UGC को खत्म करने के केंद्र के फैसले से अकादमिक विद्वान असहमत, कहा- नेता इन मामलों में शामिल ना हो

By स्वाति सिंह | Published: July 1, 2018 06:16 PM2018-07-01T18:16:18+5:302018-07-01T18:17:13+5:30

पिछले हफ्ते मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने यूजीसी अधिनियम, 1951 को रद्द कर यूजीसी के स्थान पर भारतीय उच्च शिक्षा आयोग लाने की घोषणा की थी। मंत्रालय ने मसविदा को सार्वजनिक कर उस पर संबंधित पक्षों की राय मांगी है। 

Academic scholars disagree with the Center's decision to end UGC says, leader do not be involved in matters | UGC को खत्म करने के केंद्र के फैसले से अकादमिक विद्वान असहमत, कहा- नेता इन मामलों में शामिल ना हो

UGC को खत्म करने के केंद्र के फैसले से अकादमिक विद्वान असहमत, कहा- नेता इन मामलों में शामिल ना हो

नई दिल्ली, 1 जुलाई: हायर स्टडीज के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) खत्म कर नए नियामक निकाय लाने का केंद्र फैसला अकादमिक विद्वानों को पसंद नहीं आरहा है। बल्कि उन्होंने इसको लेकर प्रश्न भी खड़े किए हैं। उनका कहना है कि नेताओं को अकादमिक के मामलों में शामिल नहीं होना चाहिए। बता दें कि पिछले हफ्ते मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने यूजीसी अधिनियम, 1951 को रद्द कर यूजीसी के स्थान पर भारतीय उच्च शिक्षा आयोग लाने की घोषणा की थी। मंत्रालय ने मसविदा को सार्वजनिक कर उस पर संबंधित पक्षों की राय मांगी है। 

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मसविदा के मुताबिक आयोग पूरी तरह अकादमिक मामलों पर ध्यान देगा एवं मौद्रिक अनुदान मंत्रालय का विषय क्षेत्र होगा। जेएनयू प्रोफेसर आयशा किदवई ने कहा कि नियमों के अनुसार स्पष्ट है कि मंजूरी इस आधार पर नहीं मिलने जा रही है कि किसी खास समय पर विश्वविद्यालय के पास क्या है बल्कि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि दशक भर के अंदर निर्धारित लक्ष्यों को उसने हासिल किया या नहीं। उन्होंने कहा , 'हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये लक्ष्य संसाधन सृजन के बारे में होगा , यानी एक ऐसा बोझ जो निश्चित रुप से फीस के रुप में और भर्ती में कटौती के तौर पर डाली जाएगी तथा इसके लिए इस बात की प्रबल संभावना है कि सभी प्रकार के फालतू लघुकालिक कोर्स शुरु किये जाएं। इसका तात्पर्य शुरु से ही नये और पुराने दोनों ही तरह के विश्वविद्यालयों का केंद्र का फरमान मानना होगा।'

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मशहूर अकादमिक जयप्रकाश गांधी ने कहा ,'नए निकाय का ढांचा इस प्रकार है कि उससे शिक्षा के बारे में फैसलों में राजनीतिक दलों की ज्यादा चलेगी जबकि आदर्श रुप से यह काम शिक्षाविदों और अकादमिक विद्वानों द्वारा होना चाहिए , वे देश को आगे ले जा सकते हैं।'कई अन्य विद्वानों ने भी इस कदम का विरोध किया है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार कम सरकार और अधिक शासन , अनुदान संबंधी कार्यों को अलग करना , निरीक्षण राज की समाप्ति , अकादमिक गुणवत्ता पर बल , अकादमिक गुणवत्ता मापदंड का अनुपालन कराने की शक्तियां , घटिया एवं फर्जी संस्थानों को बंद करने का आदेश नये उच्च शिक्षा आयोग अधिनियम , 2018 (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का निरसन) के अहम बिंदु हैं। इस नये कानून को 18 जुलाई से शुरु हो रहे मानसून सत्र में संसद में पेश किया जा सकता है। 

(भाषा इनपुट के साथ)

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