Ladakh protest: विंटर टूरिज्म की आशा धूमिल, लद्दाख हिंसा ने पानी फेरा, पर्यटकों की कमी
By सुरेश एस डुग्गर | Updated: September 26, 2025 14:11 IST2025-09-26T14:10:38+5:302025-09-26T14:11:33+5:30
Ladakh protest Highlights: लद्दाख में विंटर टूरिज्म आयोजित करने वालों को आशंका है कि इस बार पर्यटकों की कमी का सामना करना पड़ सकता है।

file photo
Ladakh protest Highlights: स्टेटहुड की मांग पर बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख में हुई हिंसा, जिसमें 4 लोगों की मौत के उपरांत कर्फ्यू लागू कर देना पड़ा, ने अगर लद्दाख में इस आंदोलन को एक नया मोड़ दे दिया वहीं इसने विंटर टूरिज्म पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। नतीजतन लद्दाख में विंटर टूरिज्म आयोजित करने वालों को आशंका है कि इस बार लद्दाख में पर्यटकों की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
ऐसा पहली बार है कि लद्दाख में इस प्रकार की हिंसा हुई हो। अभी तक लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिलवाने के लिए लद्दाखियों ने जो आंदोलन 30 सालों तक चलाया था उस दौरान भी ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला था। यही नहीं इस तीस साल के आंदोलन के दौरान लद्दाख में टूरिस्टों का आना कभी थमा नहीं था।
पर अब सबके माथे पर चिंता की लकीरें हैं। विंटर टूरिज्म के आयोजक परेशान हैं। दरअसल परेशानी का कारण यह है कि उन्हें आशंका है कि यह आंदोलन तेजी पकड़ सकता है क्योंकि केंद्र सरकार इस आंदोलन के दौरान हुई हिंसा का ठीकरा पर्यावरणविद सोनम वांगचुक के माथे फोड़ कर उनके खिलाफ पीएसए जैसा कानून लागू करने के प्रति गंभीरता से विचार कर रही है।
जानकारी के लिए लद्दाख के विंटर टूरिज्म का सबसे प्रमुख आकर्षण चद्दर ट्रेक के अतिरिक्त कई और अन्य गतिविधियां भी होती हैं। इसके लिए बुंकिगें अभी से होनी आरंभ हो चुकी हैं। पर कल की हिंसा के बाद टूर आप्रेटरों के पास स्थिति के प्रति जानकारी लेने फोन आने शुरू हो चुके हैं। अगर सूत्रों पर विश्वास करें तो 10 परसेंट बुकिंग रद्द भी हो चुकी है।
लद्दाख में फैली हिंसा केंद्र सरकार के लिए भी चिंता का विषय है पर लद्दाखियों का कहना था कि यह एक षड्यंत्र था जिसके पीछे का मकसद उनके आंदोलन को बदनाम करना था। जिस प्रकार के आरोप राजनीतिक दलों के विरूद्ध लगाए जा रहे हैं वे सच्चाई से परे हैं।
बल्कि सच्चाई यह है कि पिछले 6 सालों से, 5 अगस्त 2019 से, लद्दाख के युवा अपने आपको असहाय महसूस कर रहे हैं। उन्हें अब यह अहसास हुआ है कि उनकी जिस पीढ़ी ने 30 सालों तक यूटी पाने का आंदोलन छेड़ा था वह गलत था। और अगर कल की घटनाओं को जनआंदोलन कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।