नयी दिल्ली, चार अगस्त उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अपने एक फैसले में कहा कि वित्तीय ऋणदाता द्वारा किसी कंपनी कर्जदार के खिलाफ सुनवाई करने वाले प्राधिकारी के समक्ष दिवाला समाधान प्रक्रिया शुरू करने की याचिका इस आधार पर समय बाधित नहीं होगी कि यह एनपीए (गैर-निïष्पादित परिसंपत्ति) के रूप में ऋण खाते की घोषणा की तारीख से तीन साल की अवधि के बाद दायर की गयी है।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उसने कहा था कि दिवाला प्रक्रिया शुरू करने के लिए देना बैंक (अब बैंक ऑफ बड़ौदा) द्वारा दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) की धारा सात के तहत दिया गया आवेदन निर्धारित समय के बाद दायर किया गया है।
पीठ ने कहा, "संक्षेप में कहा जाए तो हमारी राय में, आईबीसी की धारा सात के तहत एक आवेदन को इस आधार पर रोका नहीं जाएगा कि यह ऋण की घोषणा की तारीख से तीन साल की अवधि के बाद दायर किया गया था। गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) के रूप में कॉर्पोरेट देनदार का खाता, यदि तीन साल की सीमा की अवधि समाप्त होने से पहले कॉर्पोरेट देनदार द्वारा ऋण की पावती थी, तो इस मामले में सीमा की अवधि और तीन साल तक बढ़ा दी जाएगी।
पीठ ने कहा कि एनसीएलएटी का निर्णय और आदेश कानून एवं तथ्यों के लिहाज से नहीं टिकता है और उसने देना बैंक की याचिका को मंजूरी दे दी।
देना बैंक ने एनसीएलएटी के 18 दिसंबर, 2019 के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था। एनसीएलएटी ने अपने आदेश में कावेरी टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड कंपनी और उसके निदेशक सी शिवकुमार रेड्डी के खिलाफ दिवाला कार्यवाही शुरू करने से जुड़े बैंक के आवेदन को स्वीकार करने से संबंधित एनसीएलटी, बेंगलुरु के 21 मार्च, 2019 के आदेश को खारिज कर दिया था।
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