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लोकसभा चुनाव 2019ः गुजराती की बीटीपी सियासी लहर झटका देगी बीजेपी और कांग्रेस को?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: January 17, 2019 18:49 IST

वर्ष 2017 में गुजरात में अस्तित्व में आई बीटीपी अपने पहले ही विस चुनाव में बसपा, आम आदमी पार्टी से ज्यादा वोट ला कर दो सीटें जीतने में कामयाब रही तो राजस्थान के ताजा विस चुनाव में भी बीटीपी ने दो सीटें जीत लीं, यही नहीं करीब आधा दर्जन सीटों के नतीजों को प्रभावित करने में भी कामयाब रही। 

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जहां लोकसभा चुनाव में एक-एक सीट के लिए कांग्रेस-भाजपा में संघर्ष की स्थिति है, वहीं गुजरात की बीटीपी सियासी लहर कांग्रेस और भाजपा, दोनों दलों को एमपी, राजस्थान और गुजरात की करीब आधा दर्जन सीटों पर झटका दे सकती है। 

वर्ष 2017 में गुजरात में अस्तित्व में आई बीटीपी अपने पहले ही विस चुनाव में बसपा, आम आदमी पार्टी से ज्यादा वोट ला कर दो सीटें जीतने में कामयाब रही तो राजस्थान के ताजा विस चुनाव में भी बीटीपी ने दो सीटें जीत लीं, यही नहीं करीब आधा दर्जन सीटों के नतीजों को प्रभावित करने में भी कामयाब रही। 

दक्षिण राजस्थान की सागवाड़ा विस सीट से बीटीपी के रामप्रसाद 58,406 वोट ला कर जीते, जहां बीजेपी के शंकरलाल को 53,824 वोट मिले तो चौरासी सीट से बीटीपी के राजकुमार रोत 64,119 ला कर जीते, जहां से बीजेपी के सुशील कटारा को 51,185 वोट मिले, इतना ही नहीं आसपुर से बीजेपी के गोपीचन्द 57,062 वोट ले कर जीत तो गए लेकिन बीटीपी के उमेश ने 51,732 वोट हांसिल कर उन्हें कड़ी टक्कर दी। बीटीपी की मौजूदगी से जहां भाजपा अपनी सीटें बचाने में नाकामयाब रही वहीं कांग्रेस के वोट बैंक को भी अच्छाखासा झटका लगा। बांसवाड़ा-डूंगरपुर की लोकसभा सीट बीजेपी के पास है, जिसे बचाने की तगड़ी चुनौती है, क्योंकि इस लोस क्षेत्र की नौ में से चार सीटें कांग्रेस के पास हैं, दो बीटीपी के पास हैं तो तीन भाजपा के पास हैं। कभी यहां की तीन सीटों पर समाजवादी विचारधारा वाले जनता दल का दबदबा था, किन्तु अब उसका कागजी असर ही नजर आ रहा है।

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, बीटीपी- भारतीय ट्राइबल पार्टी का दबदबा एमपी, राजस्थान और गुजरात के संयुक्त क्षेत्र पर रहने की संभावना है, लिहाजा इन क्षेत्रों की करीब आधा दर्जन लोकसभा सीटें बचाने की बड़ी चुनौती कांग्रेस और भाजपा, दोनों के सामने हैं।

एमपी, राजस्थान और गुजरात के इस संयुक्त क्षेत्र से भाजपा ओर कांग्रेस की पकड़ कमजोर पड़ने के संकेत तो लंबे समय से मिल रहे थे, लेकिन भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दल इस तीसरी शक्ति के उदय से बेखबर थे। पिछले कुछ वर्षों से इस क्षेत्र के काॅलेज इलेक्शन में एबीवीपी और एनएसयुआई, दोनों को अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल रही थी और स्थानीय छात्र संगठन ही जीत दर्ज करवाते जा रहे थे।देखना दिलचस्प होगा कि राजस्थान की 25 में से 25 सीटें जीतने का सपना देखने वाली भाजपा और कांग्रेस, दक्षिण राजस्थान की कितनी सीटें जीत पाती हैं?

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