धारा 24ए के तहत अपराधों के शमन के लिए सेबी की सहमति जरूरी नहीं: उच्चतम न्यायालय

By भाषा | Updated: July 23, 2021 21:34 IST2021-07-23T21:34:12+5:302021-07-23T21:34:12+5:30

Sebi's concurrence not necessary for compounding of offenses under section 24A: Supreme Court | धारा 24ए के तहत अपराधों के शमन के लिए सेबी की सहमति जरूरी नहीं: उच्चतम न्यायालय

धारा 24ए के तहत अपराधों के शमन के लिए सेबी की सहमति जरूरी नहीं: उच्चतम न्यायालय

नयी दिल्ली, 23 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को माना कि सेबी की धारा 24ए के तहत अपराधों के शमन के लिए बाजार नियामक की सहमति अनिवार्य नहीं है, हालांकि प्रतिभूति बाजार की स्थिरता के साथ-साथ निवेशकों के हितों की रक्षा के लिये एक विशेषज्ञ निकाय होने के नाते इसकी राय लेनी जरूरी है।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि हालांकि सेबी के पास विचाराधीन अपराधों की सुनवाई के बारे में वीटो करने का कोई अधिकार नहीं है, लेकिन यह एक नियामक और अभियोजन एजेंसी है और प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (सैट) और अदालतों को इसके विचार लेने चाहिए, क्योंकि यह एक विशेषज्ञ निकाय है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रतिभूति बाजार की स्थिरता और निवेशकों की सुरक्षा के हित में सेबी के विचार जानना जरूरी है।

पीठ ने कहा, ‘‘धारा 24ए, के तहत किसी अर्जी पर कोई भी निर्णय लेने से पहले अपीलीय या ऐसी अदालतों को सेबी के विचार जान लेना जरूरी है ताकि प्रतिभूति बाजार में स्थिरता बनी रहे और निवेशकों का हित संरक्षित रहे।।’’

पीठ ने कहा कि सेबी अधिनियम और नियमावली और उसके तहत जारी किए जाने वाले परिपत्रों में निरंतर सुधार होता रहता है और उसका उद्देश्य बराबर यही होता है कि प्रतिभूति बाजार में व्यवस्था बनी रहे, उसका स्वस्थ तरीके से विकास हो और निवेशकों की सम्पत्ति की हिफाजत रहे।

न्यायालय ने कहा कि सेबी के पास विस्तृत विनियामकीय एवं निर्णायक अधिकार है। इसके साथ साथ उसके पास विशेषज्ञता और सूचना संग्रह का तंत्र है। उसके निर्णयों पर विश्वास की एक मुहर होती है।’

पीठ ने आगे कहा, ‘‘ न्यायाधिकरण और अदालत के अधिकारों का उन उद्देश्यों के साथ ताल-मेल आवश्यक है जिनको लेकर सेबी बनाया गया है।’’ ऐसे में धारा 24ए के प्रावधानों को इस तरह से देखा जाना चाहिए जो एक विशेषज्ञ विनियामक के रूप में सेबी के उद्येश्यों और प्रयोजन के साथ मेल खाते हों।’’

न्यायालय के अनुसार सेबी अधिनियम की धारा 24ए के प्रावधानों को एक विशेषज्ञ नियामक के रूप में सेबी की स्थिति में निहित उद्देश्य और मकसद के अनुरूप पढ़ा जाना चाहिए।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 में धारा 24ए में कहा गया है कि आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में कुछ भी शामिल होने के बावजूद, इस अधिनियम के तहत दंडनीय कोई भी ऐसा अपराध जिसमें जुर्माना के बिना या जुमाना के साथ कारावास की सजा का प्रावधान न हो... सुनवायी करने वाला प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण या अदालत उसाक शमन कर सकता है।’

शीर्ष अदालत का फैसला दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ दायर एक अपील पर आया जिसमें सेबी अधिनियम की धारा 24ए के तहत आपासी समझौते के जरिये अपराध के मामले को समाप्त करने के लिए प्रकाश गुप्ता के आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में आरोपों में गंभीर कृत्य शामिल हैं जो निवेशकों की सुरक्षा और प्रतिभूति बाजार की स्थिरता को प्रभावित करते हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘कीमतों में गड़बड़ी और शेयरों की कीमतों में हेराफेरी के इस तरह के कथित कार्यों का निवेशकों के धन और प्रतिभूति बाजार के व्यवस्थित कामकाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इसलिए, अपराधों के शमन के अनुरोध का सेबी का विरोध करना उचित था।’’

इससे पहले, सुनवाई अदालत ने याचिकाकर्ता के आवेदन को 24-ए के आधार पर खारिज कर दिया था।

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Web Title: Sebi's concurrence not necessary for compounding of offenses under section 24A: Supreme Court

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