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वरुण गांधी का नजरियाः रुपये में स्थिरता लाना जरूरी

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: October 8, 2018 22:19 IST

ऐसी कोई जादू की छड़ी नहीं है जो रुपए के दाम अचानक बढ़ा दे। लेकिन रुपए की बहुपक्षीय प्रकृति को बहाल करने के लिए हमें निश्चित रूप से इसमें स्थिरता लानी होगी। 

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वरुण गांधी

भारतीय रुपया कभी बहुपक्षीय मुद्रा हुआ करता था और इसका उपयोग हिंद महासागर के पार जावा, बोर्नियो, मकाऊ, मस्कट, बसरा तथा जंजीबार जैसे स्थानों तक प्रचलित था। ऐतिहासिक व्यापार की वजह से खाड़ी के देश पांच शताब्दियों से भी अधिक समय से रुपए से परिचित थे और ओमान ने तो 1970 तक ‘गल्फ रुपी’ का उपयोग किया था। 

1911 में जॉर्ज पंचम ने गद्दी पर बैठते ही ब्रिटिश राज के अपने शासन को मजबूत करने के लिए एक रुपए का नया सिक्का जारी किया। औपनिवेशिक रुपए ने मुगल रुपए की लोकप्रियता का लाभ उठाया और इससे व्यापारिक समुदाय, प्रवासियों तथा राजा को अपने शासन में सुगमता हासिल हुई। सिंध, सीलोन तथा बर्मा पर कब्जे से अंग्रेजों को इन इलाकों में रुपए की प्राथमिकता को प्रोत्साहित करने में और सहायता मिली। इस बीच कई भारतीय व्यापारियों ने इन क्षेत्रों में खुद को स्थापित कर लिया, जिससे रुपए के विनिमय में मदद मिली।

यहां तक कि आजादी के बाद भी दुबई और खाड़ी के अन्य देश रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए गल्फ रुपीज का उपयोग 1966 तक करते रहे थे। 1965 की लड़ाई के बाद भारतीय रुपए के अवमूल्यन के चलते ही इन देशों ने अपनी मुद्राएं छापना शुरू किया। अब केवल नेपाल और भूटान ही नियमित रूप से रुपए में भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार करते हैं।

रुपए का मूल्यांकन अक्सर चिंता का विषय रहा है। रुपए के मूल्य में भी बीतते वर्षो के साथ गिरावट आती गई है। 1947 में एक डॉलर का मूल्य 3.30 रु। के करीब था। 1966 में यह अवमूल्यन बढ़कर 7.50 रु। पर पहुंच गया और 1995 में 32.4 रु। हो गया। इस गिरावट के लिए विभिन्न कारक जिम्मेदार थे, जैसे पाकिस्तान और चीन के साथ लड़ाई, पंचवर्षीय योजनाओं को अपनाने के लिए विदेशी कर्ज की जरूरत, राजनीतिक अस्थिरता।  बाद के वर्षो में तेल के मूल्य में वृद्धि और शेयरों के मूल्य में उतार-चढ़ाव से  रुपए के मूल्य में निरंतर गिरावट आती गई। इन दिनों अमेरिका और रूस के बीच चल रहे व्यापार युद्ध और ईरान पर प्रतिबंध के चलते तेल के मूल्य में होने वाली वृद्धि से रुपए की कठिन परीक्षा हो रही है।

ऐसी कोई जादू की छड़ी नहीं है जो रुपए के दाम अचानक बढ़ा दे। लेकिन रुपए की बहुपक्षीय प्रकृति को बहाल करने के लिए हमें निश्चित रूप से इसमें स्थिरता लानी होगी। 

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