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जानिए कौन है सुनील राठी? जेल के अंदर माफिया मुन्ना बजरंगी की हत्या करने का आरोपी

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 11, 2018 7:57 PM

साल 1997 के दौरान सुनील राठी के पिता नरेश राठी शहर मेरठ की टिकरी नगर पंचायत के चेयरमैन हुआ करते थे।

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विभव देव शुक्ल

 बीते दिनों बागपत जेल में मारे गए के माफिया मुन्ना बजरंगी की हत्या में एक दूसरे माफिया सुनील राठी का नाम खूब उछल रहा है। हालांकि यह नाम उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान में भी अच्छे से पहचाना जाता है। किसी जमाने में खुद की गैंग में 150 से अधिक शूटर रखने वाले इस माफिया के नाम हत्या, रंगदारी, फिरौती और अपहरण के तमाम मामले दर्ज हैं।

 लेकिन सवाल यह उठता कि अपराध की दुनिया में यह नाम इतना बड़ा कैसे बना? साल 1997 के दौरान सुनील राठी के पिता नरेश राठी शहर मेरठ की टिकरी नगर पंचायत के चेयरमैन हुआ करते थे। चुनावी रंजिश के चलते बागपत के बिजरौल भट्ठे के पास उनकी हत्या कर दी गई। घटना के कुछ समय बाद नरेश राठी की पत्नी टिकरी से चेयरमैन बनी लेकिन सुनील ने कुछ और ही ठान रखा था।

 18 साल की उम्र में सुनील ने पिता की मौत का बदला लेने की योजना बनाई। जल्द ही सुनील ने महक सिंह नामक युवक समेत दो और लोगों की हत्या कर दी। एक साल के भीतर 1998 तक सुनील उत्तराखंड के रुड़की और हरिद्वार में सक्रिय हो गया।

इस घटना के बाद सुनील राठी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तमाम अपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया। प्रशासन और आम जनता को अंदाजा लग चुका था कि सुनील की आपराधिक भूमिका लम्बी चलने वाली है। साल 2011 में सुनील ने रुड़की जेल के डीप्टी जेलर नरेंद्र खम्पा की हत्या की जिससे उत्तराखंड के अपराधियों की सूची में एक और नाम हमेशा के लिए जुड़ गया।

इससे पहले कि आम जनता और प्रशासन इस मुगालते में पड़ते कि सुनील की सक्रियता कम हुई है। पांच अगस्त साल 2014 को सुनील का दुश्मन चीनू पंडित रुड़की जेल से रिहा हो रहा था ठीक उस समय सुनील के दाहिने हात अमित भूरा और अन्य ने उस पर एके 47 और 9 एमएम पितौल से अंधाधुंध फायरिंग की। जिसमें तीन लोगों की मौके पर मौत हो गई और सात लोग घायल हो गए। इस मामले में अमित के अलावा सतीश राणा, देवपाल राणा, और सुशील राठी को नामजद किया गया।      

 फिलहाल मुन्ना बजरंगी की हत्या के मामले में उत्तर प्रदेश के डीआईजी लॉ एंड ऑर्डर ने आरोपी सुनील को बताया लेकिन घटना के बाद ऐसे तमाम सवाल हैं जिनका जवाब किसी के पास नहीं है।

 इतने खूंखार अपराधी के को जेल के अन्दर पिस्तौल मिली कैसे?

ऐसे खूंखार अपराधियों की निगरानी में चूक कैसे?

इतनी भयानक घटना बिना किसी राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण के कैसे संभव?

(विभव देव शुक्ल लोकमत न्यूज में इंटर्न हैं।)

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