कश्मीर की एक ही पुकार, फिर से मेरे घर आओ पर्यटक?, पार्क और उद्यानों को फिर से खोल दो
By सुरेश एस डुग्गर | Updated: June 5, 2025 15:00 IST2025-06-05T14:59:14+5:302025-06-05T15:00:16+5:30
दक्षिण कश्मीर का यह खूबसूरत शहर पहलगाम अभी भी इसके असर से जूझ रहा है। इस आतंकी हमले ने पर्यटन उद्योग से जुड़े सैकड़ों लोगों को बेरोजगार कर दिया है।

सांकेतिक फोटो
जम्मूः इस साल 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के 43 दिन बाद भी, जिसमें 26 नागरिक मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे, कश्मीरी पर्यटकों की भीख मांग रहे हैं। हर दुआ में वे रब से चाहते हैं कि पर्यटकों की बरसात हो। साथ ही वे यह भी पुकार रहे हैं कि पार्क और उद्यानों को फिर से खोल दिया जाए। हालत यह है कि पहलगाम नरसंहार के उपरांत दक्षिण कश्मीर का यह खूबसूरत शहर पहलगाम अभी भी इसके असर से जूझ रहा है। इस आतंकी हमले ने पर्यटन उद्योग से जुड़े सैकड़ों लोगों को बेरोजगार कर दिया है।
पहलगाम के एक स्थानीय व्यक्ति का कहना था कि यहां एक भी व्यक्ति ने हफ़्तों से एक पैसा नहीं कमाया है। कुछ लोगों ने तो एक महीने से 10 रुपये भी नहीं कमाए हैं। घुड़सवारों, होटल व्यवसायियों, ड्राइवरों और दुकानदारों सहित हितधारकों ने प्रशासन से इलाके में पार्क और उद्यानों को फिर से खोलने का आग्रह किया है, क्योंकि लंबे समय से बंद रहने की वजह से सबसे ज़्यादा ग़रीब लोग प्रभावित हो रहे हैं।
यह पूरी तरह से सच है कि पहलगाम शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले के बाद एक समय में चहल-पहल से भरा यह पर्यटन स्थल खामोश हो गया है। हितधारकों का कहना था कि आतंकी हमले के कारण पर्यटकों ने अपनी यात्रा की योजनाएं रद्द कर दी हैं और इसके बाद बेताब घाटी, अरु घाटी और चंदनवारी जैसे प्रमुख पर्यटक आकर्षण बंद हो गए हैं।
वे कहते थे कि अनिश्चितता और बढ़ी हुई सुरक्षा के कारण इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण पर्यटन अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। कई हितधारकों ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से हस्तक्षेप करने की अपील की। पहलगाम के एक स्थानीय दुकानदार का कहना था कि सब कुछ बंद है। पूरा पहलगाम बंद है। हर जगह सन्नाटा है।
हम उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री से पर्यटन को पुनर्जीवित करने में मदद करने का आग्रह करते हैं। स्थानीय लोगों का कहना था कि हमले के दिन से स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। एक होटल मालिक के बकौल, कुछ पर्यटक आते हैं - शायद 200 से 400 प्रतिदिन - लेकिन उन्हें उनके होटलों तक ही सीमित रखा जाता है और सुबह जल्दी वापस भेज दिया जाता है।
उन्हें किसी भी जगह पर जाने की अनुमति नहीं है। टूरिज्म से जुड़े समुदाय ने घुड़सवारों और ड्राइवरों जैसे दैनिक वेतन भोगियों के लिए विशेष चिंता व्यक्त की, जो अब पूरी तरह से बेरोजगार हो गए हैं। एक घुड़सवार का कहना था कि ये लोग मुश्किल से अपना गुजारा कर पाते हैं। पर्यटकों की गतिविधि के बिना, उनके पास कुछ भी नहीं है।
यहां तक कि शिकारगाह और कोलाहोई जैसे दर्शनीय स्थल, जहां घुड़सवारी एक प्रमुख आकर्षण था, बंद कर दिए गए हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि हाल ही में पहलगाम में हुई कैबिनेट बैठक में, जिसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री ने की थी और जिसमें वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हुए थे, उन्हें आश्वासन दिया गया था कि बेताब घाटी, अरु घाटी, चंदनवारी और अन्य बंद क्षेत्रों को दो दिनों के भीतर फिर से खोल दिया जाएगा। हालांकि, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है।