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Uterus: गर्भाशय की बीमारियां क्यों बढ़ गई हैं?, जानें क्या कहते हैं विशेषज्ञ

By सैयद मोबीन | Updated: December 13, 2023 14:59 IST

Uterus: महिलाओं की औसत उम्र 40-45 साल रहती थी. ऐसे में 60 साल में होने वाली कुछ बीमारियाें का पता ही नहीं चल पाता था.

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ठळक मुद्देकुछ बीमारियां उपचार योग्य हैं.कुछ का उपचार करना कठिन है. उम्र देखकर इन बीमारियों का उपचार तय किया जाता हैं.

Uterus: गर्भाशय की बीमारियां पहले भी थीं और अब भी हैं लेकिन पहले की तुलना में अब महिलाओं की औसत उम्र बढ़ गई है, जागरूकता बढ़ गई है, इंवेस्टिगेशन बहुत आ गए हैं जो पहले भारत में नहीं होते थे. इससे काफी बीमारियां पता चल रही हैं. इसलिए गर्भाशय की बीमारियों के मामले ज्यादा नजर आ रहे हैं.

यह विशेषज्ञों की राय है. उनके मुताबिक पहले महिलाओं की औसत उम्र 40-45 साल रहती थी. ऐसे में 60 साल में होने वाली कुछ बीमारियाें का पता ही नहीं चल पाता था. जल्दी डॉक्टर के पास भी नहीं जाते थे. इसलिए पहले की तुलना अब बीमारियों का निदान ज्यादा हो रहा है.

गर्भाशय की बीमारियां कौनसी हैं?

कुछ बीमारियां उपचार योग्य हैं जबकि कुछ का उपचार करना कठिन है. गर्भाशय की बीमारियाें में गर्भाशय में गांठ आना (फाइब्राॅइड), गर्भाशय बड़ा हो जाना (एडिनोमायोसिस), हार्मोन कम या ज्यादा होना, गर्भाशय में पॉलिप होना, गर्भाशय का कैंसर, गर्भाशय के मुख का कैंसर, गर्भाशय में इंफेक्शन, अंडाशय का कैंसर, अंडाशय में सिस्ट होना, फैलोपियन ट्यूब में टीबी होना, हाइड्रोसल्फीन, पूरे गर्भाशय में टीबी होना आदि बीमारियों का समावेश है. कैंसर की स्टेजिंग और मरीज की उम्र देखकर इन बीमारियों का उपचार तय किया जाता हैं.

प्रमुख कारण क्या हैं?

स्पष्ट रूप से कोई कारण बताना तो कठिन है लेकिन रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने पर गर्भाशय की समस्या हो सकती है. इसलिए खानपान पर ध्यान देना, नियमित व्यायाम करना, नियमित जांच जैसे सोनोग्राफी कराना चाहिए ताकि गर्भाशय की बीमारियों से बचा जा सके. 45 साल की उम्र के बाद तो साल में एक बार सोनोग्राफी जरूर करानी चाहिए.

लक्षण क्या हैं?

गर्भाशय से संबंधित बीमारियों के लक्षणों में पेट में दर्द होना, माहवारी में ज्यादा या कम ब्लीडिंग होना, माहवारी के बीच-बीच में ब्लीडिंग होना, शारीरिक संबंध के दौरान या बाद में ब्लीडिंग होना, बीमारी बढ़ गई तो पेशाब रुके जैसा महसूस होना, पेशाब करने में तकलीफ होना, शौच करने में तकलीफ होना, बदबू वाला वाइट डिस्चार्ज होना आदि का समावेश है. इनमें से कोई एक या दो लक्षण दिखाई दे सकते हैं या कोई लक्षण दिखे बगैर भी बीमारी हो सकती है. इसका सोनोग्राफी में पता चल जाता है.

जांच कब करे?

लक्षण दिखने के बाद जांच कराना चाहिए. वैसे तो 45 साल की उम्र होने के बाद साल में एक बार सोनोग्राफी करानी चाहिए. इसके साथ ही कोलेस्ट्रॉल, थायराॅइड, शुगर, विटामिन डी, विटामिन बी-12, ब्लड प्रेशर (बीपी) की जांच कराना भी बहुत जरूरी है, यदि बीपी ज्यादा है तो किडनी फंक्शन भी कराना चाहिए.

गर्भाशय की बीमारियों से संबंधित जांच में सोनोग्राफी, पेप्समियर, वजाइनल साइटोलॉजी, टीबी की जांच, यदि युवतियां हैं और पीरिएड्स की समस्या है तो पीसीओडी हो सकती है, इससे रिलेटेड हार्मोन की जांच, एडेमायोसिस या ओवेरियन से संबंधित कुछ समस्या हो तो सीए 125, एमआरआई पेल्विस, लेप्रोस्कोपी आदि का समावेश है.

गर्भाशय निकालना अंतिम विकल्प

यदि लक्षण बहुत ज्यादा है, जैसे कैंसर है या बड़े-बड़े फाइब्रॉइड हैं जो तकलीफ दे रहे हैं, बच्चे हो गए हैं तो गर्भाशय निकाल सकते हैं. कोई भी कैंसर है तो इसे निकालना चाहिए. साथ में अंडाशय भी निकालना चाहिए. हार्मोनल ट्रीटमेंट भी दे सकते हैं.

गर्भाशय में हार्माेन मेरिना कॉपर्टी रहता है. इससे बच्चे तो नहीं होते हैं लेकिन हार्मोन की समस्या हल कर सकते हैं. इसलिए मरीज की उम्र, कैंसर की स्टेजिंग आदि स्थितियां देखने के बाद ही गर्भाशय निकालने के बारे में निर्णय लिया जा सकता है.

महिलाएं अपना ध्यान खुद रखें

महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. शोभा गांधी ने बताया कि महिलाएं अपना ध्यान खुद रखें. थोड़ी भी तकलीफ हो तो डॉक्टर से जांच करा लें और जो डॉक्टर बोलते हैं, वो जांच जरूर कराएं. ऐसा सोचकर जांच कराने को न टालें कि बाद में करा लेंगे. रजोनिवृत्ति के बाद नियमित जांच करना चाहिए. इससे कई बीमारियों के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. 45 साल की उम्र होने के बाद तो साल में एक बार सोनोग्राफी करानी ही चाहिए. इसके साथ ही कोलेस्ट्रॉल, थायराॅइड, शुगर, विटामिन डी, विटामिन बी-12, ब्लड प्रेशर (बीपी) की जांच कराना भी बहुत जरूरी है, यदि बीपी ज्यादा है तो किडनी फंक्शन भी कराना चाहिए.

टॅग्स :Health and Family Welfare DepartmentHealth and Education Department
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