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कोरोना से ठीक हुए मरीज के खड़े होते ही पैरों का रंग पड़ा नीला, जानें क्या ये है किसी बीमारी का संकेत?

By अंजली चौहान | Updated: August 12, 2023 13:17 IST

लॉन्ग कोविड शरीर में कई प्रणालियों को प्रभावित करता है और इसमें लक्षणों की एक श्रृंखला होती है, जो रोगियों की दैनिक गतिविधियों को करने की क्षमता को प्रभावित करती है

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ठळक मुद्देलंबे समय से कोरोना पीड़िता मरीज के शरीर में दिखे अलग लक्षणमरीज के पैर खड़े होने पर पड़े नीले इस लक्षण का डॉक्टरों ने शोध कर कारण बताया है

नई दिल्ली: कोरोना वायरस के लाखों लोगों को अपनी चपेट में लिया और उन्हें अस्पतालों के चक्कर लगवाएं। कोरोना वायरस का असर वर्तमान समय में भले ही कम हो गया हो लेकिन अभी भी कई लोगों में कोरोना का प्रभाव अन्य स्वस्थ्य समस्याओं के जरिए दिखाई दे रहा है।

इसी तरह का एक मामला सामने आया है जिसमें लंबे समय से कोरोना से पीड़ित शख्स में कुछ अजीब लक्षण दिखाई दिए। बताया जा रहा है कि शख्स जब कोरोना से ठीक हुआ तो वह अपने पैरों पर खड़ा हुआ। शख्स के 10 मिनट तक खड़े होते ही उसके पैरों का रंग अचानक बदल गया और वह नीले पड़ गए।

इसके बाद शख्स घबरा गया और उसने चिकित्सक से सलाह ली। भारतीय मूल के शोधकर्ता डॉक्टर मनोज सिवन के अनुसार, कोरोनोवायरस स्थिति वाले लोगों के बीच इस लक्षण के बारे में अधिक जागरूकता की तत्काल आवश्यकता है।

लांसेट में प्रकाशित और यूके में लीड्स विश्वविद्यालय के सिवन द्वारा लिखित नया शोध एक 33 वर्षीय शख्स की बीमारी पर केंद्रित है। इसमें कहा गया है कि मरीज में एक्रोसायनोसिस विकसित हुआ जिससे पैरों में रक्त का शिरापरक जमाव हुआ।

इसके बाद खड़े होने के एक मिनट बाद, रोगी के पैर लाल होने लगे और समय के साथ नीले होते गए, नसें अधिक प्रमुख होती गईं। 10 मिनट के बाद रंग बहुत अधिक स्पष्ट हो गया, रोगी ने अपने पैरों में भारी, खुजली की अनुभूति का वर्णन किया। न खड़े होने की स्थिति में लौटने के दो मिनट बाद ही उनका मूल रंग वापस आ गया।

मरीज ने कहा कि कोविड-19 संक्रमण के बाद से उसे रंग बदलने का अनुभव होने लगा था। उन्हें पोस्टुरल ऑर्थोस्टैटिक टैचीकार्डिया सिंड्रोम (POTS) का पता चला था, एक ऐसी स्थिति जिसके कारण खड़े होने पर हृदय गति में असामान्य वृद्धि होती है। 

रिहैबिलिटेशन मेडिसिन में एसोसिएट क्लिनिकल प्रोफेसर और मानद सलाहकार डॉक्टर सिवन ने कहा कि यह एक मरीज में एक्रोसायनोसिस का एक उल्लेखनीय मामला था, जिसने अपने कोविड -19 संक्रमण से पहले इसका अनुभव नहीं किया था।

इसका अनुभव करने वाले मरीजों को पता नहीं हो सकता है कि यह लॉन्ग कोविड और डिसऑटोनोमिया का लक्षण हो सकता है और वे जो देख रहे हैं उसके बारे में चिंतित महसूस कर सकते हैं। उन्होंने कहा, इसी तरह, चिकित्सकों को एक्रोसायनोसिस और लॉन्ग कोविड के बीच संबंध के बारे में पता नहीं हो सकता है।

बता दें कि लॉन्ग कोविड शरीर में कई तरह से अपना असर छोड़ता है जो व्यक्ति को प्रभावित करता है। इसमें लक्षणों की एक श्रृंखला होती है, जो रोगियों की दैनिक गतिविधियों को करने की क्षमता को प्रभावित करती है।

यह स्थिति स्वायत्त तंत्रिका तंत्र को भी प्रभावित करती है जो रक्तचाप और हृदय गति को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार है। सिवन की टीम के पिछले शोध से पता चला है कि डिसऑटोनोमिया और पीओटीएस दोनों अक्सर लॉन्ग कोविड वाले लोगों में विकसित होते हैं।

हमें दीर्घकालिक स्थितियों में डिसऑटोनोमिया के बारे में अधिक जागरूकता, अधिक प्रभावी मूल्यांकन और प्रबंधन दृष्टिकोण और सिंड्रोम में और अधिक शोध की आवश्यकता है। डॉक्टर सिवन ने कहा, इससे मरीज़ और चिकित्सक दोनों इन स्थितियों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में सक्षम होंगे।

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