भारत का क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते से अलग होना ‘गलत’ था: अहलूवालिया
By भाषा | Updated: December 17, 2020 23:06 IST2020-12-17T23:06:23+5:302020-12-17T23:06:23+5:30

भारत का क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते से अलग होना ‘गलत’ था: अहलूवालिया
नयी दिल्ली, 17 दिसंबर पूर्ववर्ती योजना आयोग (अब नीति आयोग) के चेयरमैन रह चुके मोटेंक सिंह अहलूवालिया ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत का क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौते से अलग होना ‘भूल’ थी। उन्होंने कहा कि देश को यथाशीघ्र इस व्यापार समूह के साथ जुड़ना चाहिए।
‘सेंटर फॉर सोशल एंड एकोनॉमिक प्रोग्रेस’ के डिजिटल तरीके से आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अहलूवालिया ने यह भी कहा कि अगर भारत शुल्क बढ़ाना जारी रखता है, वह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा नहीं बनने जा रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘आखिर हम आरसीईपी से क्यों बाहर हुए? हम इसके लिये कुछ समय से बातचीत कर रहे थे...मेरे हिसाब से, यह एक गलती थी। आरसीईपीसी के तहत समायोजन को लेकर बहुत लंबी अवधि की व्यवस्था है।’’
अहलूवालिया ने आरोप लगाया कि छोटे एवं अकुशल उद्योगों के इस बारे में बड़े स्तर पर जन संपर्क (लॉबिंग) के कारण भारत ने आरसीईपी से अलग होने का निर्णय किया।
उन्होंने कहा, ‘‘...हमें यथाशीघ्र आरसीईपीसी में शामिल होना चाहिए।’’
प्रख्यात अर्थशास्त्री ने यह भी कहा कि 1991 से पहले भारत की नीतियों को संरक्षणवादी कहा जाता था।
उन्होंने कहा, ‘‘हमने व्यापार उदारीकरण का रास्ता अपनाया और उसका अच्छा असर हुआ। भारत की वृद्धि दर 1991 के बाद तीव्र रही है। हमने वृद्धि के लिहाज से अच्छा किया। हमने गरीबी उन्मूलन के मामले में भी अच्छा किया।’’
अहलूवालिया ने कहा, ‘‘पिछले तीन-चार साल में शुल्क दरें बढ़ा रहे हैं, ऐसा लगता है कि हम पीछे लौट रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि भारत विनिर्माण क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाले रोजगार सृजित करने में विफल रहा।
आरसीईपी पर दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के 10 सदस्य देशों तथा पांच वार्ता भागीदार..चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने दस्तखत किये। भारत बड़े पैमाने पर सस्ता आयात बढ़ने की आशंका से इस समझौते से अलग हो गया था।
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