नयी दिल्ली, 19 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि परिसमापन प्रक्रिया में भेजी गयी कंपनी का कोई भी ऋणदाता इकाई को कंपनी को परिसमाप्त करने से जुड़ी याचिका में चूककर्ता फर्म के खिलाफ पक्षकार बन सकता है तथा उच्च न्यायालय से अर्जी राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में स्थानांतरित करने का आग्रह कर सकता है।
दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत एनसीएलटी का गठन हुआ है।
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायाधीश ए एस बोपन्ना और न्यायाधीश वी रामासुब्रमणियम की पीठ के समक्ष दो कानूनी सवाल थे। एक यह कि किन परिस्थितियों में उच्च न्यायालय में लंबित परिसमापन कार्यवाही एनसीएलटी में स्थानांतरित की जा सकती है दूसरा यह कि किस उदाहरण के आधार पर इस प्रकार के स्थानांतरण का आदेश दिया जा सकता है।
न्यायाधीश रामासुब्रमणियम द्वारा लिखे गये फैसले में यह कहा गया है कि कंपनी को समेटने से जुड़ी कार्यवाही एक निरंतर कानूनी प्रक्रिया है और कंपनी कानून के तहत फर्म का कोई भी कर्जदाता कार्यवाही में पक्षकार बन सकता है। वह आईबीसी, 2016 के तहत निपटान के लिये आये मामले को उच्च न्यायालय से एनसीएलटी में भेजे जाने की अपील कर सकता है।
फैसले में कहा गया है, ‘‘अत: किसी कंपनी के परिसमापन की कार्यवाही में वास्तव में कर्जदाओं का पूरा समूह पक्षकार है। हो सकता है कार्यवाही किसी एक कर्जदाता ने शुरू की हो, लेकिन सही मायने में याचिका को संयुक्त अर्जी माना जाता है। आधिकारिक परिसमापक कर्जदाताओं के समूह की तरफ से काम करता है...।’’
पूर्व के फैसलों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि अगर विभिन्न मंचों पर समानान्तर कार्यवाही की अनुमति दी जाती है, आईबीसी का मकसद बेकार हो जाएगा।
पीठ ने अपने 26 पृष्ठ के फैसले मे कंपनी कानून, आईबीसी के संबंधित प्रावधानों तथा नियमों का विस्तार से विश्लेषण किया और कहा कि कर्जदाता अगर मुकदमे के शुरूआती चरण में परिसमापन कार्यवाही में पक्षकार नहीं हैं, वे बाद में पक्षकार बन सकते हैं। चूककर्ता कंपनी के सभी कर्जदाताओं को कानून में समान माना जाएगा।
न्यायालय का यह फैसला कंपनी मेसर्स कालेदोनिया जूट एंड फाइबर्स प्राइवेट लि. की याचिका पर आया है। कंपनी ने इलाहबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ अपील की थी जिसमें मेसर्स एक्सिस निर्माण एंड इंडस्ट्रीज लि. के खिलाफ लंबित परिसमापन याचिका एनसीएलटी में स्थानांरित करने से इनकार कर दिया गया था। उच्च न्यायालय का कहना था कि प्रक्रिया को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता को लंबित परिसमापन कार्यवाही को एनसीएलटी में स्थानांतरित करने के लिये आग्रह करने का हक है।
शीर्ष अदालत ने अपील को स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया और परिसमापन कार्यवाही को एनसीएलटी में स्थानांतरित करने का आदेश दिया।
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