IIT मद्रास की दलित छात्रा के साथ हुए रेप के एक साल बाद भी पुलिस ने नहीं की कोई कार्रवाई

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 26, 2022 09:46 PM2022-03-26T21:46:21+5:302022-03-26T21:55:06+5:30

आईआईटी मद्रास में पढ़ने वाली दलित छात्रा दूसरे राज्य की रहने वाली है। 29 मार्च 2021 को उसने मायलापुर ऑल वूमेन पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके मुताबिक उसके साथ पढ़ने वाले रिसर्च स्कॉलर किंग्शुक देबशर्मा ने उसके साथ रेप किया और किंग्शुक के साथ सात अन्य लोगों ने भी उसका उत्पीड़न किया।

Police did not take any action even after a year after the rape of a Dalit student of IIT Madras | IIT मद्रास की दलित छात्रा के साथ हुए रेप के एक साल बाद भी पुलिस ने नहीं की कोई कार्रवाई

सांकेतिक तस्वीर

Highlightsपुलिस ने एफआईआर में रेप यानी धारा 376 को नहीं जोड़ा और न ही एससी/एसटी धारा लगाई पीड़िता ने हमें बताया कि पुलिस जांच अधिकारी उसके कॉल या मैसेज का जवाब तक नहीं देते हैंपीड़िता का आरोप है कि जांच अधिकारी के रवैये के कारण आरोपियों को केस में जमानत मिल गई

चेन्नई: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मद्रास में साल 2021 में एक 30 साल की दलित पीएचडी स्कॉलर ने कैंपस में उसके साथ हुए रेप की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई थी लेकिन आज तक उस मामले में चेन्नई पुलिस ने कोई भी एक्शन नहीं लिया है। जानकारी के मुताबिक पीएचडी छात्रा द्वारा शिकायत दर्ज कराने के एक साल बाद भी चेन्नई पुलिस ने घटना के संबंध में उचित धाराओं के साथ एफआईआर तक नहीं दर्ज की है।

इस संबंध में ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेन एसोसिएशन (एआईडीडब्ल्यूए) की राज्य महासचिव सुगंती ने कहा कि पुलिस ने एक साल तक इस शिकायत के मामले में न तो रेप की धाराएं जोड़ी हैं और न ही एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा को शिकायत में शामिल किया है। इतना ही नहीं पुलिस ने इस मामले में एक साल बाद तक कोई गिरफ्तारी भी नहीं की है।

जानकारी के मुताबिक दूसरे राज्य की रहने वाली पीड़िता एक दलित महिला है। उसने बताया कि 29 मार्च 2021 को उसने मायलापुर ऑल वूमेन पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके मुताबिक उसके साथ पढ़ने वाले रिसर्च स्कॉलर किंग्शुक देबशर्मा ने उसके साथ रेप किया और किंग्शुक के साथ सात अन्य लोगों ने भी उसका उत्पीड़न किया।

घटना के बाद पीड़िता ने मामले की शिकायत राष्ट्रीय महिला आयोग, एससी/एसटी आयोग सहित अन्य जरूरी पक्षों को भेजी। महिला ने अपनी शिकायत में कहा कि आईआईटी चेन्नई के कैंपस में उसे गंभीर शारीरिक शर्मिंदगी, यौन उत्पीड़न और रेप का शिकार होना पड़ा।

हालांकि बलात्कार का आरोप लगाने के बावजूद पुलिस ने उसकी जो पहली सूचना जून 2021 में दर्ज की। उसमें पुलिस ने धारा 354 (महिला का शील भंग करने के इरादे से आपराधिक बल का हमला), 354B (हमला या आपराधिक बल का उपयोग) और 506 (1) (आपराधिक धमकी के लिए सजा) के इरादे से महिला को प्रताड़ित करने के मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

सुगंती ने कहा, "एफआईआर में रेप यानी धारा 376 को नहीं जोड़ा और न ही इसमें एससी / एसटी अधिनियम को शामिल किया गया है।" वहीं दूसरी ओर पुलिस ने दावा किया है कि उन्हें पीड़िता की जाति नहीं मालूम थी, इस कारण उन्होंने शिकायत में एससी / एसटी अधिनियम को नहीं शामिल किया था। इसके साथ ही जांच अधिकारी ने यह भी दावा किया कि बलात्कार के आरोप को शामिल नहीं करने का निर्णय कानूनी सलाह पर लिया गया था।

एआईडीडब्ल्यूए के चेपॉक-ट्रिप्लिकेन क्षेत्र की अध्यक्ष कविता गजेंद्रन ने इन दावों को खारिज कर दिया और कहा कि छात्रा ने विभिन्न आयोगों को लिखे अपने पत्रों में भी अपनी जाति का उल्लेख किया था। उन्होंने कहा, “जब एक एफआईआर दर्ज करने में तीन महीने लग गए तो हम उस पुलिस ने क्या उम्मीद करें कि वो मामले की गंभीरता से जांच करेगी। पीड़िता ने हमें बताया कि जांच अधिकारी उसके कॉल या मैसेज का जवाब तक नहीं देते हैं। पुलिस ऐसा व्यवहार कर रही है कि पीड़िता स्वयं ही हार मान ले।"

कविता गजेंद्रन ने कहा, "पीड़िता का यह भी कहना है कि जांच अधिकारी ने आरोपियों की बातों पर भरोसा किया और अंततः उन सभी को केस में जमानत मिल गई। पुलिस यह चाहती थी कि वह बिना किसी विवाद या परेशानी के आईआईटी कैंपस को छोड़ दे। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पुलिस को कैसे पता नहीं चला कि वह दलित है? उन्होंने जानबूझकर मेरी शिकायत की गलत व्याख्या की।”

एआईडीडब्ल्यूए ने कहा कि पुलिस के अलावा पीड़िता ने यौन हिंसा की शिकातय के लिए साल 2020 में आईआईटी मद्रास की आंतरिक कमेटी और यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत समिति से संपर्क किया। सुगंती ने कहा, “पीड़िता ने आंतरिक कमेटी में भी अपनी शिकायत दर्ज कराई थी और कमेटी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में कहा था कि चार लोग पीड़िता को परेशान कर रहे हैं। रिपोर्ट के आधार पर आरोपी तीन छात्रों को थीसिस जमा करने तक कैंपस में आने से रोक दिया गया था। हालांकि उसके बाद भी वे कैंपस में डटे रहे। पीड़िता को एकेडमिक तौर पर भी परेशान किया गया और धमकाया गया था। उसे लैब के अंदर नहीं जाने दिया जाता था और न ही प्रैक्टिकल के लिए आवश्यक उपकरण दिए जाते थे।”

8 अक्टूबर 2020 को आतंरिक कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि किंग्शुक देबशर्मा ने पीड़िता को पीटा था, उसे गाली दी थी और दो बार शारीरिक रूप से उसे प्रताड़ित किया था। उसके साथ ही कमेटी की रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि दो अन्य पीएचडी स्कॉलर सुभधीप बनर्जी और मलय कृष्ण महतो और एक पोस्ट-डॉक्टरेट छात्र डॉक्टर ई रवींद्रन ने पीड़िता पर भद्दे कमेंट किये और उसका मौखिक यौन शोषण किया। इसके अलावा तीनों आरोपियों को विभिन्न मौकों पर मुख्य आरोपी किंग्शुक की मदद करने का भी दोषी पाया गया।

जानकारी के मुताबिक पीड़िता की शिकायत पर आंतरिक कमेटी ने साल 2020 में  Google मीट के जरिये नौ बार बैठकें कीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि "समिति के लिए यह स्पष्ट है कि किंग्शुक देबशर्मा ने पीड़िता के यौन दुर्व्यवहार किया है।"

समिति ने शिफारिश की कि जब तक कि पीड़िता अपनी थीसिस जमा नहीं करा देती तब तक मलय कृष्ण महतो, सुभदीप बनर्जी, किंग्शुक देबशर्मा को कैंपस में आने की अनुमति न दी जाए। हालांकि कमेटी की ओर से मामले में पुलिस शिकायत दर्ज करने की कोई सिफारिश नहीं की गई और कमेटी  ने अपनी अंतिम रिपोर्ट भी नहीं दी। कमेटी के आदेश के बाद जब चारों आरोपियों ने कैंपस नहीं छोड़ा तो आरोपी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का फैसला किया।

इस बीच आईआईटी मद्रास की ओर से कहा गया है कि आईआईटी ने यौन उत्पीड़न के मामले को उठाने वाली छात्रा के मामले की जांच के लिए सभी प्रक्रियाओं का पालन किया है। आईआईटी मद्रास की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि पीड़िता की शिकायत में जांच के लिए यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत समिति को आदेश दिया था।

छात्रा के अनुसार उसके साथ साल 2018 और साल 2019 में यौन उत्पीड़न की घटना हुई। जिस मामले में उसने अगस्त 2020 में  आईआईटी मद्रास में शिकायत दर्ज कराई। संस्थान ने तुरंत मामले को जांच के लिए यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत समिति को भेज दिया था। 

Web Title: Police did not take any action even after a year after the rape of a Dalit student of IIT Madras

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