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कैंसर रोगियों की देखभाल करने वालों को झेलना पड़ता है मानसिक तनाव, अध्ययन में सामने आए और भी कई पहलू

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 16, 2022 16:26 IST

डॉक्टर अमृता राकेश के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन में सामने आया है कि कैंसर से जूझ रहे लोगों की देखभाल करने वालों को मनोवैज्ञानिक तनाव का सामना करना पड़ता है। रोगियों के साथ रहने पर देखभाल करने वालों के जीवन की गुणवत्ता पर भी सीधा प्रभाव पड़ रहा है।

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ठळक मुद्देकैंसर उन 10 रोगों में शामिल हो गया है, जिनसे दुनियाभर में सबसे ज्यादा मौत होती हैंकैंसर से जूझ रहे लोगों की देखभाल करने वाले भी तनाव से जूझ रहे हैंऐसे लोगों के हालात के बारे में जानकारी लेना और उनकी मदद करना जरूरी है

नई दिल्ली: एम्स-पटना के चिकित्सकों के अध्ययन के अनुसार कैंसर से जूझ रहे लोगों की देखभाल करने वालों को मनोवैज्ञानिक तनाव का सामना करना पड़ता है, जिसे अकसर नजर अंदाज कर दिया जाता है। इससे उनके जीवन की गुणवत्ता और मरीज की देखभाल प्रभावित होती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)-पटना के रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग ने कैंसर रोगियों की देखभाल करने वालों के जीवन की गुणवत्ता जानने के लिए जुलाई 2020 से मार्च 2021 के बीच यह अध्ययन किया। अध्ययन के दौरान कुल 350 तीमारदारों से संपर्क किया गया, जिनमें से 264 ने बात की। इन लोगों से 31 प्रश्न पूछे गए। इनमें से सात सवाल उनपर पड़े बोझ, 13 सवाल दिनचर्या के प्रभावित होने, आठ सवाल हालात को सकारात्मक रूप से संभालने और तीन सवाल वित्तीय चिंताओं के बारे में थे।

डॉक्टर अमृता राकेश के नेतृत्व में किए गए अध्ययन के परिणाम अंतरराष्ट्रीय 'पत्रिका जनरल ट्रीटमेंट एंड रिसर्च कम्युनिकेशंस' में प्रकाशित हुए हैं। 'रेडिएशन ऑनकोलॉजी' विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर और अध्ययन के सह लेखक डॉक्टर अभिषेक शंकर ने कहा कि 54 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कैंसर रोगी को एक बोझ माना जबकि 55 फीसद ने इलाज को लेकर वित्तीय चिंताओं की बात स्वीकार की। डॉक्टर शंकर ने कहा कि लगभग 62 प्रतिशत को लगता है कि उनकी दिनचर्या बदल गई है और करीब 38 फीसद उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने समय के साथ खुद को हालात में ढाल लिया है।

तीमारदारों से मनोवैज्ञानिक तनाव के बारे में भी सवाल पूछे गए। डॉक्टर ने कहा, "तीमारदार के जीवन की खराब गुणवत्ता और मनोवैज्ञानिक तनाव के बीच गहरा संबंध पाया गया।" मुख्य लेखक डॉक्टर राकेश ने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण अध्ययन में निर्धारित समय की तुलना में अधिक समय लगा। कोविड-19 के कारण कम लोग कैंसर के इलाज के लिए अस्पताल आए। अध्ययन की सह लेखिका और एम्स-पटना में रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग की अतिरिक्त प्रोफेसर व प्रमुख डॉक्टर प्रितांजलि सिंह ने कहा, "कैंसर पर जिस तरह से ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है, उसी तरह रोगियों के तीमारदारों की बेहतरी पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। रोगियों के साथ रहने पर इनके जीवन की गुणवत्ता पर भी सीधा प्रभाव पड़ रहा है।"

उन्होंने कहा कि समय-समय पर ऐसे लोगों के हालात के बारे में जानकारी लेना और उनकी मदद करना जरूरी है। अध्ययन में कहा गया है कि बीते वर्षों के दौरान कैंसर के मामलों में कई गुणा वृद्धि हुई है और विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक स्वास्थ्य अनुमान 2019 के अनुसार कैंसर उन 10 रोगों में शामिल हो गया है, जिनसे दुनियाभर में सबसे ज्यादा मौत होती हैं।

इनपुट- एजेंसी

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