Highlightsभारतीय क्रिकेट के इतिहास में कई मौकों पर हुए हैं ऐसे कमालइंडिपेंडेंस कप के फाइनल में कानितकर के चौके से जीता था भारतरॉबिन सिंह और अजय जडेजा भी रहे हैं भारत के कमाल के फिनिशर
निदाहास ट्रॉफी के फाइनल में बांग्लादेश के खिलाफ दिनेश कार्तिक के आखिरी ओवर में लगाए विजयी छक्के की चर्चा हर कोई कर रहा है। कार्तिक जब बल्लेबाजी करने आए तब टीम इंडिया के लिए जीत बेहद मुश्किल लग रही थी लेकिन केवल 8 गेंदों पर उनके बल्ले से निकले ताबड़तोड़ 29 रनों से सभी को चौंका दिया।
इस पारी ने न केवल टीम को जीत दिलाई बल्कि उन तमाम लम्हों की भी याद दिला दी जब भारत ने ऐसे ही दबाव भरे पलों में मैच जीता और फैंस को क्रिकेट के असली रोमांच का अहसास कराया। आईए, नजर डालते हैं कुछ ऐसे ही बेहतरीन मैचों पर जिसमें भारतीय टीम ने हारती हुई बाजी भी अपने नाम कर ली....
Ind Vs Pak, इंडिपेंडेंस कप का फाइनल (18, जून 1998)
ऋषिकेश कानितकर के चौके से मिली जीत: ढाका में खेले गए इंडिपेंडेंस कप का तीसरा और आखिरी फाइनल न केवल भारत-पाकिस्तान बल्कि क्रिकेट के इतिहास में खेले गए सबसे रोमांचक मैचों में से एक है। आखिरी दो गेंदों पर भारत को जीत के लिए 3 रनों की जरूरत थी और ऋषिकेश कानितकर ने पांचवीं गेंद पर चौका लगाकर भारत को जीत दिला दी। (और पढ़ें- खुद से पहले विजय शंकर को बैटिंग के लिए उतरता देख धक्का लगा था: दिनेश कार्तिक)
टॉस हारने के बाद पहले बल्लेबाजी करते हुए पाकिस्तान ने 5 विकेट खोकर 314 रन बनाए। पाकिस्तान के सईद अनवर (140 रन) और एजाज अहमद (117) ने शतकीय पारी खेली। ये क्रिकेट का वह दौर था जब 300 से ज्यादा का स्कोर जीत के लिए लगभग पक्का माना जाता था।
भारत की ओर से सचिन तेंदुलकर (41) और सौरव गांगुली (124) ओपनिंग के लिए उतरे। पहले विकेट के लिए दोनों ने 71 रन जोड़े। तेंदुलकर के आउट होने के बाद रोबिन सिंह (82) ने गांगुली के साथ 179 रनों की साझेदारी कर भारत की जीत की उम्मीद बढ़ा दी। हालांकि इसके बाद गिरते विकेटों से मुश्किलें बढ़ गई थी। बहरहाल, भारत ने यह मैच तीन विकेट से जीता।
जब धोनी ने आखिरी ओवर में ठोके 15 रन (11 जुलाई, 2013)
वेस्टइंडीज में खेली गई इस ट्राई सीरीज के फाइनल में श्रीलंका की टीम पहले बैटिंग करते हुए 48.5 ओवर में 201 रन बनाकर ऑलआउट हो गई। रविंद्र जडेजा ने 4 विकेट झटके और ऐसा लग रहा था कि टीम इंडिया आसानी से मैच जीत लेगी। हालांकि, इसके ठीक उलट टीम इंडिया ने केवल 46.2 ओवर तक 182 रनों पर 9 विकेट गंवा दिए थे। क्रीज में अब केवल महेंद्र सिंह धोनी और इशांत शर्मा बाकी थे। मुश्किलें और बढ़ी जब 48वें ओवर में केवल दो रन आए। इसके बाद 49वें ओवर में भी भारत के खाते में केवल दो रन और जुड़ सका। (और पढ़ें- IPL 2018: कार्यक्रम में बदलाव को मंजूरी, पुणे को मिली एलिमिनेटर, क्वॉलिफायर 2 की मेजबानी)
आखिरी ओवर में 15 रनों की चुनौती थी और सामने स्ट्राइक पर धोनी थे। आखिरी ओवर शामिंदा एरांगा डालने आए जिन्होंने अब तक 9 ओवर में केवल 35 रन देकर 2 विकेट चटका चुके थे। मैच मुश्किल था और धोनी पर सभी की निगाहें टिकी थी। पहले गेंद पर कोई रन नहीं बना। इसके बाद धोनी ने दूसरे गेंद पर छक्का, तीसरे गेंद पर चौका और फिर चौथी गेंद पर एक्सट्रा कवल के ऊपर से एक और छक्का लगाकर पल भर में पासा पलट दिया।
श्रीनाथ और कुंबले की जोड़ी ने जिताया ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ यादगार मैच (21 अक्टूबर, 1996)
ये वह दौर था जब भारत के पुछल्ले बल्लेबाजों से बैटिंग के मामले में उम्मीदें बहुत कम होती थी। लेकिन बेंगलुरु में खेले गए टाइटन कप के तीसरे वनडे में श्रीनाथ और कुंबले ने इसे गलत साबित किया। कुंबले जरूर बतौर बल्लेबाज भी कई बार जौहर दिखा चुके हैं लेकिन इस मैच में श्रीनाथ ने जो किया वह लाजवाब था। दोनों ने 9वें विकेट के लिए 52 रनों की नाबाद साझेदारी की और ऑस्ट्रेलिया के जबड़े से जीत छीन ली।
ऑस्ट्रेलिया ने इस मैच में पहले बैटिंग करते हुए मार्क टेलर (105) की पारी की बदौलत 215 रन बनाए थे। भारत लगातार गिरते विकेटों से मुश्किल में था और तेंदुलकर (88) के 164 रनों के योग पर 8वें विकेट के रूप में पविलियन लौटते ही जीत लगभग असंभव लगने लगी थी। हालांकि, श्रीनाथ ने 23 गेंदों पर एक छक्के और दो चौकों की बदौलत 30 रनों की पारी खेली और अनिल कुंबले (16 नाबाद) के साथ अर्धशतकीय साझेदारी कर भारत को जीत दिला दी। (और पढ़ें- धोनी से तुलना पर बोले कार्तिक, कहा- वो जिस यूनिवर्सिटी के टॉपर हैं, मैं अभी वहां कर रहा पढ़ाई)
रॉबिन सिंह ने आखिरी ओवर में जिताया मैच (9 मार्च, 2000)
कोच्चि में खेले गए इस वनडे में दक्षिण अफ्रीका ने पहले बल्लेबाजी करते हुए तीन विकेट खोकर 301 रन बनाए गैरी कर्स्टन ने इस मैच में 115 और हर्षल गिब्स ने 111 रनों की बेहतरीन पारी खेली। इसके जवाब में भारत का टॉप ऑर्डर पूरी तरह से फेल रहा। इसके बाद रविंद्र जडेजा (92) और रॉबिन सिंह (42 नाबाद) के बीच छठे विकेट के लिए हुई 92 रनों की साझेदारी ने पूरी तस्वीर बदल दी। जडेजा हालांकि 45वें ओवर में और फिर विकेटकीपर-बल्लेबाज समीर दीघे 48वें ओवर में पविलियन लौट गए। भारत को अब भी 15 रनों की जरूरत थी लेकिन रॉबिन ने कुंबले के साथ खेलते हुए भारत को दो गेंद शेष रहते तीन विकेट से जीत दिला दी।
आईसीसी टी20 वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के खिलाफ भारत की जीत (24 सितंबर, 2007)
आईसीसी टी20 वर्ल्ड कप के इतिहास का सबसे रोमांचक फाइनल 2007 में दिखा। भारत और पाकिस्तान की टीमें आमने-सामने थीं। यह वो मैच था जिसने महेंद्र सिंह धोनी को भारत के सबसे सफल कप्तानों में शुमार होने का मौका दिया और उनकी फील्ड पर सोच को लेकर तमाम कहानियां गढ़ी जाने लगी। भारतीय टीम ने इस मैच में पहले बैटिंग करते हुए पांच विकेट खोकर 157 रन बनाए। गंभीर के 75 रन और रोहित शर्मा के नाबाद 30 रनों के अलावा भारतीय बल्लेबाजी में कुछ भी खास नहीं हुआ। धोनी भी महज 6 रन बनाकर आउट हो गए। पाकिस्तान ने लक्ष्य का पीछा शुरू किया और 19 ओवर तक उसने 9 विकेट खोकर 141 रन बना लिए थे।
आखिरी ओवर में पाकिस्तान को 13 रन बनाने थे और क्रीज पर मिस्बाह उल हक जैसा दिग्गद मौजूद था। भारत के सभी तेज गेंदबाज अपना कोट पूरा कर चुके थे और सबसे अनुभवी गेंदबाज के हिसाब से धोनी के पास आखिरी ओवर में गेंदबाजी के लिए हरभजन सिंह का विकल्प था। इसके अलावा यूसुफ पठान या फिर युवराज या कोई और गेंद कर सकता थ। लेकिन धोनी ने जोगिंदर शर्मा को बुलाया। जोगिंदर की पहली गेंद वाइड रही और फिर अगली गेंद पर कोई रन नहीं बना। दूसरी गेंद पर मिस्बाह ने छक्का लगाकर भारतीय फैंस की सांसेंं रोक दी। अब समीकरण 3 गेंदों पर 6 रनों का था। लेकिन अगली ही गेंद पर मिस्बाह शॉर्ट फाइन-लेग के ऊपर से एक स्कूप शॉट खेलने की कोशिश में एस श्रीसंत को कैच दे बैठ। मिस्बाह का वो शॉट और श्रीसंत का वो कैच आज भी भारतीय फैंस के जेहन में है। भारत ने यह मैच पांच रनों से जीता। (और पढ़ें- निदाहास ट्रॉफी फाइनल पर विजय शंकर का बयान, 'उन पांच गेंदों को मिस करने से अब भी निराश हूं')