दिव्यांग नाबालिग छात्रा के साथ कथित यौन उत्पीड़न के आरोपी को कोर्ट ने किया बरी, जानिए क्या था मामला
By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: March 6, 2022 14:49 IST2022-03-06T14:44:16+5:302022-03-06T14:49:18+5:30
नाबालिग दिव्यांग के साथ यौन हिंसा के मामले में जज कविता डी शिरभटे ने कहा कि आरोपी के खिलाफ किसी भी पुख्ता सबूत के न होने के कारण उसे बरी किया जा रहा है। मेरा मानना है कि अभियोजन पक्ष सभी संदेहों से परे आरोपी के अपराध को सिद्ध करने में विफल रहा है। इसलिए आरोपी कोर्ट से बरी होने का हकदार है।

सांकेतिक तस्वीर
ठाणे: महाराष्ट्र की एक कोर्ट ने एक 47 साल के स्कूल अधीक्षक को साल 2017 में एक 15 साल की नाबालिग दिव्यांग छात्रा के साथ कथित यौन उत्पीड़न मामले से सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्कूल अधीक्षक को बच्ची के गूंगे-बहरे होने का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
कोर्ट की ओर से आरोपी को बरी किये जाने का आदेश 21 फरवरी को पारित किया गया था, जिसकी प्रति 5 मार्च को आरोपी को उपलब्ध कराई गई। इस मामले में एडिशन सेशन और स्पेशल पॉक्सो मामलों की जज कविता डी शिरभटे ने कहा कि केस में सरकारी पक्ष आरोपी के खिलाफ आरोपों को साबित करने में विफल रहा।
वहीं इस मामले में पैरवी कर रहे सरकारी वकील एसबी मोरे ने कोर्ट में बताया कि आरोपी ने जनवरी 2017 में चौथी कक्षा की छात्रा के साथ यौन हिंसा किया था।
पीड़िता पर हुए इस अत्याचार का खुलासा उस वक्त हुआ जब स्कूल की एक शिक्षिका ने उस दिव्यांग बच्ची के व्यवहार में बदलाव देखा। पूछताछ करने पर पीड़िता ने महिला टीचर से सांकेतिक भाषा में अपराध के बारे में सूचित किया। जिसके बाद आरोपी के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम और धारा 354-B (हमला या अपराधी का उपयोग) के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। इसके अलावा पुलिस ने आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 506 (आपराधिक धमकी) भी लगाई थी।
कोर्ट में आरोपी की ओर से पेश वकील विशाल भानुशाली ने कहा कि उनके मुवक्किल कथित अपराध में शामिल नहीं थे। जज द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि सरकारी वकील ने किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) बाल नियमों के प्रावधानों के अनुसार पीड़िता की उम्र का भी कोई प्रमाण कोर्ट में पेश नहीं किया।
जज कविता डी शिरभटे ने कहा कि पीड़िता कोर्ट में अपनी बात से मुकर गई। उसने सरकारी वकील के आरोपों का समर्थन नहीं किया है। वहीं मामले में पेश हुए एक अन्य गवाह ने भी पीड़िता की चोटों को देखा, लेकिन उसने भी सरकारी वकील के आरोपों का समर्थन नहीं किया है।
कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 354बी और पॉक्सो एक्ट की धारा 8,9(एफ), 10 को प्रमाणिक करने के लिए यह आवश्यक है कि कोर्ट में यह सिद्ध हो कि आरोपी ने यौन इरादे से पीड़िता पर यौन हमला किया।"
जबकि इस मामले में सरकारी वकील कोर्ट में यह साबित नहीं कर पाये कि आरोपी ने पीड़िता पर यौन हमला किया है और न ही कानूनी प्रावधानों के मुताबिक मामले में सभी बयान दर्ज हुए हैं।
जज कविता डी शिरभटे ने कहा, "इसलिए आरोपी के खिलाफ किसी भी पुख्ता सबूत के न होने के कारण उसे बरी किया जा रहा है। मेरा मानना है कि अभियोजन पक्ष सभी संदेहों से परे आरोपी के अपराध को सिद्ध करने में विफल रहा है। इसलिए आरोपी कोर्ट से बरी होने का हकदार है।"