम पड़ जाएगा। देश का इतिहास समुद्र जैसा विशाल है। इतिहास के पन्ने पलटने पर नई पीढ़ी को प्रेरित करने वाले कान्होजी जैसे अनगिनत प्रेरक व्यक्तित्व सामने आते हैं।

Web Title: ‘Angriya’ – Story of Fighter Mawla

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