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उद्योग संगठनों का सरकार के साथ बैठक में मजदूरी की नई परिभाषा लागू नहीं करने पर होगा जोर

By भाषा | Updated: December 22, 2020 20:58 IST

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नयी दिल्ली, 22 दिसंबर सीआईआई और फिक्की समेत उद्योग संगठनों के प्रतिनिधि बृहस्पतिवार को श्रम मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के साथ होने वाली बैठक में वेतन की नई परिभाषा लागू करने पर फिलहाल रोक की मांग करेंगे। इस परिभाषा के लागू होने से जहां एक तरफ भविष्य निधि जैसे सामाजिक सुरक्षा का लाभ बढ़ेगा वहीं दूसरी तरफ कर्मचारियों के हाथ में तनख्वाह कम आएगी।

नई परिभाषा के अनुसार किसी कर्मचारी के भत्ते, उसके कुल वेतन के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकते। इससे भविष्य निधि जैसी सामाजिक सुरक्षा कटौती बढ़ जाएगी।

उद्योग से जुड़े एक सूत्र ने कहा, ‘‘अन्य उद्योग संगठनों के साथ ही सीआईआई और फिक्की के प्रतिनिधि 24 दिसंबर 2020 को केंद्रीय श्रम मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों से वेतन की नई परिभाषा पर चर्चा के लिए मिलेंगे, जिसके एक अप्रैल 2021 से लागू होने की संभावना है।’’

सूत्र ने यह भी कहा कि उद्योग संगठन चाहते हैं कि सरकार नई परिभाषा को अभी लागू नहीं करे, क्योंकि उन्हें डर है कि वेतन की नई परिभाषा से कर्मचारियों के हाथ में आने वाले वेतन में भारी कटौती होगी और इसके लागू होने पर नियोक्ताओं पर भी अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

मजदूरी की नई परिभाषा पिछले साल संसद द्वारा पारित मजदूरी संहिता, 2019 का हिस्सा है। सरकार एक अप्रैल 2021 से तीन अन्य संहिताओं...औद्योगिक संबंध संहित, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक स्वास्थ्य सुरक्षा एवं कामकाज की स्थिति संहिता... के साथ इसे भी लागू करना चाहती है।

इस समय नियोक्ता और कर्मचारी, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन द्वारा संचालित सामाजिक सुरक्षा योजना (ईपीएफ) में वेतन के 12-12 प्रतिशत का योगदान करते हैं। बहुत से नियोक्ता सामाजिक ईपीएफ में अपना योगदान कम रखने के लिए वेतन को कई भत्तों में विभाजित कर देते हैं। इससे कर्मचारियों को हाथ में आने वाला मासिक धन बढ़ जाता है, जबकि नियोक्ता भविष्य निधि में योगदान कम करते हैं और ग्रेच्युटी का भार भी कम होता है। लेकिन इससे कर्मचायों की भविष्यनिधि और ग्रेचुटी आदि के लाभ पर असर पड़ता है।

कुल वेतन के 50 प्रतिशत तक भत्ते को सीमित करने से कर्मचारियों की ग्रेच्युटी पर नियोक्ता का भुगतान भी बढ़ेगा, जो एक फर्म में पांच साल से अधिक समय तक काम करने वाले कर्मचारियों को दिया जाता है।

सूत्र ने कहा कि उद्योग निकाय इस बात से सहमत हैं कि इससे श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा लाभ बढ़ेगा, लेकिन वे आर्थिक मंदी के कारण इसके लिए तैयार नहीं हैं। वे चाहते हैं कि नई परिभाषा को तब तक लागू न किया जाए, जब तक अर्थव्यवस्था में तेजी नहीं आ जाती।

इस बारे में भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के महासिचव ब्रजेश उपाध्याय ने पीटीआई-भाषा से कहा कि श्रम मंत्रालय ने इस बारे में विचार के लिये श्रमिक संगठनों को भी आमंत्रित किया है।

उनका कहना है कि उद्योग को कर्मचारियों के हाथ में कम वेतन आने को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

उपाध्याय ने कहा कि अगर उद्योग को कर्मचारियों को कम वेतन हाथ में आने की इतनी ही चिंता है तो उन्हें राहत देने के लिये पारिश्रमिक बढ़ाना चाहिए।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के न्यासी उपाध्याय ने आरोप लगाया कि कंपनियां भविष्य निधि देनदारी कम करने के लिये वेतन को कई भत्तों में बांट देती हैं।

उन्होंने कहा कि भविष्य निधि में उपयुक्त योगदान जरूरी है क्योंकि इससे कर्मचारियों को बच्चों की शिक्षा, शादी, मकान खरीदने और बीमारियों के इलाज पर खर्च करने के लिये महत्वपूर्ण रकम मिल जाती है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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