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महात्मा गांधी की 150वीं जयंतीः गांधी स्मृति अटल, अचल है और यहां गांधी अपनी संपूर्णता में जिंदा हैं

By भाषा | Updated: September 28, 2019 19:53 IST

तीस जनवरी मार्ग पर कुछ दूर चलें तो विशाल बिड़ला हाउस आता है जहां ‘बापू’ ने अपने अंतिम 144 दिन गुजारे थे। यहीं वह शहीद हुए थे। उनके शहादत के दिन पर ही इस सड़क को नाम ‘तीस जनवरी मार्ग’ रखा गया है।

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ठळक मुद्देगांधी स्मृति में महात्मा को याद करते हुए - उनके कदमों के अंतिम निशान, उनके अंतिम क्षण उकेरते हुए।दो अक्तूबर को महात्मा गांधी के 150वें जन्म दिवस से पहले सैकड़ों की संख्या में स्कूली बच्चे गांधी स्मृति आए हुए थे।

यह वह जगह है जहां नाथूराम गोडसे की गोलियां खा कर राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी ‘हे राम’ कहते हुए जमीन पर गिर पड़े थे और उन्होंने अंतिम सांसें ली थी और जहां प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्र के दुख और व्यथा को ‘‘हमारी जिंदगी से रोशनी चली गई’’ के अपने ऐतिहासिक शब्दों से स्वर दिया था।

तीस जनवरी के उस मनहूस सूर्यास्त के 71 साल बाद जब देश और उसके साथ सारी दुनिया गांधी का 150 जन्मदिवस मना रही है, गांधी स्मृति अटल, अचल है और यहां गांधी अपनी संपूर्णता में जिंदा हैं। तीस जनवरी मार्ग पर कुछ दूर चलें तो विशाल बिड़ला हाउस आता है जहां ‘बापू’ ने अपने अंतिम 144 दिन गुजारे थे। यहीं वह शहीद हुए थे। उनके शहादत के दिन पर ही इस सड़क को नाम ‘तीस जनवरी मार्ग’ रखा गया है।

बारह साल का युवराज और उसका दोस्त शहीद स्तंभ पर लगी पट्टिका पर लिखे ‘हे राम’ पढ़ते हुए उसे समझने की कोशिश कर रहे थे। यह स्तंभ उस जगह बना है जहां गोडसे की गोलियां खा कर राष्ट्रपिता गिरे और अंतिम सांसें ली थी। दो अक्तूबर को महात्मा गांधी के 150वें जन्म दिवस से पहले सैकड़ों की संख्या में स्कूली बच्चे गांधी स्मृति आए हुए थे। जब उनसे इस जगह के बारे में पूछा गया तो वे एक साथ बोलने लगे। युवराज ने कहा, ‘‘गांधी जी यहां रहते थे। इस सड़क पर उनकी हत्या की गई। वह एक दिन में एक हजार खत लिखते थे।’’

सीमेंट से सुरक्षित किए गए बापू के अंतिम कदम उस जगह तक जाते हैं जहां गोडसे उनका इंतजार कर रहा था और उनपर गोलियां चलाने से पहले जहां उसने उनके चरण स्पर्श किए थे। हत्या के तुरंत बाद डबडबाए आंखों से नेहरू ने बिड़ला हाऊस के गेट से राष्ट्र को इस विकराल त्रासदी की सूचना देते हुए कहा था, ‘‘हमारी जिंदगी से रोशनी चली गई और हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा है...’’ नेहरू के इस संबोधन को दुनिया के महानतम भाषणों में से एक माना जाता है।

वर्ष 1973 में राष्ट्रीय स्मारक में बदले गए गांधी स्मृति परिसर में आज भी वह कमरा सुरक्षित है जहां महात्मा गांधी ने अपने आखिरी दिन बिताए। इसके लंबे गलियारे गांधी की जिंदगी के अहम घटनाओं से जुड़ी तस्वीरों से सजे हैं। जगह जगह पर बापू के लिखे पत्र हैं। साथ ही एक मल्टीमीडिया म्यूजियम है जहां अहिंसा से अपने वक्त के सबसे ताकतवर ब्रिटिश साम्राज्य को परास्त करने वाले शख्स की जिंदगी में झांका जा सकता है।

उनका कमरा आज भी वैसा ही है जैसा गांधी ने प्रार्थना में जाने के वक्त छोड़ा था। वहां उनका चश्मा और उनकी छड़ी पड़ी है। उनकी गीता की प्रति वहां है। एक कांटा और एक चम्मच भी पड़ा है। जमीन पर बिछी बिस्तर पर उनका स्पर्श अब भी महसूस किया जा सकता हैं।

गांधी स्मृति की एक दीवार पर टाइम लाइन ब्राउजर लगा है। यहां एक टैबलेट की मदद से ‘‘मोहनदास से महात्मा’’ का उनका सफर देखा-समझा जा सकता है। आजादी की जंग के दौरान गांधी जी ने एक लंबा समय जेल में भी बिताया था। जेल के उनके जीवन की झलक पेश करने के लिए एक ‘ई-प्रिजन’ शो भी है। 

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