पालवंकर बालू: दलित समाज का सुपरस्टार क्रिकेटर, जिसे इतिहास ने भुलाया

संविधान निर्माता बाबासाहेब अंबेडकर भी पालवंकर बालू से खासे प्रभावित थे। वे पालवंकर बालू को दलित समाज के आदर्श बताया करते थे। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भी अपनी किताब ‘ए कॉर्नर ऑफ़ फॉरेन फील्ड’ में पालवंकर वंकर बालू की जिंदगी पर विस्तार से लिखा है। रामचन्द्र गुहा का मानना है की भारतीय क्रिकेट के पहले महान और सुपरस्टार क्रिकेटर सीके नायडू नहीं, पालवंकर बालू थे।

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 23, 2021 03:39 PM2021-07-23T15:39:05+5:302021-07-23T15:52:15+5:30

Palwankar Baloo: First dalit superstar cricketer | पालवंकर बालू: दलित समाज का सुपरस्टार क्रिकेटर, जिसे इतिहास ने भुलाया

पालवंकर बालू: दलित समाज का सुपरस्टार क्रिकेटर, जिसे इतिहास ने भुलाया

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Highlightsयूरोपियन क्लब में सीखी स्पिन बॉलिंगबालू के प्रदर्शन की बदौलत हारे अंग्रेजबाबासाहेब अंबेडकर भी पालवंकर बालू से थे प्रभावित

कोरोना वायरस महामारी के बीच दुनिया भर में खेलों की फिर से वापसी हो रही है। हाल में फुटबॉल का यूरो कप संपन्न हुआ, खेलों का महाकुंभ कहे जाने वाले टोक्यो 2020 ओलिंपिक भी एक साल बाद आज से शुरू हो रहे हैं। एक बार फिर अखबारों में, विभिन्न समाचार माध्यमों में खेल की खबरें सुर्खियां बटोर रही हैं लेकिन इस बीच पूर्व भारतीय क्रिकेटर सुरेश रैना के एक बयान के बाद खेल में जाति की खबरें भी सुर्खियां बन रही हैं। रैना ने हाल में कहा कि ब्राह्मण होने की वजह से उन्हें आईपीएल में चेन्नई के लिए खेलने में कोई परेशानी नहीं हुई।

क्रिकेट इतिहास पर नजर डाले तो भारत के पहले दलित क्रिकेटर जिन्होंने जातिवाद की बेड़ियों को तोड़कर क्रिकेट के मैदान पर अपना परचम लहराया, वह थे पालवंकर बालू।

यूरोपियन क्लब में सीखी स्पिन बॉलिंग

19वीं सदी में जब देश में जातिवाद और अंग्रेजी हुकूमत का राज दोनों अपने चरम पर था। ऐसे वक्त में कर्नाटक के धारवाड़ में दलित परिवार में बालू का जन्म हुआ। 1892 में वह पुणे चले आए, जहां यूरोपियन क्रिकेट क्लब के लिए प्रैक्टिस नेट लगाने से लेकर पिच साफ करने का काम उन्हें मिला। पूना क्लब में उस वक्त सिर्फ अंग्रेज ही क्रिकेट खेला करते थे। वहां काम के दौरान अंग्रेज खिलाड़ियों ने बालू को बॉलिंग करने के लिए प्रेरित किया। इस क्लब में बैटिंग केवल अंग्रेज कर सकते थे इसलिए बालू को सिर्फ बॉलिंग का मौका मिलता। पूना क्लब में लगातार प्रैक्टिस करते हुए बालू ने स्पिन बॉलिंग में महारत हासिल कर ली।

जब हिंदूओं की टीम से खेले पालवंकर बालू

ब्रिटिश राज में धर्म के आधार पर क्लब हुआ करते थे जैसे हिन्दू जिमखाना, मुस्लिम जिमखाना, पारसी जिमखाना इत्यादि। उस वक्त हिंदुओ ने भी पूना में अपना एक नया क्लब खोला, अब उन्हें अंग्रेजों को हराने के लिए बालू की जरूरत थी। लेकिन दलित होने के कारण टीम में बालू को खिलाने को लेकर हिंदुओ के सामने समस्या खड़ी हो गई। आखिरकार बालू के खेल को देखते हुए उन्हें क्लब की टीम में शामिल किया गया। जिसके बाद क्लब ने बालू की शानदार बॉलिंग और निचले क्रम में बल्लेबाजी की बदौलत कई मैच जीते। इन सब के दौरान बालू के साथ जातिगत भेदभाव होता रहा उन्हे खाने पीने की चीजे बाकी खिलाड़ियों से अलग कर दी जाती।

बालू के प्रदर्शन की बदौलत हारे अंग्रेज

1896 में पुणे में प्लेग बीमारी फेल गई, ऐसे वक्त में मुंबई में क्रिकेट फल फूल रहा था, बालू काम की तलाश में मुंबई आ गए। उन्हें नए बने हिंदू जिमखाना टीम में शामिल कर लिया गया। 1906 में बालू के शानदार प्रदर्शन की वजह से हिंदू जिमखाना ने पहली बार अंग्रेज टीम को हराने में सफलता पाई। आजादी के आंदोलन के इस दौर में अंग्रेज क्रिकेट टीम की हार ने भारतीयों में जोश भरने का काम किया।

इंग्लैंड में मनवाया प्रदर्शन का लोहा

1911 में भारत के कई क्लबों को मिला कर एक टीम बनी, जो खेलने इंग्लैंड गयी, बालू इस टीम का हिस्सा थे। इस दौरे में पर इस टीम को भले ही हार का सामना करना पड़ा लेकिन पालवंकर बालू अपने प्रदर्शन की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। यह टीम 10 मैच हारी और मात्र दो जीती। लेकिन पालवंकर ने निजी तौर पर शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने 114 विकेट (कहीं यह आंकड़ा 87 भी है) लिए और 376 रन भी बनाये। उनके प्रदर्शन को पूरे भारत में सराहा गया. कई इंग्लिश काउंटी टीमों ने बालू को इंग्लैंड में खेलने के लिए ऑफर किया लेकिन बालू भारत में खेलने के लिए प्रतिबद्ध थे।

'भारतीय क्रिकेट के पहले महान और सुपरस्टार क्रिकेटर थे पालवंकर बालू'

संविधान निर्माता बाबासाहेब अंबेडकर भी पालवंकर बालू से खासे प्रभावित थे। वे पालवंकर बालू को दलित समाज के आदर्श बताया करते थे। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भी अपनी किताब ‘ए कॉर्नर ऑफ़ फॉरेन फील्ड’ में पालवंकर बालू की जिंदगी पर विस्तार से लिखा है। रामचन्द्र गुहा का मानना है की भारतीय क्रिकेट के पहले महान और सुपरस्टार क्रिकेटर सीके नायडू नहीं, पालवंकर बालू थे। लेकिन क्रिकेट इतिहासकारों ने उनकी अनदेखी की। पालवंकर ने प्रथम श्रेणी के 33 मैचों में 15 की औसत से 179 विकेट लिए. इसमें 17 बार पांच विकेट थे। 

अपनी प्रतिभा और प्रदर्शन के बावजूद पालवंकर बालू कभी भारतीय टीम के कप्तान नहीं बन पाए क्योंकि वो दलित समाज से आते थे।

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