"6 दिसंबर लोकतंत्र का 'काला दिवस' है, न हम भूलेंगे और न आने वाली पीढ़ियों को भूलने देंगे", बाबरी ध्वंस को याद करते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने कहा
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: December 6, 2022 01:51 PM2022-12-06T13:51:42+5:302022-12-06T13:56:35+5:30
असदुद्दीन ओवैसी ने 6 दिसंबर को हुए बाबरी ध्वंस को याद करते हुए कहा कि इस दिन को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में हमेशा 'ब्लैक डे' के तौर पर याद रखा जाएगा। इसके साथ ही ओवैसी ने कहा कि बाबरी मस्जिद की शहादत को ता-वक्त अन्याय के प्रतीक के तौर पर देखा जाएगा।
दिल्ली: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदु्ददीन ओवैसी ने 6 दिसंबर के दिन अयोध्या में हुए बाबरी ध्वंस को याद करते हुए कहा कि इस दिन को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में हमेशा 'ब्लैक डे' के तौर पर याद रखा जाएगा। इसके साथ ही ओवैसी ने कहा कि बाबरी मस्जिद की शहादत को ता-वक्त अन्याय के प्रतीक के तौर पर देखा जाएगा।
ओवैसी ने इस संबध में ट्वीट करते हुए कहा, "6 दिसंबर हमेशा लोकतंत्र के काले दिन के तौर पर याद किया जाएगा। बाबरी मस्जिद को तोड़े जाने और जमींदोज किये को जुल्म और अन्य के तौर पर देखा जाना चाहिए। हम इस घटना को कभी नहीं भूलेंगे और यह पक्का करेंगे कि आने वाली पीढ़ियां भी इसे याद रखें।"
6th December will forever remain a Black Day for Indian democracy. The desecration and demolition of #BabriMasjid is a symbol of injustice. Those responsible for its destruction were never convicted. We will not forget it & we will ensure that future generations remember it too pic.twitter.com/6T4LRRDmYf
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) December 6, 2022
आज की तारीख से 3 दशक पहले उत्तर प्रदेश के अयोध्या में रामजन्म भूमि विवाद का मुख्य केंद्र रही बाबरी मस्जिद को केंद्रीय और राज्य पुलिस की कड़े सुरक्षा घेरे में राम जन्मभूमि आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने गिरा दिया था। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, जिसकी अगुवाई तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव कर रहे थे और राज्य में भाजपा का शासन था, जिसकी कमान मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के हाथों में थी।
तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर मस्जिद की सुरक्षा का वचन दिया था लेकिन 6 दिसंबर 1992 के दिन बाबरी मस्जिद से लगभग दो सौ मीटर दूर रामकथा कुंज में तैयार किये गये एक बड़े स्टेज पर साधू-संतों के साथ-साथ भाजपा के मुरली मनोहर जोशी, लाल कृष्ण अडवाणी, उमा भारती, कलराज मिश्रा भी उपस्थित थे। उनके साथ बजरंग दल के विनय कटियार, विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंहल, राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख रामचंद्र परमहंस के साथ साध्वी ऋतंभरा भी थी।
उग्र राम मंदिर आंदोलन के कार्यकर्ता सुबह से वहां पर पूजा-पाठ और भजन-कीर्तन कर रहे थे। फैजाबाद के डीएम और एसपी भी वहीं थे। तभी करीब 12 बजे के करीब उग्र कार्यकर्ताओं का एक जत्था सारी पुलिस सुरक्षा को धता बताते हुए आगे बढ़ा और थोड़ी देर में पूरी माहौल ही बदल गया। कारसेवकों का एक बड़ा हूजूम विवादित नारों के साथ विवादित मस्जिद परिसर में प्रवेश कर गया और देखते ही देखते कुछ कार्यकर्ता हथौड़े और अन्य वस्तुओं से बाबरी के गुंबद को गिराने लगे। गुंबद के चारों ओर लोग ही लोग नजर आ रहे थे। हाथों में कुदाल, बल्लम, छैनी-हथौड़ों से गुबंद पर प्रहार हो रहा था और भीड़ ने गुबंद को ढहा दिया।
इस घटना की जांच के लिए लिब्राहन आयोग का गठन किया गया, जिसने गठन के करीब 17 साल बाद रिपोर्ट पेश की मगर कोर्ट में इस मामले में फैसला आने में काफी समय लग गया और इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने का फैसला दे दिया। इसके बाद फिर मंदिर को बनाने की कोशिशों शुरू हो गई हैं। विवादित ढांचा गिराये जाने के संबंध में कुल दो एफआईआर भी दर्ज की गई थी। यह विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और देश की सर्वोच्च अदालत ने साल 2019 में फैसला दिया और इस केस को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर दिया।