लखनऊ, 20 सितंबर: 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राजनीति पूरी तरह से गरमा चुकी है। सभी पार्टियां जीत के लिए अलग अलग तरीकों से दम भरती भी नजर आ रही हैं। ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव से जाट आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर से गरमाता नजर आ रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जाट वोट को खींचने के लिए आरक्षण की पैरवी भी हाल ही में की है। लेकिन अगर वो ऐसा करते हैं तो हो सकता है कि महागठबंधन के मनसूबों को खतरा हो जाए।
योगी के इस दांव से पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर सियासी समीकरण जाट समाज से बिगड़ सकता है। 2019 में जाट समुदाय के बीच अपनी बैठ बिठाने के लिए योगी ने ये खेल खेला है और इससे साफ भी है कि इसका लाभ पार्टी को मिलेगा भी। हांलाकि जाट समाज को ओबीसी में आरक्षण का मुद्दा नया नहीं है, लेकिन बीजेपी ने नए सिरे से इसे राजनीतिक मंच पर साझा कर सियासी हलचल मचा दी है।
मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट वोट बीजेपी को अच्छे से मिले चुके हैं। वहीं, कैराना उपचुनाव में बीजेपी के हाथ से निकली भी लेकिन नतीजों में जाट समाज के बजाए मुस्लिम और दलित समाज की वोटों की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता है। ऐसे में यूपी में महागठबंधन को पस्त करने के लिए योगी ने जाट आरक्षण को सही बताया है और उसकी पैरवी की है।
वहीं, केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह का कहना है कि जाट समाज और अन्य बिरादरी के लोगों का हित बीजेपी में सुरक्षित है। प्रत्येक व्यक्ति को यहां सम्मान मिलता है और काबिल लोगों को आगे बढ़ाया जाता है।
वहीं, बीजेपी की ओर से आरक्षण की पैरवी होते देख कांग्रेस कमेटी जिलाध्यक्ष राम कुमार सिंह का कहना है कि साल 2014 के चुनाव से पहले कांग्रेस ने जाट समाज को आरक्षण दिया था। बीजेपी ने उसकी अदालत में पैरवी क्यों नहीं की। बीजेपी समाज को बरगलाने की कोशिश है। ऐसे में अगर जाट समुदाय बीजेपी के इस खेल को स्वीकार कर लेता है तो पार्टी को 2019 में बड़ा लाभ मिल सकता है।