कोरोना महामारी में क्यों हुई ऑक्सीजन की कमी, भारत की क्या है उत्पादन क्षमता और कैसे होगा ये संकट दूर, जानिए
By विनीत कुमार | Published: April 21, 2021 03:28 PM2021-04-21T15:28:09+5:302021-04-21T15:28:09+5:30
कोरोना संकट के बीच भारत में मरीजों के लिए ऑक्सीजन की कमी भी एक बड़ी चुनौती बन कर उभरी है। सरकार ने कहा है कि कमी को पूरा करने के लिए 50,000 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन का आयात किया जा रहा है। ऐसे में जानते हैं कि ऑक्सीजन का पूरा गणित क्या कहता है, आखिर क्यों हुई कमी और क्या हो रहे हैं इससे निपटने के और उपाय।
भारत में कोरोना महामारी अपने प्रचंड रूप में हैं। पिछले करीब एक हफ्ते से हर रोज कोरोना के देश में दो लाख से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं तो वहीं मृतकों की संख्या में भी तेजी से इजाफा जारी है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार देश में मंगलवार को ही कोरोना से 2000 से ज्यादा जानें गईं।
इस बेहद भयावह स्थिति में कोरोना से जंग और मरीजों की जान बचाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी ऑक्सीजन की किल्लत की भी पूरे देश से खबरें आई हैं। लगभग हर राज्य ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा है और अस्पतालों में जैसे-तैसे ऑक्सीन की सप्लाई को बहाल रखने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
कोरोना की बीमारी में दरअसल जब मरीज बेहद नाजुक स्थिति में पहुंच जाता है तो उसको सांस लेने में दिक्कत होती है। ऐसे में उसे ऑक्सीजन सिलेंडर लगाया जाता है। ऐसे में आईए समझते हैं कि आखिर भारत में ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी क्यों आई? भारत में रोज कितना ऑक्सीजन बनता है और इस कमी को पाटने के लिए क्या किया जा रहा है?
भारत की मेडिकल ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता क्या है?
मनी कंट्रोल की एक रिपोर्ट के अनुसार हाल में जब ऑक्सीजन की किल्लत मीडिया में सुर्खियां बनने लगी और इसे लेकर सवाल उठने लगे तो सरकार ने बताया कि भारत में हर रोज 7127 MT (मीट्रिक टन) मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन होता है।
इसे बनाने वाली कुछ बड़ी कंपनियों में आईनोक्स एयर प्रोडक्ट्स, लिंडे इंडिया, गोयल एमजी गैस प्राइवेट लिमिटेड, नेशनल ऑक्सीजन लिमिटेड आदि हैं। इसमें सबसे बड़ी आईनोक्स है जो रोज करीब 2000 टन मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन करती है।
मेडिकल इस्तेमालों के लिए लिक्विड ऑक्सीजन को गैस क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रॉसेस के जरिए बनाया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान हवा को बेहद बारीक तरीके से फिल्टर किया जाता है और इसमें शामिल बेहद सूक्ष्म धूल-मिट्टी आदि को हटा दिया जाता है। ये एक तरह से 99.5 प्रतिशत तक शुद्ध होता है।
ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी क्यों आई?
भारत में कोरोना का प्रकोप पिछले कुछ दिनों में बहुत तेजी से बढ़ा और बड़ी संख्या में गंभीर मरीज अस्पताल में पहुंचने लगे। आंकड़ों के अनुसार 18 अप्रैल को ही भारत में ऑक्सीजन की मांग अपने उच्चतम स्तर 4300 मीट्रिक टन तक पहुंच गई।
इस बार हालात कितने गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कोविड-19 महामारी से पहले भारत में मेडिकल ऑक्सीजन की मांग 850 मीट्रिक टन प्रति दिन ही थी।
वहीं, पिछले साल कोरोना महामारी के दौरान 18 सितंबर 2020 को ऑक्सीजन की सबसे अधिक 3100 मीट्रिक टन की मांग दर्ज की गई थी। इसके मायने ये हुए कि इस बार सभी पुराने रिकॉर्ड टूट गए।
ऑक्सीजन के साथ बड़ी समस्या इसके स्टोरेज और इसे एक-जगह से दूसरे जगह तक ले जाने की है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि जिस हिसाब से ऑक्सीजन की मांग बढ़ी है उस अनुपात में उतने सिलेंडर या टैंकर नहीं हैं ताकि उन्हें स्टोर किया जा सके।
ऑक्सीजन को एक-जगह से दूसरी जगह ले जाना भी एक मुश्किल चुनौती है। द्रव्य रूप में ऑक्सीजन बेहद ज्वलनशील भी होता है और इसलिए ज्यादा सतर्कता की जरूरत पड़ती है।
ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए क्या किया जा रहा है
सरकार ने हाल में घोषणा की है कि बढ़ती मांग को देखते हुए 50,000 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन का आयात किया जाएगा। इसके अलावा औद्योगिक जरूरतों के लिए ऑक्सीजन की सप्लाई में भी कटौती की गई है। साथ ही रेलवे के जरिए दूसरे राज्यों में ऑक्सीजन पहुंचाने की कोशिश शुरू कर दी गई है।
इसके अलावा सरकार ने बताया है कि दिल्ली में मेडिकल ऑक्सीजन की क्षमता को बढ़ाने की खातिर पीएम केयर्स फंड की मदद से आठ प्रेशर स्विंग अड्सॉर्पशन (पीएसए) ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र लगाए जा रहे हैं। इन संयंत्रों की मदद से मेडिकल ऑक्सीजन की क्षमता 14.4 मीट्रिक टन बढ़ जाएगी।