लाइव न्यूज़ :

Expert Interview: दिल्ली के प्रदूषण में सिकुड़ जाएंगे बच्चों के फेफड़े, ऑड-इवेन नहीं है स्थाई समाधान

By भाषा | Updated: November 3, 2019 12:44 IST

#DelhiAirEmergency: एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया का मानना है कि दूषित हवा से सेहत पर पड़ रहे कुप्रभाव का सम विषम स्थायी समाधान नहीं है।

Open in App
ठळक मुद्देएम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया का मानना है कि दूषित हवा से सेहत पर पड़ रहे कुप्रभाव का सम विषम स्थायी समाधान नहीं है।इस स्तर पर वायु प्रदूषण दिल से लेकर दिमाग और हड्डियों से लेकर त्वचा तक, संपूर्ण शरीर पर बुरा प्रभाव छोड़ता है।

दिल्ली में पिछले एक सप्ताह से जारी वायु प्रदूषण का संकट गहराने के बाद सरकार को दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में सेहत के लिहाज से आपात स्थिति लागू करनी पड़ी है। ऐसे में दिल्ली सरकार वाहन जनित प्रदूषण से राहत के लिये चार नवंबर से राजधानी में सम विषम नंबर नियम लागू कर रही है। एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया का मानना है कि दूषित हवा से सेहत पर पड़ रहे कुप्रभाव का सम विषम स्थायी समाधान नहीं है। डा. गुलेरिया से सवाल और उनके जवाबः-

दिल्ली में वायु प्रदूषण खतरे के निशान को पार कर गया है, इसका सेहत पर कितना और कैसा असर हो सकता है?

यह स्थित सेहत के लिये खतरे की घंटी है। अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि एक्यूआई पर खतरनाक स्तर वाली दूषित हवा का संपर्क न सिर्फ श्वसन रोगों का खतरा बढ़ाता है बल्कि हृदय रोगों की भी वजह बनता है। इसलिये इस स्तर पर वायु प्रदूषण दिल से लेकर दिमाग और हड्डियों से लेकर त्वचा तक, संपूर्ण शरीर पर बुरा प्रभाव छोड़ता है। गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशुओं, दिल और अस्थमा के रोगियों और बुजुर्गों के लिये यह स्थिति बेहद जोखिम भरी है।

दिवाली के बाद गैस चेंबर बन चुकी दिल्ली के लोगों को प्रदूषण जनित सेहत के खतरों से बचाने के लिये सम विषम नंबर नियम लागू करने जैसे उपाय कितने कारगर हो सकते हैं?

जहरीली हवा के सेहत पर दीर्घकालिक प्रभाव के लिहाज से देखें तो सम विषम नंबर नियम, स्थायी समाधान नहीं हो सकता है। क्योंकि ये उपाय उस समय अपनाये जा रहे हैं जबकि हालात पहले से ही आपात स्थिति में पहुंच गये हैं। इसका सेहत पर जो प्रभाव पड़ चुका है उसका असर लंबे समय बाद दिखेगा। मसलन, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और एम्स के एक साझा अध्ययन के मुताबिक ऐसे दूषित वातावरण में रहने वाले बच्चों के फेंफड़े सिकुड़ जाते हैं और अधिक उम्र में पहुंचने पर इनके लिये सांस संबंधी रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसी प्रकार ब्रिटेन की एक संस्था के साथ हमारा अध्ययन चल रहा है जिसमें गर्भवती महिलाओं, बच्चों और दिल एवं अस्थमा के मरीजों पर पार्टिकुलेट तत्वों के असर का पता किया जा रहा है। कुल मिलाकर मैं यही कहूंगा कि सरकारों को आरोप प्रत्यारोप के बजाय समस्या के स्थायी समाधान की तरफ बढ़ना चाहिये जिससे हर साल की इस दिक्कत से बचा जा सके।

हवा में घुले दूषित पार्टिकुलेट तत्व हृदय रोग का खतरा कैसे पैदा कर सकते हैं?

पीएम 2.5 और इससे छोटे पार्टिकुलेट तत्व सांस के जरिये शरीर में प्रवेश करके सबसे पहले रक्त में मिल जाते हैं। खून के जरिये ये दूषित तत्व हृदय और श्वसन तंत्र पर नकारात्मक असर छोड़ते हैं। लंबे समय तक पार्टिकुलेट तत्वों के संपर्क में रहने के कारण त्वचा संबंधी रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इतना ही नहीं इनसे फेंफड़ों के कैंसर की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। इस आशंका के बारे में अभी अध्ययन जारी है, लकिन जिस प्रकार के हालात बन गये हैं, उनमें यह कहना गलत नहीं होगा कि वायु प्रदूषण दिल और सांस की बीमारियों का परोक्ष कारक हो सकता है।

क्या पीएम तत्वों का खतरा सामान्य सेहत वाले लोगों को भी प्रभावित करता है?

हर साल दीवाली के बाद एक्यूआई के गंभीर श्रेणी में पहु्ंचने के एक सप्ताह के भीतर एम्स के श्वसन रोग विभाग की ओपीडी में रोगियों की संख्या 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इनमें अधिकतर मरीज खांसी, सांस लेने में दिक्कत और घुटन महसूस करने जैसी व्याधियों से पीड़ित होते हैं। इतना ही नहीं एम्स में पढ़ने के लिये बाहर से आने वाले छात्रों में भी इन दिनों यह समस्या बढ़ जाती है। इससे साफ है कि वायु प्रदूषण, सिर्फ रोगियों के लिये ही नहीं बल्कि सामान्य सेहत वालों के लिये भी गंभीर बीमारियों के खतरे की वजह बनता है।

इस आपात स्थिति का सामना करने के तात्कालिक उपाय क्या हो सकते हैं?

अव्वल तो दिल्ली एनसीआर क्षेत्र के लोग, अब एक्यूआई देखकर घर से निकलने का कार्यक्रम बनायें। एक्यूआई खतरे के निशान के ऊपर होने पर, घर से निकलने से बचें। धूप निकलने पर ही घर से बाहर जायें। बच्चे, बुजुर्ग, मरीज और गर्भवती महिलायें इन हिदायतों का सख्ती से पालन करें। कम से कम आपात स्थिति के दौर में सुबह की सैर से बचना मुनासिब होगा। खिलाड़ियों को भी मैदान से इन दिनों दूरी बनाना बेहतर होगा। ऐसे में जॉगिंग और दौड़-धूप, अस्थमा, दिल और दिमाग के दौरे का कारण बन सकती है।

टॅग्स :वायु प्रदूषणएम्स
Open in App

संबंधित खबरें

भारतDelhi AQI: दिल्ली में गंभीर स्तर पर पहुंचा AQI, लोगों का सांस लेना हुआ मुश्किल

स्वास्थ्यपराली नहीं दिल्ली में जहरीली हवा के लिए जिम्मेदार कोई और?, दिल्ली-एनसीआर सर्दियों की हवा दमघोंटू, रिसर्च में खुलासा

भारतMumbai Air Pollution: दिल्ली के बाद मुंबई में वायु गुणवत्ता बेहद खराब, BMC ने 50 से ज्यादा निर्माण स्थलों को भेजा नोटिस

स्वास्थ्यखतरनाक धुएं से कब मुक्त होगी जिंदगी?, वायु प्रदूषण से लाखों मौत

भारत'9 में से 1 भारतीय को कैंसर का खतरा': शार्क टैंक जज विनीता सिंह ने मुंबई की एयर क्वालिटी खराब लेवल पर पहुंचने पर जताई गहरी चिंता

स्वास्थ्य अधिक खबरें

स्वास्थ्यखांसी-जुकामः कफ सीरप की बिक्री पर लगाम कसने की कोशिश

स्वास्थ्यपुरुषों की शराबखोरी से टूटते घर, समाज के सबसे कमजोर पर सबसे ज्यादा मार

स्वास्थ्यकश्‍मीर की हवा, कोयला जलाने की आदत, आंखों में जलन, गले में चुभन और सांस लेने में दिक्कत?

स्वास्थ्यक्या आपने कभी कुत्ते को कंबल के नीचे, सोफे के पीछे या घर के पिछले हिस्से में खोदे गए गड्ढे में पसंदीदा खाना छुपाते हुए देखा है?, आखिर क्या है वजह

स्वास्थ्यबिहार स्वास्थ्य विभागः 33 हजार से अधिक पदों पर नियुक्ति, मंत्री मंगल पांडेय ने कहा-वैशाली, सीवान और भोजपुर में तैयार हो रहे तीन नए मेडिकल कॉलेज