जब विदेशों में मेडिकल शिक्षा के नाम पर फर्जी संस्थानों, एजेंटों के जाल और छात्रों के शोषण की खबरें आम होती जा रही हैं, ऐसे में मध्य एशिया का शांत, स्थिर और अपेक्षाकृत सुरक्षित देश किर्गिस्तान एक बेहतर विकल्प के रूप में उभर रहा है। खासतौर पर भारतीय छात्रों के लिए, जहां पढ़ाई के साथ-साथ सुरक्षा और पारदर्शिता जैसे अहम पहलुओं का भी ध्यान रखा जा रहा है। रूस, यूक्रेन और फिलीपींस जैसे देशों में राजनीतिक अस्थिरता और शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। इसके विपरीत, किर्गिस्तान में बीते कुछ वर्षों में मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में ठोस प्रयास हुए हैं।
बिश्केक स्थित इंटरनेशनल हायर स्कूल ऑफ मेडिसिन (IHSM) जैसे संस्थानों ने भारतीय छात्रों को आकर्षित किया है। हालांकि यह कहना भी जरूरी है कि कोई एक संस्थान इस पूरी प्रक्रिया का प्रतिनिधि नहीं हो सकता, लेकिन IHSM जैसे कॉलेज एक संकेत जरूर देते हैं कि भारतीय निवेश के चलते वहां एक सुव्यवस्थित शैक्षणिक ढांचा विकसित हो रहा है।
IHSM को WHO, FAIMER और ECFMG जैसे अंतरराष्ट्रीय निकायों से मान्यता प्राप्त है और कॉलेज का दावा है कि उसका पाठ्यक्रम भारत की राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के दिशा-निर्देशों के अनुसार है। हालांकि कॉलेजों की सफलता का मूल्यांकन केवल परीक्षा पास प्रतिशत या विदेशी मान्यता से नहीं, छात्रों के अनुभव और स्थानीय माहौल से भी जुड़ा होता है।
हरियाणा निवासी एक अभिभावक मनीष मलिक ने बताया कि उन्होंने अपने बेटे को तमाम विकल्पों के बाद किर्गिस्तान भेजा। उनके अनुसार, “वहां का माहौल सुरक्षित है, हॉस्टल भारतीय खानपान से लैस है और कॉलेज क्लिनिकल एक्सपोजर के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय परीक्षाओं की तैयारी में भी मार्गदर्शन देता है।”
हालांकि वे यह भी मानते हैं कि भारत सरकार को चाहिए कि वह विदेशों में पढ़ने जा रहे छात्रों की सुरक्षा और सुविधा को लेकर एक मानक नीति बनाए और उन देशों की पहचान करे जहां शिक्षा के साथ भरोसे का माहौल है। सूत्रों के मुताबिक, अन्य देशों की तुलना में किर्गिस्तान की सरकार और प्रशासन ने विदेशी छात्रों की सुरक्षा और आवश्यक सहायता पर ध्यान दिया है।
छात्रों को सीधे कॉलेज से संपर्क कर प्रवेश लेने की सुविधा मिलती है, जिससे बिचौलियों और एजेंटों की भूमिका सीमित होती है — जो कि विदेशी शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी समस्या बन चुके हैं। क्राइम रिपोर्टर्स यूनिट की एक स्वतंत्र जांच में यह भी सामने आया है कि कई एशियाई और पूर्व-सोवियत देशों में फर्जी कॉलेज धड़ल्ले से चल रहे हैं, जिनकी मान्यता न तो भारत में है और न ही विश्व स्वास्थ्य संगठनों में।
इनकी तुलना में किर्गिस्तान में कई संस्थान अपेक्षाकृत अधिक पारदर्शी और विनियमित नजर आते हैं। इस सकारात्मक पहल के पीछे भारतीय निवेशकों की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जानकारी के अनुसार, किर्गिस्तान में मेडिकल संस्थानों की स्थापना के साथ-साथ भारतीय संस्कृति, भाषा, खानपान और काउंसलिंग जैसी सेवाएं भी प्रदान की जा रही हैं।
इससे छात्रों को विदेशी जमीन पर आत्मीयता का अनुभव होता है। भारत और किर्गिस्तान के बीच शिक्षा के क्षेत्र में यह सहयोग हाल के वर्षों में मजबूत हुआ है। जानकारों का मानना है कि यह सहयोग न केवल दोनों देशों के संबंधों को सुदृढ़ करता है, बल्कि मेडिकल शिक्षा की उस जरूरत को भी पूरा करता है जो भारत जैसे देश में हर वर्ष लाखों छात्रों के लिए चुनौती बनी रहती है।
बहरहाल, यह स्पष्ट है कि मेडिकल शिक्षा के लिए विदेश जाना अब भी एक गंभीर निर्णय है, इन सबके बावजूद किर्गिस्तान जैसे देशों में मौजूद कुछ पारदर्शी और संरचित विकल्प निश्चित रूप से राहत प्रदान करते हैं — बशर्ते छात्रों और अभिभावकों द्वारा सही जानकारी और स्रोतों से निर्णय लिया जाए।