आसान भाषा मेंः अंग्रेजी जमाने के व्यभिचार कानून का खात्मा, महिला-पुरुष के विवाहेत्तर संबंध अब अपराध नहीं

By आदित्य द्विवेदी | Published: September 27, 2018 01:12 PM2018-09-27T13:12:13+5:302018-09-27T13:12:13+5:30

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया है। क्या है इस फैसले का मतलब। पढ़िए आसान भाषा में...

Adultery law IPC 497 scraped by supreme court, all you need to know in simple language | आसान भाषा मेंः अंग्रेजी जमाने के व्यभिचार कानून का खात्मा, महिला-पुरुष के विवाहेत्तर संबंध अब अपराध नहीं

आसान भाषा मेंः अंग्रेजी जमाने के व्यभिचार कानून का खात्मा, महिला-पुरुष के विवाहेत्तर संबंध अब अपराध नहीं

नई दिल्ली, 27 सितंबरः महिला और पुरुष के बीच विवाहेत्तर संबंध अब अपराध नहीं रहे। सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक करार दे दिया है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने महिलाओं के सम्मान और लोकतंत्र का हवाला देते हुए अंग्रेजों के जमाने के इस व्यभिचार कानून का खात्मा कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस ए एम खानविलकर शामिल थे। क्या है इस फैसले का मतलब और क्या होगा इसका असर? पढ़िए आसान भाषा में...

- सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद साफ हो गया कि विवाहेत्तर संबंध किसी तरह का अपराध नहीं है। लेकिन अगर इस वजह से आपका पार्टनर खुदकुशी कर लेता है तो इसे उकसावे का मामला माना जा सकता है।

- सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भले ही एडल्टरी अपराध नहीं रही लेकिन यह तलाक का आधार हो सकता है और दीवानी मामले में इसका समाधान है।

- सुप्रीम कोर्ट द्वारा एडल्टरी लॉ को रद्द कर देने के फैसले के बाद याचिकाकर्ता के वकील राज कल्लिशवरम ने कहा कि यह ऐतिहासिक फैसला है। मैं इस फैसले से बेहद खुश हूं। भारत की जनता को भी इससे खुश होना चाहिए।

- राष्ट्री महिला आयोगी की रेखा शर्मा ने कहा कि मैं इस फैसले का सम्मान करती हूं। व्यभिचार कानून को काफी पहले खत्म करना चाहिए था। यह अंग्रेजों के जमाने का कानून था। अंग्रेज बहुत पहले चले गए लेकिन हम उनके कानून से जुड़े थे।


सरकार के तर्क बेअसर

सुप्रीम कोर्ट में व्यभिचार कानून के पक्ष में सरकार ने दलीलें दी थी। केंद्र सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा था कि हमें समाज में हो रहे विकास से कानून को देखना चाहिए ना कि पश्चिमी देशों के नजरिए से। उन्होंने कहा कि व्यभिचार संस्थान के लिए खतरा है। इसका असर परिवारों पर पड़ता है। पांच जजों की संविधान पीठ के सामने ये तर्क बेअसर साबित हुए।

व्यभिचार कानून क्या था?

भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के तहत अगर कोई विवाहित पुरुष किसी अन्य विवाहित महिला के साथ आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है तो इस स्थिति में उस पुरुष के खिलाफ महिला का पति मुकदमा कर सकता है। हालांकि, पत्नी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। इसमें यह प्रावधान भी है कि विवाहेत्तर संबंध में संलिप्त पुरुष के खिलाफ केवल साथी महिला का पति ही शिकायत दर्ज करा सकता है।

Web Title: Adultery law IPC 497 scraped by supreme court, all you need to know in simple language

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