Anantnag Seat 2024: चुनाव मैदान में उतरने से कतरा रहे हैं गुलाम नबी आजाद, विधानसभा में किस्मत आजमा भाजपा के सहारे सीएम बनने का सपना देख रहे...
By सुरेश एस डुग्गर | Published: April 10, 2024 03:04 PM2024-04-10T15:04:54+5:302024-04-10T15:06:09+5:30
Anantnag Seat 2024: डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी या डीपीएपी ने अनंतनाग-राजौरी निर्वाचन क्षेत्र से उनकी उम्मीदवारी की घोषणा की है।
Anantnag Seat 2024: अपने 47 साल के राजनीतिक करियर में मात्र तीन बार प्रदेश से किस्मत आजमाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और डीपीएपी के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद पार्टी द्वारा उनकी अनंतनाग सीट से उम्मीदवारी घोषित किए जाने के बावजूद वे चुनाव मैदान में उतरने से कतरा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, वे विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा कर भाजपा के सहारे मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। उन्होंने इसके प्रति संकेत भी दिया है। कहा यही जा रहा है कि कांग्रेस छोड़ने के बाद अपनी पार्टी बनाने वाले गुलाम नबी आजाद आगामी आम चुनाव नहीं लड़ सकते हैं, भले ही उनके नाम की घोषणा उनके द्वारा स्थापित पार्टी द्वारा की गई है। आजाद की पार्टी, डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी या डीपीएपी ने अनंतनाग-राजौरी निर्वाचन क्षेत्र से उनकी उम्मीदवारी की घोषणा की है।
पर आजाद ने पत्रकारों से कहा कि मुझे अभी तक यह तय नहीं करना है कि मैं चुनाव लड़ूंगा या नहीं। मेरी पार्टी ने इसकी घोषणा कर दी है लेकिन मैंने अंतिम फैसला नहीं लिया है। अगर वे मैदान में उतरते है। तो 2022 में कांग्रेस छोड़ने के बाद से अनंतनाग में चुनाव जम्मू कश्मीर में उनकी लोकप्रियता की पहली परीक्षा होने की उम्मीद है।
अनंतनाग सीट से, जो नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच एक विवादित सीट बन चुकी है, अगर आजाद मैदान में शामिल होते हैं तो त्रिकोणीय मुकाबला हो जाएगा। आजाद, जो जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री भी हैं, ने मतदाताओं की प्रतिक्रियाएं जानने के लिए पहले कई सार्वजनिक बैठकें की थीं। उन्होंने कहा था कि बहुत से लोग मुझसे चुनाव लड़ने के लिए कह रहे हैं।
मेरी संसद में रहने की मांग है। लेकिन ऐसी आवाजें भी हैं जो चाहती हैं कि मैं विधानसभा चुनाव लड़ूं। जानकारी के लिए अभी तक राज्य से मात्र एक बार विधानसभा का चुनाव जीत पाने वाले गुलाम नबी आजाद कई सालों तक राज्यसभा का सदस्य रहे हैं। अपने 47 साल के राजनीतिक कैरियर में उन्होंने राज्य में मात्र तीन बार ही किस्मत आजमाई थी।
हालांकि 1977 में पहली बार जमानत जब्त करवाने वाले गुलाम नबी आजाद ने 30 सालों के बाद वोट पाने का रिकार्ड तो बनाया था लेकिन अब सवाल यह है कि क्या वे अब कश्मीर से लोकसभा चुनाव में अगर किस्मत आजमाते हैं तो वे जीत सकेंगें या नहीं क्योंकि एक बार 2014 में वे लोकसभा का चुनाव हार चुके हैं।
वैसे 1977 में उन्होंने अपने गृह जिले डोडा से विधानसभा चुनाव जीतने की कोशिश में मैदान में छलांग मारी थी मगर वे उसमें कामयाब नहीं हो पाए थे। फिर वे केंद्रीय राजनीति की ओर ऐसे गए कि पीछे मुढ़ कर उन्होंने कभी नहीं देखा। यहां तक की उन्होंने कभी लोकसभा का चुनाव भी लड़ने की नहीं सोची।
फिर गुलाम नबी आजाद ने 27 अप्रैल 2006 को उस मिथ्य को तोड़ा था जो उनके प्रति कहा जाता था कि वे राज्य से कोई चुनाव नहीं जीत सकते। अपने गृह कस्बे से चुनाव जीतना उनका एक सपना था। वह 27 अप्रैल 2006 को पूरा हुआ था। इस सपने के पूरा होने की कई खास बातें भी थीं और कई रिकार्ड भी।
अगर 30 साल पहले इसी चुनाव मैदान में आजाद की जमानत जब्त हो गई थी तो अब वे एक नए रिकार्ड से जीत दर्ज कर पाए थे। तब गुलाम नबी आजाद ने 58515 मतों की जीत के अंतर से यह चुनाव जीता था। यह अपने आपमें एक रिकार्ड था क्योंकि जम्मू कश्मीर में अभी तक किसी भी नेता या मुख्यमंत्री पद के दावेदार किसी उम्मीदवार को इतनी संख्या में वोट नहीं मिले थे। अभी तक का रिकार्ड पूर्व मुख्यमंत्री शेख मुहम्मद अब्दुल्ला का रहा था जिन्होंने 1977 के विधानसभा चुनाव में गंदरबल सीट से चुनाव जीता तो था लेकिन जीत का अंतर 26162 ही था।