नरेन्द्र मोदी सरकार भी अभी सस्ता नहीं कर सकती पेट्रोल-डीजल, ये है वजह
By पल्लवी कुमारी | Updated: September 11, 2018 15:45 IST2018-09-11T12:49:06+5:302018-09-11T15:45:19+5:30
पेट्रोल और डीजल पर टैक्स केंद्र और राज्य सरकार दोनों के लिए एक राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है और इसमें कटौती से सीधा असर केन्द्र और राज्य की वित्तीय स्थिति को पड़ता है।

नरेन्द्र मोदी सरकार भी अभी सस्ता नहीं कर सकती पेट्रोल-डीजल, ये है वजह
नई दिल्ली, 11 सितंबर: भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें हमेशा से ही चर्चा का विषय रही है। भारत में महंगाई मापने के पैमानों में पेट्रोल की कीमतों को भी एक आधार के रूप में देखा जाता है। पेट्रोल आम जन से जुड़ी हुई एक ऐसी वस्तु है, जिसकी कीमत में होने वाले उतार-चढ़ाव से सीधे आम आदमी के बजट पर असर पड़ता है। फिलहाल नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए बढ़ती पेट्रोल-डीजल की कीमतें मुसीबत बनी हुई है। इस वक्त पेट्रोल-डीजल की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं। हिन्दुस्तान पेट्रोलियम के मुताबिक मंगलवार (11 सितंबर) को दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 80.96 रुपये प्रति लीटर और मुंबई में 88.35 रुपये प्रति लीटर है।
मोदी सरकार ने इस बात से किया साफ इंकार
देश में सोमवार (10 सितंबर) को पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर कांग्रेस सहित 20 से ज्यादा विपक्षी दलों ने भारत बंद किया था। बीजेपी ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों के बढ़ने की रफ्तार को कम करने के आंकड़े ट्वीट कर भी बताए लेकिन वह इसके लिए खुद ही ट्रोल हो गए। बीजेपी ने भारत बंद को भी असफल करार कर दिया है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने ऑटो ईंधन की खुदरा कीमतों को कम करने के लिए उत्पाद शुल्क में तत्काल कमी से साफ इंकार कर दिया है। इसके साथ ही इस पर राज्य सरकार से कटौती में कार्रवाई करने के लिए कहा है। राजस्थान की रविवार को 4 प्रतिशत की कटौती की घोषणा के बाद आंध्र प्रदेश ने भी पेट्रोल और डीजल पर वैट में 2 रुपये प्रति लीटर कटौती की घोषणा की है।
क्यों नहीं हो रही है पेट्रोल-डीजल की कीमतों कटौती
पेट्रोल और डीजल पर टैक्स केंद्र और राज्य सरकार दोनों के लिए एक राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है और इसमें कटौती से सीधा असर केन्द्र और राज्य की वित्तीय स्थिति को प्रभावित करेगी। आकड़ों के मुताबिक केन्द्र सरकार ने 2017-18 में पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क 2.2 9 लाख करोड़ रुपये था। वहीं, 2016-17 में 2.42 लाख करोड़ रुपए था। पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क वर्तमान में 19.48 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 15.33 रुपये प्रति लीटर है। वैश्विक तेल की कीमतों में गिरावट के चलते केंद्र ने नवंबर 2014 और जनवरी 2016 के बीच नौ गुना उत्पाद शुल्क बढ़ाया। पिछले साल 2017 अक्टूबर में यह प्रति लीटर उत्पाद शुल्क में 2 रुपये प्रति लीटर था।
तेल उद्योग विकास क्रूड पेट्रोलियम( कच्चा तेल) पर 20 प्रतिशत टैक्स लेता है। वहीं, राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक शुल्क (एनसीसीडी) 50 प्रतिशत मीट्रिक टन टैक्स लेता है। बता दें कि क्रूड पेट्रोलियम( कच्चा तेल) पर कोई कस्टम ड्यूटी नहीं हैं लेकिन पेट्रोल और डीजल पर 2.5 प्रतिशत की कस्टम ड्यूटी लगती है। पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ने से केंद्र की कोई अतिरिक्त कमाई नहीं हो रही है। दरअसल केंद्र सरकार पेट्रोलियम उत्पादों पर ढाई प्रतिशत की दर से बेसिक कस्टम ड्यूटी लगाती है। सिर्फ यही एक ड्यूटी है जो प्रतिशत के रूप में लगता है। इसके अलावा जो टैक्स लगाए जाते हैं, जैसे केंद्रीय उत्पाद शुल्क, विशेष उत्पाद शुल्क सहित जो भी केंद्रीय सरकार कर लगाते हैं, वे प्रति लीटर के हिसाब से लगते हैं इसलिए यदि पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ भी जाए तो भी केंद्र के खजाने में उतनी ही राशि आएगी जितनी पहले आ रही थी।
मतलब साफ है कि फिलहाल अगर पेट्रोलियम के टैक्स में कटौती की गई तो विकास पर सीधा उल्टा असर पड़ेगा क्योंकि लोगों को पेट्रोल-डीजल पर राहत देने के लिए सरकार को विकास कार्यो पर खर्च में कटौती करनी पड़ेगी। आकड़ों के मुताबिक अगर सरकार ने एक रुपए भी खर्च किए तो सरकार के खजाने पर लगभग 30 हजार करोड़ सालाना असर पड़ेगा।
इसलिए मोदी सरकार ने राज्य सरकार से की है अपील
नरेन्द्र मोदी सरकार ने ऑटो ईंधन की खुदरा कीमतों को कम करने के लिए उत्पाद शुल्क में तत्काल कमी से साफ इंकार कर दिया है। इसके साथ ही इस पर राज्य सरकार से कटौती में कार्रवाई करने के लिए कहा है। वो इसलिए क्योंकि राज्य सरकारें पेट्रोल और डीजल पर जो वैट लगाती हैं, वो कीमतों की प्रतिशत के रूप में एड वलोरम के सिद्धांत पर लगाया जाता है। यानी जैसे-जैसे पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत में बढ़ोतरी होती है, राज्यों की कमाई भी बढ़ती जाती है, इसलिए वह चाहे तो राज्य सरकार कटौती कर सकती है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने मीडिया से बातचीत में बताया कि पेट्रोलियम पदार्थों पर औसतन टैक्स 27 फीसदी है। तो ऐसे में राज्य तीन से चार प्रतिशत की कटौती कर सकते हैं। इससे उनकी वित्तीय हालत पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।